नई दिल्ली
मदरसों का नाम लेते ही आंखों के सामने आमतौर पर एक ऐसे स्कूल की तस्वीर उभरती है जहां अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र पारंपरिक तरीके से तालीम हासिल करते हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल के मदरसों में यह तस्वीर बदल रही है। राज्य के मदरसों में न सिर्फ ग़ैर-मुसलमान छात्र पढ़ते हैं, बल्कि उनकी तादाद भी लगातार बढ़ रही है।
राज्य में सोमवार से शुरू मदरसा बोर्ड की परीक्षा ने इस बार एक नया रिकॉर्ड बनाया है। इस परीक्षा में शामिल 70 हज़ार छात्रों में से लगभग 18 फ़ीसदी हिंदू हैं। मदरसा बोर्ड की यह परीक्षा दसवीं के समकक्ष होती है। इससे पहले साल 2019 की परीक्षा में ग़ैर-मुस्लिम छात्रों की तादाद 12।77 फ़ीसदी ही थी। राज्य में सरकारी सहायता-प्राप्त 6,000 से ज़्यादा मदरसे हैं।
पश्चिम बंगाल मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष अबू ताहेर कमरुद्दीन बताते हैं, “बीते कुछ वर्षों से परीक्षा में शामिल होने वाले छात्रों की तादाद दो से तीन फ़ीसदी की दर से बढ़ रही है। राज्य के विभिन्न हिस्सों में फैले इन मदरसों में अब दसवीं कक्षा तक ग़ैर-मुस्लिम छात्र भी बड़ी तादाद में दाखिला ले रहे हैं।”
कमरुद्दीन बताते हैं कि बांकुड़ा, पुरुलिया और बीरभूम जिलों में चार सबसे बड़े मदरसों में तो ग़ैर-मुस्लिम छात्रों की तादाद मुस्लिम छात्रों से ज़्यादा है। कमरुद्दीन के मुताबिक ग़ैरमुस्लिम छात्र ज़्यादातर हाई मदरसे में दाख़िला लेते हैं। इसकी वजह यह है कि इन मदरसों में सेकेंडरी बोर्ड के पाठ्यक्रम के मुताबिक़ पढ़ाई होती है।
वो कहते हैं, “देश ही नहीं बल्कि यह पूरी दुनिया में अपने लिहाज से अनूठी बात है। यहां हिंदू छात्र न सिर्फ पढ़ रहे हैं, वो मुसलमान छात्रों के मुक़ाबले बेहतर नतीजे भी ला रहे हैं।”