अशफाक अहमद
लखनऊ, यूपी
दैनिक जागरण में छपी ये तस्वीर आम लोगों के मुंह पर तमाचा हैं। ऐसे आम लोग जो राजनीतिक दल और उनके नेताओं के बहकावे में आकर एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं। इस तस्वीर को गौर से देखिए… ये कोई महोत्सव या शादी की नहीं बल्कि कासगंज में हुए दंगे में मौत की काल में समाए चंदन गुप्ता की श्रद्धांजलि सभा की है। इनमें नज़र आने वाले कासगंज के बीजेपी नेता हैं। ऐसे दुखद मौके पर उनके चेहरे पर मुस्कुराहट देखिए। ऐसा लगता है कि उनकी रणनीति काम काम गई।
दरअसल कोई भी बुरा आदमी बुरा काम तो खूब करता है लेकिन बुरा नहीं बनना चाहता। अच्छों के कंधे पर बंदूक चलाता है। पलटवार होता भी है तो निर्दोष अच्छा इंसान ही मरता है। खून-खराबे का माहौल पैदा करने वाले का हथियार रिवर्स-वे में चलता है। शिकार सामने वाला कम होता है। ज्यादा बड़ा शिकार वो होता है जिसके कंधे पर बंदूक रखी जाती है। कुच ऐसा ही हुआ है कासगंज में जहां मृतक चंदन गुप्ता के बारे में बीजेपी के नेताओं ने यहां तक कह दिया कि उनकी पार्टी से चंदन का कोई लेना-देना नहीं है। दरअसल राजनीति यहीं है, कि काम निकलने ही भूल जाओ।
अभी हाल ही में हिंदू सम्राट का दावा करने वाले प्रवीण तोगड़िया ने अपनी ही सरकार पर इनकाउंटर का आरोप लगाया था। ज़िंदगी भर वो नफरत फैलाते रहे और हिदूं- मुस्लिम के बीच की खाई बड़ाते रहे। पर उन्हें भी जान का खतरा महसूस हुआ और रोते नज़र आए।
कोई शहर या आदमी नफरतों से भरा नहीं होता है। कासगंज ऐसा नही था कोई भी शहर ऐसा नही होता है। मुज़फ्फरनगर भी ऐसा नही था, मेरठ भी नहीं और डेढ़ महीना कर्फ़्यू झेलने वाला बरेली भी नही। आज मुज़फ्फरनगर पछताता है कल कासगंज को भी पछताना होगा। सब बाद में पछताते हैं। कासगंज में तिरंगा का विरोध नही हुआ। अब वहां के अफसरों ने भी मान लिया है कि झगड़ा ग़लत नारेबाज़ी से हुआ।
वक्त ने बहुत कुछ बदलाव दिखाये और सियासी चालें भी बदलती देखीं। अब राष्ट्रवाद के कंधे पर भी सियासत के दलालों की भगवा बंदूकें चलते देख रहा हूं। धर्म और अब राष्ट्रवाद जैसे पवित्र चंदन पर जहरीले नाग लिपटे हैं। ये चंदन को इस्तेमाल करके इसी को डस भी लेते हैं। भारत माँ रो रही हैं और ये हंस रहे हैं। हम उन्हीं की बातों में अब भी हैं, उनके दिए गए नशे में जी रहे हैं।
पर कल जब सुबह होगी तो हम रात में की गई अपनी गलतियां याद आएंगी। इसके लिए हम सूरज से नज़र नही मिला पाएंगे। उजाले का कायदा है वो अँधेरे को हमेशा नही रहने देता। हां… एक हिस्सा ऐसा है जो उदास है। कासगंज में भी बहुत लोग उदास है, उनके दिल परेशान है। ये हिन्दू और मुसलमान दोनों हैं पर वो मजबूर हैं। वो इंतज़ार कर रहे हैं सुबह होने का…