शहबाज़ रशादी
आज़मगढ़, यूपी
मुझे रोकेगा तू ऐ नाख़ुदा क्या ग़र्क़ होने से।
कि जिनको डूबना है डूब जाते हैं सफ़ीनों में।।
पिछले कुछ महीनों पहले आज़मगढ़ में हसद, बुग़्ज की चिंगारी से मौलाना आमिर रशादी मदनी के ऊपर बेबुनियाद आरोप लगाकर समाज में उनकी छवि धूमिल करने का जो प्रयास किया गया था वो बेहद निंदनीय व ख़ुद को कमज़ोर करने की शर्मनाक हरकत थी। इस मामले में जहां आज़मगढ़ में लोगों को अपने क़ायद के समर्थन में ज़ोर-शोर से उतरना चाहिए था वहीं ज़्यादातर लोग ख़ामोशी अख़्तियार करे बैठे रहे।
जिस तंज़ीम राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल का गठन कर मौलाना आमिर रशादी ने उसे मज़लूमों की आवाज़ बनानी चाही। उसे आज़मगढ़ के ही सेक्युलर निठल्ले हमदर्दों ने तोड़ने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जिसका आप “झूठे इल्ज़ामों पर बात-बात में जज़्बात की रौ में बह जाने वालों लोगों” भरपूर साथ दिया ।
अभी 4 दिनों पहले आज़मगढ़ के एक नौजवान “आरिज़” नसीरपुर को गिरफ्तार किया गया। जैसा कि ये बताया गया कि वो बटला कांड में फरार था, और फिर दूसरे दिन अखबार में हेडिंग छपनी शुरू हो गयी कि फरार आतंकियो के रिश्तेदारों, घरों, आस-पड़ोस के गावों पर नज़र रखी जायेगी और छापेमारी की जाएगी। 4 दिन पुरे हो चुके है मुसीबतें सर पर मंडरा रही है पर अफसोस ? आज चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ है।
धीरे-धीरे हर व्यक्ति के ज़ेहन में वही सन्नाटा व डर बैठ रहा है, जैसा कुछ वर्षों पहले बटला हाउस इनकाउंटर के समय बैठा था। क्या कोई किसी सेक्यूलर हमदर्द की आवाज़ आ रही है? जो इस सन्नाटे को कुछ कम कर सके। आवाज़ आई भी तो उसी तंज़ीम की, उसी राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल पार्टी की जो आप के लिए बनी थी। पर अफ़सोस कि उसे आप ने कभी अहमियत न देनी चाही। बाक़ी तोड़ने मरोड़ने व आपके द्वारा लगाये गये इल्ज़ामों की एक लम्बी फेहरिस्त ज़रूर मिल जायेगी।
यदि अल्लाह पर भरोसा क़ायम रखते हुए उस आदमी से उम्मीद वाबिस्ता रखनी हो तो आपको एकजुट व एकसाथ होना पड़ेगा। जहां आपको मतलब की कुर्बानी देनी होगी, किसी मज़लूम का साथ देने के लिए। आपको झूठ की कुर्बानी देनी होगी हक़ और सच का साथ देने के लिए। अपनी मस़रूफ़ियत की कुर्बानी देनी होगी मुसीबतज़दा लोगों की ख़ातिर वक़्त निकालने के लिए। अगर आप इन में से कोई कुर्बानी देने को तैयार नहीं, तो आप अपनी और अपने आने वाली नस्लों पर ज़ुल्म मुस़ल्लत़ होने का इंतेज़ार करिए।
…बेशक हर गैब की बात अल्लाह ही जानता है।
(शहबाज़ रशादी राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल से जुड़े हैं और अलग-अलग मुद्दों पर बहुत ही बेबाकी से लिखते हैं। ये उनकी निजी राय है)