संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों की प्रॉपर्टी सील करने की उत्तर प्रदेश सरकार की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा है कि राज्य सरकार की कार्रवाई अवैध है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) इसकी इजाजत नहीं देती। जस्टिस काटजू ने फेसबुक पोस्ट कर अपनी बात पर कई तर्क भी दिए।
उन्होंने लिखा ‘आईपीसी की धारा 147 के तहत जो कोई भी उपद्रव करने का दोषी होगा, तो उसे कारावास भेजने का प्रावधान है। जिसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। वहीं धारा में यह भी कहा गया है कि आरोपी को आर्थिक दंड या दोनों से दंडित किया जाए। आईपीसी में कहीं भी यह नहीं लिखा कि बिना ट्रायल या सुनवाई के आरोपी की प्रॉपर्टी को सील किया जाए।’
उन्होंने कहा ‘मैं किसी भी ऐसे शख्स का समर्थन नहीं कर रहा जो हिंसा भड़काने में शामिल है और जिसने सीएए विरोध प्रदर्शन के दौरान यूपी में पब्लिक प्रॉपर्टी को नुकसान किया। लेकिन मेरी नजरों में यूपी सरकार की कार्रवाई पूरी तरह से अवैध है। संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले कथित दंगाइयों को इसके भुगतान के लिए जोर जबदस्ती करना बिना सुनवाई और ट्रायल के नहीं किया जा सकता। मुजफ्फरनगर में प्रशासन ने कथित उपद्रवियों से जुड़ी 50 दुकानों को सील कर दिया है। ऐसा करना पूरी तरह से अवैध है क्योंकि बिना मामले की सुनवाई और कोर्ट के आदेश के ऐसा किया गया।’
पूर्व जज ने कहा ‘ऐसा लगता है कि यूपी सरकार खुद से ही कानून बना रही है। जो कि एक मार्च 1933 के जर्मन रीचस्टैग (जर्मन संसद) द्वारा पारित सक्षम अधिनियम की याद दिलाता है, जिसने हिटलर सरकार को संसद की अनुमति के बिना कानून बनाने की इजाजत दे दी थी। यदि यह गैर-कानूनी चलन भारत में भी शुरू हो गया और भारतीय न्यायपालिका इसे नहीं रोकेगी तो जल्द ही इस देश में नाजी युग शुरू हो जाएगा। हाल के घटनाक्रम से लगता है कि सुप्रीम कोर्ट भीष्म पितामह की तरह आंख बंद किए हुए ठीक वैसे ही जब द्रौपदी का सभी के सामने चीरहरण किया गया था।