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15 Mar 2025, Sat

AMU छात्रसंघ चुनाव में अजय सिंह की उम्मीदवारी सवाल क्यों?

TANWEER ALAM ON AMU STUDENT UNION ELECTION 1 101217

तनवीर आलम की फेसबुक वाल से

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्र संगठन का चुनाव हो रहा है। छात्र और प्रत्याशियों में जोश है और होना भी चाहिये। एक समय था जब अमुवि छात्र संगठन का अध्यक्ष होना अपने आप में गर्व की बात हुआ करता था। गर्व अब भी होता है लेकिन नारों में अधिक। समय के साथ छात्र संगठन भारतीय राजनीति का अनुसरण करते हुए अपनी चरित्र को बनाती गयी और अपनी मान्यता को, अपनी पूछ प्रासंगिकता को अपने चाहरदीवारी के अंदर समेट कर जामा मस्जिद से बाब-ए-सैय्यद तक का संगठन बन गयी।

जैसा की मैं पहले भी लिख चुका हूँ इस बार अध्यक्ष पद के लिए तीन प्रत्याशी मैदान में हैं। तीनो अलीगढ़ के पूर्व छात्रों, शिक्षकों और शुभचिंतकों के लिए उतने ही प्रिय होंगे और मेरे जैसे लोगों के लिए तो निश्चित हैं। लेकिन अलीगढ़ के सेक्यूलर चरित्र, आपसी भाईचारे और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खान के कथन ‘हिन्दू और मुसलमान भारत की दो आँखें हैं’ को चरितार्थ करने में जुटे मुठ्ठी भर ही सही लोगों के लिए ये अधिक रोचक और सुखद है की कोई ‘ठाकुर अजय सिंह’ अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ रहा है। हालांकि ठाकुर अजय सिंह बीजेपी घराने से है और बीजेपी अमुवि के लिए कभी स्वीकार्य नहीं रही है न रहेगी ये भी अपनी जगह अटल है। लेकिन हमारे लिए वो एक मात्र छात्र संघ का उम्मीदवार है और उतना ही प्रिय है जितना बाक़ी प्रत्याशी।

लेकिन चिंता का विषय ये है की जिस प्रकार से कुछ लोगों ने ठाकुर अजय सिंह का बीजेपी फलैग के साथ फ़ोटो साझा कर चुनाव को एक अलग रंग देने का कार्य किया वो कहाँ तक सही है। अजय बीजेपी घराने से है तो ये भी तय है की बीजेपी के सारे संगठन आरएसएस, विश्व हिन्दू परिषद्, बजरंग दल और अन्य उसको खुला या छुपा उसको समर्थन करेंगे ही। उनको पता है की उनके प्रत्याशी की जीत मुश्किल है बावजूद वो एक नींव डालना चाहते हैं जिसके लिए परिस्थिति कैंपस से लेकर, राज्य और केंद्र तक अनुकूल है। वो अपना कार्य करेंगे लेकिन इसमें सेक्युलर विचारधारा को क्या करना चाहिये? क्या बीजेपी फ्लैग के साथ वाले फ़ोटो को साझा करके इसको भगवा बनाम मुस्लिम रंग देना चाहिये? यही काम हर ज़माने में मुसलमानो ने किया। शाह बानो से लेकर बाबरी मस्जिद, मोदी मोदी से लेकार तीन तलाक़ तक और हर बार मुंह के बल गिरे। कभी सबक नहीं लिया अपनी गलतियों से और फिर अब ये एक नया। इस छात्र संघ चुनाव को जो रंग कुछ लोग जोश में दे रहे हैं उसके दूरगामी परिणाम बहुत खतरनाक होंगे। सीधा सीधा बंटवारा। मैं चाहूँगा की अलीगढ़ बिरादारी आत्मचिंतन करे कुछ सवालों पर:-

1) जिस संस्थान का पहला स्नातक ईश्वरी प्रसाद उसके छात्र संघ का अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सचिव कोई ईश्वरी प्रसाद क्यों नहीं हुआ?

2) एक ऐसे संस्थान में जहाँ शिक्षकों ने कभी अपने छात्रों को हिन्दू-मुसलमान की नज़र से नहीं देखा वहां अगर छात्र संघ चुनाव में नॉन मुस्लिम छात्रों की अधिकतर संख्या धर्म विशेष के प्रत्याशी के साथ जाता है तो चूक कहाँ हुई?

3) पहले भी अमुवि छात्र संगठन के लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दूसरी राजनितिक और गैर राजनितिक संगठनो से जुड़े रहे हैं। यहाँ तक की अमुवि प्रशासन के बड़े ओहदेदारों, शिक्षकों और छात्रों की तस्वीरें भी बीजेपी वालों के साथ पब्लिक डोमेन में हैं। इस्लाम का नारा बुलंद कर चुनाव जितने वाले पूर्व छात्र संगठन अध्यक्ष हाफ़िज़ उस्मान ने चाटुकारिता की हद कर राजनितिक फायदे के लिए भरी मजलिस में नारे लगाए और हाफिज आज़म बैग ने भी बीजेपी ज्वाइन की थी । तब आप कहाँ थे? उसपर अमुवि समुदाय का कड़ा विरोध क्यों नहीं किया?

