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17 Oct 2024, Thu

निकम्मा यूनानी निदेशालय: चिकित्सकों को नहीं देता है प्रोमोशन

लखनऊ, यूपी

यूपी के कई सरकारी विभाग ऐसे हैं जो किसी अजूबे से कम नहीं हैं और उनकी कार्यप्रणाली पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। बात अगर यूनानी निदेशालय की जाए तो ये विभाग सरकारी सबसे अजूबा सरकारी विभाग है। अयूष विभाग के अंतर्गत आने वाला यूनानी विभाग पहले आयूर्वेद से साथ एक ही निदेशालय के अंतर्गत आता था। उस दौरान यूनानी चिकित्सा पद्दति के साथ नाइंसाफी होता देख लोगों ने संघर्ष किया। इसके परिणाम स्पारूप नया यूनानी निदेशालय बनाया गया।

अब निदेशालय में कहने को तो सभी यूनानी पद्दति से आते हैं लेकिन विभाग की मौजूदा दशा पहले से भी खराब है। सबसे हैरतअगेज़ बात ये है कि यहां के चिकित्सकों को ज्वाइन करने के बाद प्रोमोशन ही नहीं मिलता है। दरअसल निदेशालय के निकम्मेपन की वजह से यहां चिकित्सा सेवा में कार्यरत चिकित्सकों की डीपीसी यानी डिपार्मेंटल प्रोमोशन कमेटी का गठन नहीं हो रहा है। इस वजह से यहां काम करने वाले चिकित्सकों को प्रोमोशन मिलता संभव नहीं है। ये नाइंसाफी चिकित्सकों के साथ पिछले 26 साल हो रही है।

क्यो नहीं हो रहा है प्रोमोशन
यूनानी निदेशालय में चिकित्सकों को प्रोमोशन न देने के पीछे गहरी साज़िश है। दरअसल यूनानी विभाग में चिकित्सकों के दो सेवा संवर्ग हैं। इनमें चिकित्सा शिक्षा सेवा संवर्ग और चिकित्सा सेवा संवर्ग अलग-अलग संवर्ग काम कर रहे हैं। चिकित्सा शिक्षा के अंतर्गत दो यूनानी कॉलेज में पढ़ाने वालों प्रोफेसर, असिस्टेंट आते हैं जबकि चिकित्सा सेवा में यूनानी अस्पतालों और डिस्पेंसरी के कार्यरत चिकित्सक होते हैं।

मौजूदा समय में निदेशक डॉ सिकंदर हयात सिद्दीकी चिकित्सा शिक्षा सेवा संवर्ग यानी यूनानी मेडिकल कॉलेज से आए हैं। इसलिए वो चिकित्सा सेवा संवर्ग के डॉक्टरों की डीपीसी यानी डिपार्मेंटल प्रोमोशन कमेटी नहीं बना रहे हैं। जिसकी वजह से चिकित्सा सेवा संवर्ग के चिकित्सकों का प्रोमोशन नहीं हो रहा है। इसके पीछे की साजिश ये है कि निदेशालय में सिर्फ चिकित्सा शिक्षा संवर्ग के लोग ही निदेशक बन सकें। इससे पहले भी निदेशक चिकित्सा शिक्षा सेवा संवर्ग से बने थे।

नहीं मिले यूनानी निदेशक
यूनानी निदेशालय में डॉ सिकंदर हयात सिद्दीकी पांच सालों से निदेशक पर कार्यरत हैं। पीएनएस टीम जब निदेशालय पहुंची तो वहां निदेशक डॉ सिकंदर हयात नहीं मिले। उनके स्टाफ द्वारा बताया गया कि वह किसी काम से बाहर गए हैं। दरअसल निदेशक अपने कार्यालय में कम और मंत्रियों व नेताओं के यहां ज़्य़ादा चक्कर लगाते हैं। सपा सरकार में तो उन्हें एक कद्दावर मुस्लिम मंत्री में यहां हमेशा जी-हुज़ूरी करते देखा जा सकता था।

यूनानी निदेशालय का दावा
इस संबंध में जब पीएनएस ने राजधानी लखनऊ के इंदिरा भवन में मौजूद यूनानी निदेशालय से जानकारी मांगी तो बताया गया कि 1991 में एक डीपीसी बनी थी। उसके बाद 2012 में डीपीसी यानी डिपार्मेंटल प्रोमोशन कमेटी बनाई गई है। ऑफिस स्टाफ ने बताया की डीपीसी की फाइल कई विभागों में जा चुकी है और अब ये वित्त और कार्मिक विभाग में हैं। जब डीपीसी फाइल की और जानकारी मांगी गई तो कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।

प्रमुख सचिव कार्यालय को जानकारी नहीं
डीपीसी के संबंध में निदेशालय के स्टाफ के दावे की सच्चाई जानने के लिए जब प्रमुख सचिव कार्यालय से बात की गई तो पता चला कि ऐसी कोई फाइल नहीं है। जबकि डीपीसी फाइल सबसे पहले प्रमुख सचिव के कार्यालय में जाना चाहिए थी। ऐसा लगता है कि यूनानी निदेशालय में बहुत कुछ गड़बड़ है जिसकी पर्देदारी की जा रही है।