देश की पहली सेमी हाई-स्पीड ट्रेन वन्दे भारत एक्सप्रेस का उत्पादन रुक गया है। चेन्नई स्थित इंटिग्रल कोच फैक्टरी (आइसीएफ) में तैयार की जा रही इन ट्रेनों का उत्पादन कई टेंडर मिलने के बावजूद रुका हुआ है। नतीजतन इस साल अब तक 10 ट्रेन बनाने का काम शुरु ही नहीं हुआ है। दि हिन्दू ने लिखा है कि पहले से चल रही वन्दे भारत ट्रेनों के डिजाइन में कुछ त्रुटि होने की वजह से काम रुका हुआ है। वहीं रेलवे 97 करोड़ लागत वाले ट्रेन सेटों के बनाने में एक ख़ास कंपनी को फायदा पहुंचाने के आरोपों की भी जांच कर रहा है।
15 फरवरी 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली से वाराणसी के बीच चलने वाली इस-18 ट्रेन का उद्घाटन किया था। बहुत कम समय में आइसीएफ टीम ने ट्रेनों का उत्पादन किया था। बाद में ट्रेन-18 का ही नाम बदलकर वंदे भारत एक्सप्रेस किया गया।
रेलवे बोर्ड के निर्देशों पर काम करते हुए जांच अधिकारियों ने आइसीएफ से ट्रेन-18 से संबंधित करीब सौ फाइलों को जांच के लिए लिया है।
माना जा रहा है कि ट्रेन-18 को बनाने में रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन (आरडीएसओ) के बताए हुए मॉडल में दर्जनों बदलाव करने से उत्पादन में समस्या आ रही है। इसकी वजह से इंजीनियर जांच के बाद ट्रैक्शन ट्रांसफार्मर और अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरणों का इस्तेमाल करने से कतरा रहे हैं।
आइसीएफ ने अब फैसला किया है कि वह आरडीएसओ के बताए मॉडल के आधार पर इलेक्ट्रिक उपकरणों का इस्तेमाल करेगा। इसके अलावा नया टेंडर भी निकालेगा।
पहली ट्रेन बनाने के वक्त टीम का हिस्सा रहे एक वरिष्ठ इंजीनियर ने बताया, “ट्रेन-18 को उद्योग के मानकों को देखते हुए बनाया गया था। इसमें पहले से बने-बनाए उपकरणों की मदद से 18 महीने के भीतर बना लिया गया था। ट्रेन बनाने में सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं किया गया था। पिछले छह महीनों से ट्रेन हाइ स्पीड पर सुरक्षित चल रही है। अगर हम सख्ती से आरडीएसओ के मॉडल को मानते तो ट्रेन-18 की स्पीड को कम करना पड़ता। इसके अलावा ट्रेन बनाने में लागत भी ज्यादा आती।”
एक अन्य अधिकारी ने बताया, “हमारा उद्देश्य एक ऐसी ट्रेन बनाने का था जिसमें लागत भी कम आए और सुरक्षा और आराम से कोई समझौता भी ना हो। आइसीएफ टीम ने इस चुनौती को स्वीकार कर ट्रेन-18 बनाकर दिखाई। ट्रेन की स्वामित्व को लेकर अब कुछ समस्याएं पैदा हो गई हैं जो कि ट्रेन का भविष्य तय करेंगी।”
खबर के अनुसार, ट्रेन का उत्पादन बंद हो जाने से चेन्नई और आस-पास के सप्लायर्स काफी परेशान हैं। ट्रेन को बनाने में इन्होंने करोड़ों रुपये का निवेश किया था। उनका मानना है कि कई मल्टीनेशनल कंपनियों की वजह से बार-बार टेंडर की प्रक्रिया रुक रही है।
आइसीएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह पूरा प्रोजेक्ट विवादों के घेरे में आ गया है। यह कहना अभी मुश्किल है कि दोबारा यह कब शुरु होगा।