बहराइच, यूपी
कहने को तो जमाने में हम सब एक मुसलमान हैं लेकिन हम उसी वक्त सच्चे मुसलमान और मोमिन-ए कामिल हो सकते हैं, जब हम अपनी तमाम जिंदगी और ख्वाहिसातों को नबी-ए-करीम सल की मोहब्बत पर कुरबान कर दें और साथ ही नबी के तरीके पर चलते हुए जिंदगी गुजारें। ये बातें मुकामी मदरसा नूरुल उलूम के मुदर्रिस और जमीयतुल उलमा-ए-हिन्द के ज़िला सदर मौलाना कारी ज़ुबैर अहमद कासमी ने अन्जुमन गुलामाने मुस्तफा (सल) के ज़ेरे-ए-एहतिमाम मुनक्कित एक रोज़ा जलसा-ए-सीरतुन नबी (सल) को खिताब करते हुए कही।
मौलाना कारी ज़ुबैर अहमद कासमी ने खासकर नौजवानों को खिताब करते हुए कहा कि मौजूदा दौर में फ़ैल रही बेहयाई और सोशल मीडिया के ज़रिये पेश हो रही गैर इंसानी चीजों से परहेज़ करते हुए दीन और इस्लाम के तरीकों को अपनी जिंदगी में उतारें जिससे उनकी उक़बा और आख़िरत दोनों कामियाब हो जाये। इस जलसे का इनकाद मुकामी नया सलारगंज के मिशन हॉस्पिटल के पीछे किया गया। इस प्रोग्राम की सदारत मदरसा सुल्तानुल उलूम के बानी और सरबराह मौलाना सिराज अहमद मदनी ने किया। प्रोग्राम की निज़ामत के फरायज़ को मौलाना सूफियान अहमद कासमी ने अन्जाम दिया।
इस जलसे का बाकायदा आगाज़ हाफिज ज़ियाउल हक की तिलावत-ए-कलाम पाक की करत से किया गया जबकि बारगाहे रिसालत में नज़राना-ए-अकीदत पेश करते हुए शायर हाफिज अशफाक़, शाहनशाह आलम, तारिक बहराइची और डॉ गुलशन पाठक ने सीरत-ए-पाक पर अपने अपने कलाम पेश किये। इस जलसे के ज़रिये मौलाना मुफ़्ती हारिश अब्दुल रहीम, मौलाना सिराज मदनी, हाफ़िज़ मोईनुद्दीन और मौलाना सुफियान वगैरह ने सहाबा-ए-ऐकराम की ज़िंदगी से सीरत-ए-इस्लाम पर तफ़सील से रौशनी डाली जबकि इस जलसे में कसीर तादाद में उम्मते मुस्लिमाँ के औरत, मर्द और बच्चे मौजूद रहे।
इसके अलावा खुसूसी तौर पर मदरसों के तालिब इल्म, मौलाना अहमद हुसैन, कारी महफ़ूजुर्रहमान, हाफ़िज़ मेराज, हाफ़िज़ खूबैब और हाफिज़ मआज़ अहमद वगैरह भी मौजूद रहे। इस जलसे में शिरकत करने वाले तमाम तालिब इल्मों को इनामात से भी नवाजा गया। इन तालिब इल्मों ने इस्लामी तकरीर, करत और नात-ए-पाक पेश कर बारगाहे रिसालत में नज़राना-ए-अकीदत पेश किया। जलसे का एहतिमाम मुफ़्ती हारिस अब्दुल रहीम की दुआ से किया गया।