Breaking
21 Nov 2024, Thu

लखनऊ, यूपी

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने अपनी सरकार के तीन साल पूरे होने पर अपनी उपलब्धियों को गिनाया। भारी-भरकम शब्दों के साथ सीएम योगी ने लखनऊ में कहा कि, “चुनैतियों और संभावनाओं के बीच संकल्पों और सिद्धांतों की नाव से यात्रा करते हुए उत्तर प्रदेश में हमारी सरकार ने तीन साल पूरे कर लिए हैं।” लेकिन इन तीन सालों में सिद्धांतों की बात करने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राज में कई बड़े हत्याकांड हुए जिसके बाद ऐसा लगा जैसे सूबे की कानून व्यवस्था नाम की चीज़ नहीं है।

यहां एक बात बताना जरुरी है कि सरकारें राज्य में कानून व्यवस्था को पहले से बेहतर बताती हैं। लेकिन सच्चाई ज्यादातर ठीक उलट रहती है। प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए योगी ने कानून व्यवस्था पर कहा कि, “कानून व्यवस्था में सुधर के कारण प्रदेश में डकैती के मामलों में 59.7, लूट की घटनाओं में 47.2, हत्या की वारदातों में 21.2, बलवों में 27.2, रोड होल्डअप में 100, फिरौती में 37.74, दहेज मृत्यु में 2.62, और बलात्कार में 17.9 फ़ीसदी की कमी आई है।”

अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सीएम योगी ने सूबे में अच्छी कानून व्यवस्था की बात की। मगर पिछले साल राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने आकड़ें जारी किए थे। एनसीआरबी की रिपोर्ट ने उन सभी राज्यों की पोल खोल कर रख दी थी, जो अपने राज्य में अच्छी कानून व्यवस्था और रामराज्य की दुहाई देते रहे हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी का योगी राज सबसे अव्वल आया था। हत्या, बलात्कार, दहेज़ हत्या और अपरहण जैसे अपराध मामलों में उत्तर प्रदेश नंबर वन है। यूपी में मार्च 2017 से योगी आदित्यनाथ की सरकार चल रही है।

उत्तर प्रदेश के योगी राज में 56 हजार 11 मामले दर्ज किए गए हैं, जोकि रिकॉर्ड सबसे ज्यादा था। लेकिन योगी सरकार हमेशा इन आंकड़ों पर पर्दा डालती रही है।

वहीं योगी सरकार का उत्तर प्रदेश को ‘अपराध मुक्त प्रदेश’ बनाने का दावा भी एक जुमला साबित होता दिख रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रदेश में अपराध थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले साल झांसी में पुलिस एनकाउंटर में मारे गए पुष्पेंद्र यादव की हत्या कर दी गई थी। इसी दौरन बस्ती में बीजेपी नेता की हत्या के कर दी गई थी, जबकि कुशीनगर में एक पत्रकार की गला रेतकर हत्या कर दी गई थी।

गौरतलब हो कि 5 अक्टूबर 2019 की रात पुष्पेंद्र यादव पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था। इस मामले पर पुलिस का कहना था कि पुष्पेंद्र पर पुलिस ने गोली जवाबी कार्रवाई में चलाई थी। हालांकि सूत्रों की मानें तो पुलिस ने पुष्पेंद्र को इसलिए गोली मारी क्योंकि उसने ड्यूटी पर तैनात इंस्पेक्टर धर्मेंद्र सिंह चौहान को वसूली देने से इनकार कर दिया था।

राजधानी लखनऊ में विवेक तिवारी हत्याकांड में भी मीडिया और बीजेपी नेताओं के मुँह से साफ़ सुथरी दिखने वाली यूपी की कानून व्यवस्था ध्वस्त दिखी थी। जब एप्पल कंपनी के मेनेजर विवेक तिवारी की 28 सितंबर 2018 की रात बाइक सवाल दो पुलिसकर्मियों ने विवेक को बीच सड़क पर गोली मर दी थी। गोली लगने से विवेक की मौत हो गई थी।

राजधानी लखनऊ में ही 18 अक्टूबर 2019 को दिनदहाड़े हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी की उनके दफ्तर में निर्मम हत्या कर दी गई थी। ये मामला एनआईए की कोर्ट में चल रहा है।

वहीं दो सितंबर 2018 को यूपी के बुलंदशहर में गोवध की अफवाह के बाद इलाके में हिंसा भड़क गई। भीड़ ने स्याना कोतवाली के इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की निर्मम हत्या कर दी थी। बाद में पुलिस ने इंस्पेक्टर सुबोध के हत्या करने वाले आरोपी समेत 12 लोगों को गिरफ्तार किया था। लेकिन बाद में आरोपियों को जेल हुई और फिर मुख्य आरोपी के साथ सभी रिहा हो गए।

By #AARECH