जेनेवा
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार जांचकर्ताओं ने गुरुवार को कहा कि बंगलादेश पहुंचे रोहिंग्या शरणार्थियों ने कहा कि म्यांमार में उनके विरुद्ध यातना समेत हिंसा जारी है तथा जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए पूरा माहौल ‘खतरनाक’ बना हुआ है। म्यांमार पर स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय तथ्यान्वेषी मिशन के सदस्यों ने कॉक्स बाजार में कुतुपलांग के शरणार्थी शिविर की पांच दिवसीय यात्रा समाप्त करने के बाद यहां यह बात कही। मिशन के सदस्यों ने गत वर्ष अगस्त में म्यांमार के राखिने राज्य में सेना के अभियान के बाद भागे 7 लाख से अधिक रोहिंग्याई मुसलमानों में से नये आये लोगों का साक्षात्कार किया।
जांचकर्ताओं ने एक बयान में कहा, “शरणार्थियों ने हिंसा और उत्पीड़न का सामना करने वाले अत्यधिक खतरों का उल्लेख किया जिससे वे अपनी आजीविका के स्रोतों से अलग हो रहे हैं। और अंततः खतरनाक माहौल के कारण उन्हें म्यांमार छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है। नये शरणार्थियों का आगमन म्यांमार में मानवाधिकारों के उल्लंघन की निरंतर गंभीरता को भी दर्शाता है।”
म्यांमार में अधिकारियों से इस पर तत्काल कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। पूर्व में म्यांमार ने कई बार अधिकारों के दुरुपयोग से साफ इन्कार किया है। संयुक्त राष्ट्र ने मई में म्यांमार के साथ एक समझौता किया था, जिसका उद्देश्य बंगलादेश में रह रहे कई लाख रोहिंग्या शरणार्थियों को सुरक्षित रूप से और स्वेच्छा से वापस लौटने की इजाजत देना था लेकिन रायटर द्वारा देखे गये इस गुप्त समझौता में शरणार्थियों को पूरे देश में नागरिकता या आंदोलन की स्वतंत्रता की कोई स्पष्ट गारंटी नहीं दी गयी थी।
जांचकर्ता राधिका कुमरस्वामी ने कहा,“ इन युवकों के साथ मैंने बात की वे विशेष रूप से चिंतित थे और उन पर गहरे आघात के संकेत दिखते थे। शिक्षा और आजीविका के बिना मैं उनके भविष्य के लिए डरती हूं।” जांचकर्ता 18 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद को अपने निष्कर्षों की रिपोर्ट सौंपेगे। विभिन्न देशों के 47 सदस्यीय जिनेवा मंच ने जांच का आदेश दिया था।