Breaking
22 Nov 2024, Fri

राम जन्मभूमि ट्रस्ट के गठन पर काशी से विरोध के स्वर उठे हैं। रामालय न्यास ने केन्द्र सरकार पर ट्रस्ट के गठन में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी और सनातन धर्म के सर्वोच्च संतों की उपेक्षा का आरोप लगाया है। रामालय न्यास के सचिव और अखिल भारतीय श्रीरामजन्मभूमि पुनरुद्धार समिति के उपाध्यक्ष स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा है कि सरकार की इस मनमानी को अदालत में चुनौती दी जाएगी।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने गुरुवार को श्रीविद्यामठ में कहा कि सर्वोच्च अदालत ने मंदिर निर्माण के लिए योजना (स्कीम) बनाने को कहा था। सर्वोच्च धर्माचार्यों का एक ट्रस्ट रामालय न्यास मौजूद है। ऐसे में सरकार ने अलग से ट्रस्ट क्यों बनाया? नए ट्रस्ट में ‘कार्यकर्ता संतों’ को रखा जाना संदेह पैदा कर रहा है। धर्म को लोकोन्मुख बनाने और जटिल गुत्थियों को सुलझाने वाले गुरुओं की उपेक्षा होगी तो सनातन हिंदू धर्म की रक्षा कैसे हो पाएगी? उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ने न केवल शीर्ष धर्माचार्यों बल्कि अयोध्या के कई संत महंतों का भी अपमान किया है।

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य व प्रतिनिधि अविमुक्तेश्वरानंद ने ट्रस्ट में दलित सदस्य शब्द के प्रयोग पर भी सवाल उठाते हुए इसे हिंदू समाज में भेदभाव पैदा करने वाला बताया। उन्होंने कहा कि ऐसे में ओबीसी का भी सदस्य शामिल किया जाना चाहिए था। प्रयाग के संत वासुदेवानंद को ज्योतिष पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य कहे जाने पर आपत्ति उठाते हुए उन्होंने कहा कि यह न्यायालय की अवमानना है। इसके खिलाफ भी अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ताओं से संपर्क किया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि रामालय न्यास में चारों पीठों के शंकराचार्य, तेरह अखाड़ों के महामण्डलेश्वर और हिन्दू धर्माचार्य सभा के संयोजक सहित रामजन्मभूमि मन्दिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास शामिल हैं। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि इस न्यास ने हजारों मन्दिर बनाए और संचालित कर रहे हैं।

By #AARECH