Breaking
17 Oct 2024, Thu

उर्मिलेश

नई दिल्ली
पश्चिम उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर 11 अप्रैल को मतदान होना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी और अन्य भाजपा नेताओं की अनेक रैलियां और सभाएं हो चुकी हैं और लगातार हो रही हैं। अब तक सपा-बसपा के बड़े नेताओं की एक भी रैली या चुनाव सभा नहीं हुई। दोनों पार्टियों के सुप्रीमो यदा-कदा बयान ज़रुर जारी कर देते हैं। विपक्ष की तरफ से अगर कोई सक्रिय दिख रहा है तो सिर्फ रालोद नेता जयंत चौधरी। वह रोजाना तीन-चार सभाएं कर रहे हैं।

वहीं गठबंधन की दोनों बड़ी पार्टियों के ‘समाजवादी’ और ‘बहुजनवादी’ नेता इस चुनाव में अपनी जीत के प्रति या तो पूरी तरह आश्वस्त हैं या किसी खास वजह से जनता के बीच आने से हिचक रहे हैं। एक पत्रकार के रूप में ऐसा चुनावी दृश्य पहली बार देख रहा हूं।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पूरे देश में जनता के बीच जा रहे हैं। उनकी बहन प्रियंका गांधी भी निरंतर सक्रिय हैं। टीएमसी, एनसीपी, तेदेपा, टीआरएस, वाईआरएस कांग्रेस, द्रमुक, भाकपा, माकपा, भाकपा-माले, एनसी, पीपीआई और पीडीपी आदि के नेता दिन-रात एक किए हुए हैं।

अचरज की बात है कि सपा-बसपा के शीर्ष नेता जनता के बीच आने से क्यों हिचक रहे हैं? कल मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव के नामांकन के दौरान ही कुछ समय के लिए सपा के नेता अपने बंगलों से बाहर निकले। सुना है कि कुछ दिन बाद, ‘बहन जी’ के भी महल से बाहर निकलने का मुहूर्त निकलने वाला है।

मोदी-युग के ‘जनतंत्र’ की इस अद्भुत लीला का अर्थ किसी को समझ में आ रहा है?

(उर्मिलेश उर्मिल वरिष्ठ पत्रकार हैं और कई अखबारों और चैनल में प्रधान संपादक रह चुके हैं)