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22 Nov 2024, Fri

विधान सभा चुनाव: घुटने टेकने का नहीं संघर्ष करने का वक्त

ए सईद

नई दिल्ली
यूपी विधान सभा चुनाव का परिणाम पिछले लोकसभा चुनाव का ही एक और वर्जन बन गया है। कम वोट के बावजूद बीजेपी ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया है जिसकी कोई उम्मीद नहीं थी।  सामान्य रुप से यह धारणा आम हो रही है कि बीजेपी अब अधिक खतरनाक होता जा रही है। बीजेपी और आरएसएस के नेताओं के बयानों और प्रतिक्रिया को दोखें तो ये साफ ज़ाहिर होता है कि ये पहले से ज़्यादा खतरनाक होते जा रहे हैं। सेक्यूलर अब मुख्य मुख्य धारा से दूर होते जा रहे हैं।

मुस्लिम मतों का बंटवारा
चुनाव के परिणाम पर विश्लेषण करे तो मुस्लिम मतों का विभाजन कराना ही आज बहसों का बड़ा मुद्दा बनाया जाता है। टिप्पणीकर्ता इन तथ्यों से परिचित है कि शक्तिशाली मुस्लिम वोट यूपी में मुख्यधारा से जुड़े है। जहाँ मुस्लिम वोटर्स की संख्या अधिक है। मुस्लिम वोट सपा, बीएसपी, कांग्रेस और विभिन्न छोटे दलों के बीच विभाजित हो जाता है। इन पार्टियों की विचारधारा को छोड़कर यूपी में अब तक ऐसी राजनीतिक स्थिति नहीं है जिस में मुस्लिम प्रभावी मतदाता स्टैंड के रुप में माना जाता हो। चुनाव में इन पार्टियों की तरफ से अपनाई गई विचारधारा का अनुमान लगाना चाहिए। बीएसपी, माकपा, एमआईएम और मुस्लिम लीग जैसी पार्टियाँ अलग-अलग चुनाव लड़ी। राहुल गांधी और अखिलेश यादव का गठबंधन ही इस चुनाव के स्वस्थ सुसज्जित कदम नज़र आया।

मुलायम सिंह का कंफ्यूजन
इसी गठबंधन को मुलायम सिंह यादव ने सिर्फ अस्वीकार ही नहीं किया बल्कि कई बार इसे कमज़ोर करने की कोशिश भी की। मुलायम सिंह ने ऐसा क्यों किया ये बड़ा सवाल है। पिछले लोक सभा चुनाव की तरह इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी के उच्च स्तर के नेताओं को चुनावी अभियान में नहीं देखा गया। एमआईएम के उम्मीदवारों के कारण सपा और बीएसपी के कई उम्मीदवार बीजेपी के खिलाफ चुनाव हार गए। एक फासिस्ट सरकार के भारी कदमों को रोकने के लिए यह कोशिश काफी थी क्या?

एसडीपीआई का समर्थन गठबंदन को क्यों
गरीबों और अल्पसंख्यकों के सभी समस्याओं का अंतिम समाधान समाजवादी पार्टी और कांग्रेस है, ऐसा एसडीपीआई ने कभी नहीं कहा। दुसरी तरफ हमने देखा कि फासिस्ट ताकतों के खिलाफ यह गठबंधन ही कुछ खास महत्व रखता है। यहीं वजह है कि एसडीपीआई ने उसका समर्थन किया। चुनाव का परिणाम इस बात की ओर इशारा करता है कि यह फैसला सही था। इलेक्ट्राँनिक वोटिंग मशीन के बारे में उठने वाले सारे सवाल और संदेह के साथ-साथ यह बात भी चुनावी विश्लेषण के चर्चा में आना चाहिए। अंतराष्ट्रीय और भारतीय फासिस्ट ताकतें एकजुट होकर लोकतंत्र को जो धमकी दे रही हैं वो आने वाले कल के लिए खतरे की घंटी है। ऐसे में निम्नलिखित उनके व्यावहारिक एजेंडें संक्षिप्त सूची में है।

1– पूंजीकरण
2– सांप्रदायिकता
3– मुसलमानों का शिकार
4– संस्कृति का विनाश

डर का माहौल
किसी न किसी तरह देश के सभी राजनीतिक दल इस योजना में भागीदार हैं। देश की कल्याणकारी राज्य की सोच, बराबरी, भाईचारा, कमजोर वर्गो के अस्तित्व और महिलाओं के लिए सुरक्षित प्रणाली अब तक ख़तरों में है। डर और भय के सामने लोग घुटना टेक रहे है। वोट की खरीद बिक्री, गुंडा राज, परिवारिक राजनीति और इलेक्ट्राँनिक वोटिंग सिस्टम के बारे में संदेह जैसी कुछ ऐसी चीजें है जिस के कारण लोकतंत्र पर भरोसा कम होता जा रहा है। ऐसे में एक बात तो साफ नज़र आ रही है कि कहीं न कहीं इससे दलित, पिछड़ो और मुसलमानों को नुकसान हो रहा है।

जागरुकता ज़रूरी
ये समस्या चाहे जितनी गहरी हो लेकिन इस सारी समस्याओं के समाधान भी मौजूद है। इसके लिए लोग एक दूसरे के बारे में सोचते है उन कार्यों को अंजाम देने के लिए जो वे अपने मन में विचार करते है। वर्तमान स्थिति में भारतीय लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए केवल यह उम्मीद काफी नहीं है। बदलाव लाने के लिए जागरुक लोगों को जुनून के साथ कार्य मैदान में उतरने के लिए तैयार होना चाहिए। उनमें कुर्बानी भी देने का जज़्बा होना चाहिए, वरना मानसिक परेशानियाँ नहीं बदलेंगी। अक बात तो सौ फीसदी सही है कि अंतिम विजय उसी की होगी जो लोग सच और अधिकार के मुहाफिज़ है।

(लेखक एसडीपीआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, ये लेखक के अपने विचार हैं)