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22 Dec 2024, Sun

कश्मीर को बचाना है तो मुनीर को आतंकवादी होने से बचाइए

उमाशंकर सिंह की फेसबुक वाल से

नई दिल्ली
टीवी चैनलों पर एंकर्स उचक-उचक कर चिल्ला रहे हैं। कश्मीर में ज़िंदा पकड़ा गया आतंकवादी। फिर मोबाइल पर रिकार्ड किए गए मुनीर के कबूलनामे को सुनाते हैं। वह बताता है कि उसे रायफल छीनने भेजा गया था। एटीएम लूटने भी। सूमो से आया। आज ही लौटना था। उसे कोई ट्रेनिंग नहीं मिली है। मुनीर के हर शब्द को सुनाया और स्क्रीन पर पढ़ाया भी जाता है। उसके आतंकवादी होने पर ज़ोर दिया जाता है। लेकिन इन तमाम शोर के बीच उसकी एक बात या तो सुनी नहीं जाती या फिर उसे ग़ौर करने लायक समझा नहीं जाता। टीवी विमर्श में भी उसे कोई जगह नहीं मिलती। वह कहता है कि भेजने वाले ने उसे कहा जाओ रायफल छीन कर आओ नहीं तो गोली मार देंगे।

आप और हम में से किसी को मुनीर का बैकग्राउंड नहीं पता। न इसे जानने की फ़ौरी ज़रूरत समझेंगे। क्योंकि वह रायफ़ल छीनने की कोशिश करता पकड़ा गया इसलिए उसके क़बूलनामे के उन हिस्सों को तो ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह लेंगे जो उसे आतंकवादी साबित करता हो, पर उन हिस्सों को मुनीर का बहाना मानेंगे जो उसे ज़बरदस्ती इस वारदात के लिए भेजा गया बताता हो। आप नतीजे पर पहुँचने को आज़ाद हैं लेकिन मैं उसके बताए इस डर को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। मैं क्या कश्मीर को जानने वाला कोई नहीं कर सकता। मुनीर का ये बयान दरअसल कश्मीर में एक बार फिर भयावह हो चुके उस माहौल का सबूत है जहाँ हथियारबंद आतंकवादी कश्मीरियों को हर तरह से इस्तेमाल कर रहे हैं। कहीं जिहाद के नाम पर बरगला कर तो कहीं बंदूक़ का ख़ौफ़ दिखा कर वे उन्हें अपने साथ ज़बरदस्ती खींच रहे हैं।

और हम क्या कर रहे हैं? उन्हें आतंकवादी बता कर उन्हें अपने से दूर कर रहे हैं। मेरी नज़र में रायफल छीनने और पैसे लूटने भेजा गया मुनीर आतंकवादी नहीं है। उसे आतंकवादी अपने टूल के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे हज़ारों मुनीर हैं कश्मीर में। वे मुनीर की तरह ख़ुशक़िस्मत नहीं कि ज़िंदा पकड़े जाएँ। लेकिन ज़िंदा पकड़ा गया मुनीर भी क्या ख़ुशक़िस्मत होगा। अब जब तक ज़िंदा रहेगा, आतंकवादी होने के दाग़ के साथ रहेगा। या तो जेल में सड़ेगा। या फांसी चढ़ेगा। फिर किसी दिन ‘भागने की कोशिश करते हुए’ सुरक्षाबलों के हाथों मारा जाएगा।

मुनीर ने ये भी क़बूला है कि वो पढ़ाई करता है। पर उसके पकड़े जाने का मौक़ा उससे ये पूछने की इजाज़त नहीं देता कि पढ़ाई करते करते आख़िर आतंकी वारदात में कैसे शामिल हो गया। वह बोलेगा भी तो हम सुनेंगे नहीं। हमारे पास कश्मीर को सुनने का वक़्त और संयम नहीं। हमें बस कश्मीर दिखाना है। कभी कश्मीर की बर्फ़बारी दिखानी है तो कभी उसे आतंकवाद की आग में धू धू जलते दिखाना है। दोनों ही कश्मीर को अपना बताना और बनाना है। पर कश्मीर को चाहे जितना अपना बताते रहिए वह अपना नहीं बनेगा जब तक आप मुनीर को नहीं बचाइएगा। उन आतंकवादियों से जिन्होंने उन्हें बंदूक़ का डर दिखा कर बंदूक़ छीनने भेजा। और यहाँ वो बंदूक़ का शिकार हो पकड़ा गया। यही कश्मीरियों का दर्द है जो वो क़रीब तीन दशकों से कहने की कोशिश कर रहे हैं। ये कि वे दो बंदूक़ों के बीच पिस रहे हैं। पर हम सुनें तब न!बंदूक़ वे भी तानते हैं। बंदूक ये हम भी दागते हैं। रही सही कसर टीवी चैनल पूरा कर देते हैं। मुनीर को आतंकवादी क़रार देते हैं।

चलिए मान लेते हैं कि मुनीर बुज़दिल था कि डर में आ गया। उसे जिन्होंने भेजा उनके सामने तन जाना चाहिये था कि मैं नहीं जाता। चाहे गोली मार दो। पर उसे सिर्फ अपनी चिंता नहीं रही होगी। उसे अपने परिवार की भी चिन्ता होगी। हथियारबंद आतंकियों के हाथों उनकी सलामती की चिन्ता होगी। कोई भाई होगा उसकी चिन्ता होगी। अगर बहन होगी तो उसकी चिंता होगी। पर जिस एंकाउंटर स्थल पर पकड़ा गया वहाँ उससे ये सब पूछना जानना बेमानी है। उसका क़बूलनामा बड़ी ख़बर है। उसकी लाचारी में वो बात कहाँ आएगी। हमारा सुरक्षातंत्र मुनीर को आतंवादियों के हाथ पड़ने से नहीं बचा पाया इसलिए मुनीर आज यहाँ मिला।

