अब्दुल्लाह शहीमी
लखनऊ, यूपी
आज के दौर में समाज में जिस तरीके से मानवता यानी इंसानियत दम तोड़ती नज़र आ रही है उससे एक अहम सवाल सबके सामने तैर रहा है…
ये सवाल है समाज के ज़िम्मेदार नागरिकों से, कॉलेज और विश्वविद्यालय में पढ़ने-पढ़ाने वाले लोगों से है। सबसे महत्वपूर्ण सवाल युवा देश के उन छात्रों से है जो इस हिंदुस्तान का भविष्य हैं। भारत में रोज़ औसतन 2 साम्प्रदायिक घटनाए दर्ज हो रही हैं। पिछले कुछ महीनों से लगातार भीड़तंत्र द्वारा निर्दोष लोगों की हत्याओं का सिलसिला चल पड़ा है। दलितों, मुसलमानों के साथ पूरे देश में मारपीट की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं। विकास और आधुनिकता का नारा देने वाले देश में महिलाओं के साथ रेप तो इस दौर का रिवाज़ सा बन चुका है।
खत्म होती मानवता
ये एक बेहद अफ़सोसजनक बात है कि घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। सबसे अजीब बात ये है कि हम इन सब घटनाओं पर बात ही नहीं करना चाहते हैं। दरअसल हमारे अंदर मानवता ने पूरी तरह से दम तोड़ दिया है। अब हमारा दिल इन सब घटनाओं को देखकर बिल्कुल नहीं लरज़ता। अजीब बात है कि आज के दौर में शिक्षकों को हमसे ही डर लगता है। हमारी बहनों को सड़क पर चलने से डर लगता है। हमारे पिता हमें डांटने से आखिर क्यों डर जाते हैं। आखिर… ऐसा क्यों हो रहा है ? आखिर इतना ज़्यादा डर की वजह क्या है ?
क्या है मौजूदा माहौल
आज हमारा देश नफरतों की आग में जल रहा है। यहाँ हिन्दू मुसलमान से जल रहा है तो मुसलमान हिन्दू से नफरत रखे हुए है। ऐसा माहौल बन गया है कि धर्म के नाम पर तो हमने इंसानियत का गला घोंट ही दिया है। दूसरी तरफ जाति के नाम पर भी लोग पीछे नहीं रहे हैं। ब्राह्मड़ हैं तो दलितों से नफरत कर रहा है, सय्यद है तो फकीरों से नफरत कर रहा है।
क्या है इलाज़
हमें इस सवाल का जवाब तलाशना होगा ! हमें फिर से भाईचारा, मुहब्बत, अखुवत की नींव को मज़बूत करना पड़ेगा। हमें सबसे ज़्यादा ध्यान कॉलेज और विश्वविद्यालय के छात्रों पर देना होगा जो फिलहाल सिर्फ पैसे कमाने के लिए तैयार हो रहे हैं। ऐसे छात्रों को इस दिशा में मोड़ना होगा कि हम अपनी शिक्षा को इस समाज की भलाई के लिए इस्तेमाल करें। शिक्षा एक सभ्य समाज को जन्म देती है। शिक्षा का महत्व जानना हो तो किसी दूर बीहड़ गाँव के किसान से पूछिए कि शिक्षा हासिल करना क्यों ज़रूरी है। ऐसी दशा में उस किसान का यही उत्तर होगा कि वह एक सभ्य समाज का हिस्सा बने और उसे निर्माण में सहयोग कर सके।
ये वक़्त दम तोड़ती इंसानियत को दोबारा जीवन प्रदान करने का है। हमें कॉलेज में, विश्वविद्दालयों में, क्लास रूम में, चाय की दुकानों में, गली-चौराहों पर इस बात को आम करना होगा कि समाज के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य मानवता को ज़िंदा करना होगा। बरना प्रेम और भाईचारा मिट जाएगा और नफरतों का बोलबाला हो जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो विकास का क्या फायदा होगा।
सभ्य समाज का निर्माण
सांप्रदायिकता के खिलाफ, भीड़तंत्र के खिलाफ, महिलाओं, दलितों और मुसलमानों पर अत्याचार के खिलाफ जब आवाज़ उठेगी तभी समाज से डर का माहौल ख़त्म होगा। एक शिक्षक बिना किसी डर के अपने छात्रों को शिक्षा देगा और वही छात्र डॉक्टर या इंजीनियर के रूप में या फिर कोई प्रोफेसर के रूप में समाज को विकास की राह पर ले जाएगा। जब समाज का युवा वर्ग इस दिशा में सोचेगा तो एक बेहतर समाज का निर्माण होगा।
और हां… हम अगर अभी सतर्क न हुए तो हमें वो दिन देखना पड़ेगा जिसका इशारा बहुत पहले ही अल्लामा इक़बाल करके गए थे…
“वतन की फिक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है
तेरी बर्बादियों के चर्चे हैं आसमानों में
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिंदुस्तान वालों
तुम्हारी दास्तां न होगी दास्तानों में”
(ये लेखक के अपने विचार हैं। लेखक अब्दुल्लाह शाहीमी इंटीग्रल यूनिवर्सिटी, लखनऊ में बीटेक सेकेंड ईयर के छात्र हैं और एसआईओ से जुड़े हैं)