4) बीजेपी की सांप्रदायिक राजनीति निश्चित तौर पर शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और आर्थिक नीतियों के सवाल पर असफल हो रही है, युवाओं में बेचैनी है, किसान बेहाल हैं और मज़दूर धर्म विशेष, जाती विशेष के नाम पर मारे जा रहे हैं। उन मुद्दों पर अमुवि समुदाय क्यों खामोश रहती है?

5) दूसरी जमातों में, संगठनो में, राजनितिक पार्टियों में भी साम्प्रदायिकता है। क्या आपमें इतना दम है की ये जो साम्प्रदायिकता दूसरी तथाकथित सेक्युलर जमातों में है उसपर कड़ा विरोध जता सकें? आप बीजेपी समर्थित पार्टी जदयू में रहते हैं तो आपको टिकट लेने में परेशानी नहीं, लोजपा से परेशानी नहीं, मायावती से परेशानी नहीं। समाजवादी पार्टी के साम्प्रदायिकता को भी भूलकर आप पार्टी में जाते हैं और वोट भी देते हैं। क्या इन जमातों, इन सवालों पर कभी विरोध जताते हैं। अमेरिका की करतूत पर आप घरों से बाहर आ जाते हैं और सऊदी अरब की कारस्तानियों पर चुप्पी साध लेते हैं। अगर जताते हैं तो कब तक ? जभी तक जबतक आप सहज नहीं हो जाते। मैं तो जबसे देखकर रहा हूँ तबसे हम इन मुद्दों पर बिलकुल निष्क्रिय और असफल रहे हैं।

6) देश के सामने ज्वलंत मुद्दे हैं। कट्टरता और साम्प्रदायिकता गैर बीजेपी संस्थानों में भी कूट कूट कर भरी है। उन संस्थानों के इन कमियों के सवाल को कौन उठाएगा? अलीग बिरादरी, अमुवि छात्र और शिक्षक की नैतिक, सामाजिक और शैक्षणिक ज़िम्मेदारी नहीं बनती देश के, युवाओं के, छात्रों के, किसान और मज़दूरों के सवालों पर खड़ा होना?

7) अमुवि छात्र संघ के चुनाव के दौरान देश, समाज, किसान, युवा, छात्र और मज़दूरों, देश में हो रही हत्याओं और दूसरे ज्वलंत मुद्दों पर कितनी बहस हुई? अगर नहीं हुई तो इस मानसिक दिवालियापन के ज़िम्मेदार क्या छात्र, शिक्षक और पूर्व छात्र नहीं हैं? फ़ोटो साझा करने से क्या देश के इन महत्वपूर्ण मुद्दों का हल निकलेगा। ठाकुर अजय सिंह का बीजेपी घराने से होना, बीजेपी के झंडे के साथ खड़े होना सर्विदित है। लेकिन जब आप मुलायम सिंह का फ़ोटो मोदी के साथ, लालू यादव का फ़ोटो गिरिराज सिंह के साथ देखते हैं तो यही बवाल क्यों नहीं करते? फ़ोटो पर ये ध्रुवीकरण भी एक साम्प्रदायिकता है।

8) अल्पसंख्यक का सवाल अपनी जगह है लेकिन भाषा के सवाल पर क्या आप भी दोहरा मापदंड नहीं रखते? अगर ऐसा नहीं है तो पुरे चुनाव के दौरान उर्दू में आपकी चुनाव सामग्रियाँ क्यों नहीं छपी ? क्या उर्दू को इस प्रकार त्यागने की ज़िम्मेदारी इन छात्र नेताओं पर नहीं जाती ?

9) अमुवि छात्र संघ के चुनाव हर बार क्षेत्रवाद के सहारे लड़े जाते हैं। शिक्षक संघ में क्षेत्रवाद का बोलबाला है। पूरी अमुवि प्रशासन भाई-भतीजावाद से ग्रस्त है। इसपर खुली चर्चा और कड़ा विरोध क्यों नहीं?

10) और आखिर में एक बड़ा सवाल क्या अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और लोकतंत्र वाक़ई मूर्त रूप में बची हुई है।

हो सकता है लेख पढ़ने के बाद मुझपर कुफ़्र का फ़तवा आप लागू कर दें परंतु सवाल फिर भी सवाल बना रहेगा।

अमुवि ज़िंदाबाद।

(तनवीर आलम समाजवादी विचारकसमाजसेवी और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय पूर्व छात्र संगठन महाराष्ट्रमुम्बई के अध्यक्ष हैं।)
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