मुनीर तो पकड़ा गया पर वे कहाँ हैं जिन्होंने उसे भेजा। उकसाया और डराया। पैसे का लालच भी दिया। वे सीमापार के हैं तो अंदर कैसे आए? क्या बेतुका सवाल है मेरा। अरे पहाड़ी लाँघ कर। तारबंदी काट कर। अच्छा ये सब अब भी इतना आसान है तो फिर तारबंदी का फ़ायदा क्या हुआ? एलओसी पर चौकसी कमज़ोर क्यों है अब तक? इतनी बड़ी तादाद में फ़ौज है तो वो क्या कर रही है? संभव नहीं है घुसपैठ पूरी तरह रोक पाना। क्यों? भौगोलिक स्थिति दुरूह है। नदी नाले और दुर्गम पहाड़ियाँ हैं। अच्छा ये तो हमेशा से हैं। हाँ पर संसाधन की कमी है। देश की सुरक्षा के लिए संसाधन की कमी! फिर को सीमापार की ख़ूनी मंशा हमें बीधेंगी ही। मतलब ये भी है हम अभी एलओसी पर इस्रायल जैसे नहीं बने हैं। बस अंदरूनी इलाक़ों में इस्रायल बनने का भाव भर रहे हैं। रक्षा घेरे पर की बजाए कश्मीर के शहर और गाँव में ज़्यादा बड़ी लड़ाई लड़ रहे है।

हम आतंकवादियों को घुसते ही नहीं मार पाते। अपनी सुरक्षा दीवार को इतनी मज़बूती नहीं दे पाए हैं कि आतंकवादियों को घुसने से रोक सकें। गोलाबारूद लाने से रोक सकें। फिर तो एक घुस आया तो अंदर दस बीस मुनीर पैदा करेगा ही। मुनीर के ही घर में घुस कर खाएगा। बंदूक़ की नोक पर मुनीर को निहत्था ही रायफल छीनने भेजेगा। उससे बैंक लुटवाएगा। फिर उसी रायफल से सुरक्षाकर्मियों की जान लेगा और लुटे हुए पैसे बाँट कर पत्थरबाज़ी कराएगा। ये कड़ी तोड़नी है तो पहली कड़ी पर चोट करनी पड़ेगी। सेना और सुरक्षाबलों ने मिलकर सीमा सील कर लिया तो फिर कश्मीर में ‘लॉ एंड आर्डर की समस्या’ आसानी से सुलझ जाएगी।

दो-ढाई साल कश्मीर रहा हूँ। लगातार। इसके अलावा आना जाना लगा रहा है। हमेशा। 2000-2001 का दौर था। कश्मीर यूनिवर्सिटी में एक प्रोफ़ेसर ने कुछ छात्रों से मिलवाया। तब कश्मीर में ग्रेनेड फेंकने में नौजवानों का जमकर इस्तेमाल होता था। क्यों आप लोग फेंकते हो ग्रेनेड। क्यों न फेंके। डबल एमए हूँ। पर काम नहीं। बाप बीमार है और बहन की पढ़ाई के पैसे नहीं। एक ग्रेनेड फेंकने के तीन सौ मिलते हैं। न फेंके तो वे हम पर फेंक देंगे। गोली और ग्रेनेड के इस कश्मीर के डर मानने से इंकार कर देने वालों की कनपटी पर कोई पिस्तौल लगा दे तो डर से वे यहाँ दिल्ली में अपना सबकुछ लुटवा लें।

ये हर तरफ से घिरे युवा की बेबसी है जो उससे ख़ूँख़ार आतंकवादी में तब्दील होने की राह पर धकेलती रही है। आख़िर हमारी सेना और सुरक्षाकर्मी आम कश्मीरियों को आतंकवादियों से क्यों नहीं बचा पा रहे। उन्हें उनके गाँव घरों तक पहुँचने से क्यों नहीं रोक पा रहे। मैं सेना और सुरक्षाबल की क्षमता पर सवाल नहीं उठा रहा। बस इतना बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि एक बार हथियारबंद और बरगलाने में माहिर आतंकवादी गाँव शहर और घर तक पहुँच गए तो अंजाम वही होता है जो हम आज देख रहे हैं। वे युवाओं को मुनीर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। वे हथियार भी उठनाते और दिमाग़ में ज़हर भी भरते हैं। सीमापार से आया आतंकवाद ने इसी तरह स्थानीय चरित्र हासिल किया। वरना कौन माँ अपने बेटे को मुनीर या हैदर बनने देना चाहती है। शौहर को फ़िदायीन हमलावर बना देखना चाहती है।

पर हमें मुनीरों की बेबसी बिल्कुल नज़र नहीं आती। ये तब नज़र आते हैं जब इनके हाथ में पत्थर आ जाता है। ये मुनीर तब नज़र आता है जब वह एटीएम लूटने की कोशिश करता पकड़ा जाता है। मैं जानता हूँ राष्ट्रवाद के मौजूदा शोर के बीच कई मुझ पर और इस लेख पर सवाल उठाएँगे। मुझे आतंवादियों का शुभचिंतक से लेकर देशद्रोही तक कह देंगे हैं। पर मैं अपने कश्मीर के अनुभव के आधार पर कहता रहूँगा कि देशवासियों, कश्मीर को बचाना है तो मुनीर को आतंकवादी होने से बचाइए।

(लेखक एनडीटीवी में वरिष्ठ पत्रकार हैं और अंतरराष्ट्रीय मामलें के जानकार हैं)