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25 Nov 2024, Mon

क्या RSS टीपू सुल्तान की जगह अंग्रेज वायसराय की जयंती मनाएगा

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इकबाल अहमद

मुंबई, महाराष्ट्र

टीपू सुल्तान ने कहा था –

गीदड़ की सौ साला ज़िंदगी से शेर की एक दिन की हयात अच्छी है
घुट-घुट कर जीने से बुज़दिल ज़िन्दगी यारो इज़्ज़त की मौत अच्छी है

सुल्तान फतेह अली खान उर्फ़ टीपू सुल्तान जिसका नाम सुनते ही अंग्रेज सैनिक थर-थर कांपते थे। इतिहासकार जब भी टीपू के बारे लिखते हैं तो बड़े ही सम्मान के साथ टीपू सुल्तान का नाम लेते हैं। शहीद टीपू सुल्तान, योद्धा टीपू सुल्तान, बहादुर टीपू सुल्तान कवि और विद्वान टीपू सुल्तान।

इतिहास के पन्ने पलटेंगे तो टीपू सुल्तान के बहादुरी के कारनामें आपको पढ़ने को मिलेंगे। रॉकेट के जनक टीपू को हिंदुस्तान के मुसलमानों ने भुला दिया था। शुक्र अदा करता हूं हिंदुस्तान में कट्टर सोच वालों को जिन्होंने एक बार फिर से टीपू को जिंदा कर दिया। हिंदुस्तान का मुसलमान न तो टीपू सुल्तान की तस्वीर अपने घरों में रखता है और ना ही अपने बच्चों का नाम टीपू सुल्तान रखता है ना ही उसकी जयंती मनाता है।

20 नवंबर 1750 को मैसूर, वर्तमान में कर्नाटक राज्य में शेरे मैसूर का जन्म हुआ था। 18 साल की उम्र में ही ब्रिटिश साम्राज्य से लोहा लेने लगा। मैसूर का बादशाह अपने पिता हैदर के साथ ईस्ट इंडिया कम्पनी की जड़े हिला दी थी। पिता की मौत के बाद 1786 में वो मैसूर का राजा बनता है। कर्नाटक सरकार अपने प्रदेश के शेर का जन्मदिन मना रही है। कुछ लोगों को यह नागवार गुजर रहा है जो इतिहास है उसको कैसे बदल सकते हैं।

वर्तमान में नफरत फैलाने वाले लोग सिर्फ नफरत करना जानते हैं कुछ लोग कहते हैं। टीपू सुल्तान मुसलमान था इसलिए उससे नफरत कर रहे हैं। मैं आपको बता दूं कि यह नफरत करने वाले गांधी से भी नफरत करते रहे हैं, नेहरू से भी नफरत करते हैं। इंदिरा और राजीव गांधी से भी नफरत करते हैं। ये हर एक इंसान से वह नफरत करते हैं जो उनकी बातों को नहीं सुनता है, जो उनके लगाएं नारों को नहीं लगाता है। उनको तो इंसानियत से ही नफरत है। उनसे हम बेहतर की उम्मीद कर भी नही सकते हैं। देश मे ये लोग गोडसे की जयंती मनाते है और गांधी की हत्या को जायज़ ठहराते है। जबकि गांधी के विचार विश्व के कई देशों में पढ़ाया जाता है। विदेशो में देश के नेता जाते है तो गर्व से कहते है कि गांधी के देश से हैं।

देश के तमाम बुद्धिजीवी… ऐसे नफरत के फैलाने वालों को मुंहतोड़ जवाब दें। यह सिर्फ टीपू सुल्तान का अपमान नहीं है एक शहीद का अपमान है जो अंग्रेजो के साथ लड़ाई में 4 मई 1799 में लड़ते लड़ते शहीद हुए है। अब आरोप यह लगता है कि टीपू सुल्तान ने बहुत से हिंदुओं को मारा, धर्मांतरण कराया, हाथियों से कुचलवा दिया वगैरा-वगैरा। वो ये नहीं बताते कि टीपू सुल्तान ने कितने मंदिरों को दान में जमीन दी। कितने मंदिरों में दान पत्र दिए। कितने लोगों की मदद करी। अंग्रेज़ो से किस तरह लड़ाईया लड़ी। टीपू सुल्तान के दिए गए मंदिरों के दान और जमीन के पेपर आज भी मंदिरों के पास सुरक्षित है।

टीपू सुल्तान हो या कोई भी राजा हो उसके राज्य में अगर राज्य के खिलाफ विद्रोह होता है तो उसे तब भी कुचला जाता था आज भी कुचला जाता है। अगर मौजूदा हुकूमत के खिलाफ किसी मंदिर से विद्रोह शुरु हो जाए तो क्या सरकार मंदिर पर हमला नहीं करेगी ? अभी हाल ही में रामपाल और बाबा राम रहीम डेरे को तहस-नहस कर दिया गया क्योंकि बाबा के समर्थकों ने सरकार के खिलाफ विद्रोह कर दिया। वही डेरा सच्चा सौदा जिसमें सरकार के तमाम मंत्री और अधिकारी जाकर अपने सर झुकाते थे। लेकिन सरकार के खिलाफ विद्रोह हुआ तो सरकार ने पल भर भी उसे नेस्तनाबूद कर दिया। उस समय भी ऐसा कुछ हुआ होगा उससे कौन इंकार करता है ? उसे धर्म विरोधी नही कह सकते। टीपू सुल्तान की महानता कितनी थी इतिहासकार अलग-अलग रूप में बयान करते हैं। कुछ इतिहासकार विरोधी भी हैं उनके भी अपने मत हैं।

मशहूर मीडिया बीबीसी लिखता है कि लंदन के मशहूर साइंस म्यूज़ियम में मैंने टीपू के कुछ रॉकेट देखे। ये उन रॉकेट में से थे जिन्हें अंग्रेज़ अपने साथ 18वीं सदी के अंत में ले गए थे। देश के सबसे काबिल वैज्ञानिक भारत रत्न पूर्व राष्ट्रपति भारत के मिसाइल कार्यक्रम के जनक #एपीजे_अब्दुल_कलाम जी ने अपनी किताब ‘विंग्स ऑफ़ फ़ायर’ में लिखा है कि उन्होंने नासा के एक सेंटर में टीपू की सेना की रॉकेट वाली पेंटिग देखी थी। कलाम साहब लिखते हैं, “मुझे ये लगा कि धरती के दूसरे सिरे पर युद्ध में सबसे पहले इस्तेमाल हुए रॉकेट और उनका इस्तेमाल करने वाले टीपू सुल्तान की दूरदृष्टि का जश्न मनाया जा रहा था। वहीं हमारे देश में लोग ये बात या तो जानते नहीं या उसको तवज्जो नहीं देते।

टीपू से नफरत करने वालों देश मे अंग्रेज़ों से लड़ने वाले टीपू की जयंती नही मनाई जाएगी तो क्या टीपू को शहीद करने अंग्रेज़ वायसराय #लार्ड_कार्नवालिस की जयंती मनाई जाएगी ?

(इक़बाल अहमद मुमताज़ डिग्री कालेज लखनऊ के पूर्व छात्रसंघ उपाध्यक्ष रहे हैं)
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