लखनऊ
कांग्रेस में आखिरकार बदलाव हो ही गया। यूपी प्रदेश अध्यक्ष के पद पर अजय कुमार लल्लू की ताजपोशी के कयासों पर कांग्रेस आलाकमान ने मुहर लगा दी है। नई कमेटी को देखने से लगता है कि प्रियंका गांधी की मंशा ये है कि संगठन में नौजवानों और महिलाओं को प्राथमिकता मिले।
सालों से जनता के दिलो दिमाग से गायब रही कांग्रेस की असली बीमारी का उपचार शायद प्रियंका गांधी ने खोज लिया है। इसकी छाप नई कांग्रेस कमेटी के ऐलान के साथ ही दिखनी शुरु हो गई है। कांग्रेस ने पुराने धरती पकड़ नेताओं की जगह संघर्षशील जमीनी नेताओं और नौजवानों को नई कांग्रेस में ऊंची जगह दी है। इसी क्रम में राज बब्बर की जगह अनौपचारिक तौर पर लम्बे समय से पार्टी का कामकाज देख रहे विधायक अजय कुमार लल्लू को अध्यक्ष पद पर बैठाया गया है, तो आखिर अजय कुमार लल्लू ही क्यों? और कौन हैं अजय कुमार लल्लू।
कौन हैं अजय कुमार लल्लू?
अजय कुमार लल्लू मौजूदा यूपी विधान सभा मे कुशीनगर जिले की तमकुही राज सीट से कांग्रेस के विधायक हैं। अजय, साल 2012 में पहली बार विधायक चुने गए थे तब उन्होंने भाजपा के नंद किशोर मिश्रा को 5860 वोटों से हराया था, लेकिन दिनों दिन उनकी लोकप्रियता बढ़ती रही। यही वजह रही कि 2017 के भाजपा लहर में भी उन्होंने न सिर्फ अपनी सीट बचाये रखी बल्कि 2012 से ज्यादा बड़े अंतर से उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी को हराया। साल 2017 में अजय ने भाजपा के जगदीश मिश्रा को 18 हजार 114 वोटों से मात दी। उनकी इसी सफलता को देखते हुए उन्हें विधानसभा मे कांग्रेस विधायक दल का नेता भी चुन गया और अब अध्यक्ष, लेकिन अजय की कुछ अनसुनी कहानियों को न्यूज़18 आपके सामने रख रहा है।।।
साल था 2007, कुशीनगर के आजादनगर कस्बे में एक नौजवान निर्दल उम्मीदवार के तौर पर भाषण दे रहा था। एक जोशीला भाषण। तभी पीछे से एक बुजुर्ग की आवाज़ आई- ई बार त ना, पर अगली बार बेटा विधायक बनबे। हुआ भी ऐसा ही। चुनाव का रिजल्ट आया और निर्दल उम्मीदवार कुछ हज़ार वोटों पर सिमट गया। हारा हुआ नौजवान था- अजय कुमार लल्लू। एक स्थानीय कॉलेज का छात्र संघ अध्यक्ष। जिले के हर मुद्दे पर पुलिस से भिड़ने वाला। संघर्ष इतना पक्का कि अजय कुमार को कब लोग धरना कुमार कहने लगे किसी को ये महसूस ही नहीं हो पाया।
चुनाव के हार के बाद की कहानी
हालांकि चुनाव हारने के बाद अजय कुमार शायद थोड़े टूट गए। वे राजनीति छोड़कर दिल्ली कमाने चले गए। लल्लू ने वहां मजदूरी शुरु की और पैसे जोड़ने लगे। लेकिन, वो कहते हैं ना कि किसी भी व्यक्ति का भूत उसका पीछा नहीं छोड़ता। अजय के साथ भी ऐसा ही हुआ। वो भले ही राजनीति से कट गए थे, लेकिन क्षेत्र के लोग लगातार उन्हें फोन करते रहे। अपनी समस्या बताते रहे। कहते रहे कि वापस आओ, कौन लड़ेगा हमारी लड़ाई ? लल्लू की सियासी तबियत आखिरकार पिघल गयी और लल्लू फिर से कुशीनगर की सड़कों पर आंदोलन करते दिखने लगे।
मुसहरों की बस्तियों में उनको एकजुट करने लगे। नदियों की कटान को लेकर धरने पर बैठने लगे और गन्ना किसानों के लिए मीलों का घेराव भी करने लगे। इसी बीच फिर से चुनाव आ गया। कांग्रेस को किसी ऐसे ही संघर्षशील नेता की जरूरत थी जो आंदोलनकारी हो और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने का जोखिम उठा सके। अजय कुमार लल्लू से बात की गयी और वे तैयार हो गये। समय आ गया था कि बुजुर्ग की पांच साल पुरानी भविष्यवाणी के सच साबित होने का। कुशीनगर की तमकुहीराज सीट से अजय कुमार ने जीत दर्ज की वो भी तब जब पूरे प्रदेश में भाजपा और मोदी की आंधी चल रही थी। तमकुहीराज की जनता ने अपने धरना कुमार को अपनी किस्मत की चाबी सौंप दी।
क्या है प्रियंका गांधी की रणनीति
महासचिव प्रियंका गांधी की कसौटी पर अजय कुमार लल्लू का नाम खरा उतरा है, उनकी कसौटी थी- वह नेता जो उत्तर प्रदेश में रहता हो, लोगों से उसका जीवंत रिश्ता हो, लोगों के संघर्षों का भागीदार हो। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस हाशिये पर खड़े समुदाय पर फोकस कर रही है। अजय कुमार लल्लू खुद कान्दू जाति से आते हैं। उत्तर प्रदेश की कमेटी भी सामाजिक संतुलन और जातीय समीकरणों के आधार पर तैयार हुई है जिसका असर चुनावी राजनीति में साफ़-साफ़ दिखेगा।
नौजवान और जमीनी कार्यकर्ता हैं पहली पसंद
नई कांग्रेस कमेटी में नौजवान और लड़ाकू कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता मिली है। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उपचुनाव में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा नौजवान उम्मीदवारों को उतारा है। अब देखना ये होगा कि क्या अजय कुमार लल्लू कांग्रेस को यूपी में खोई जमीन किस हद तक वापस दिल पाने में कामयाब होते हैं।