कौन हैं पेरियार? इसके जवाब में यही कहा जा सकता है कि दक्षिण भारत की राजनीति मौजूदा तस्वीर काफी हद तक पेरियार से प्रभावित रही है। वो जीवन भर रूढिवादी हिंदुत्व का विरोध तो करते ही रहे, साथ ही हिन्दी के अनिवार्य पढाई के भी घनघोर विरोधी रहे। उन्होंने अलग द्रविड़ नाडु की भी मांग कर डाली थी। उनकी राजनीति शोषित और दलितों के इर्दगिर्द घूमती रही।
पेरियार का असल नाम ई वी रामास्वामी था। वो तमिल राष्ट्रवादी, राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे। उनके प्रशंसक उन्हें सम्मान देते हुए ‘पेरियार’ कहते थे। पेरियार का मतलब है पवित्र आत्मा या सम्मानित व्यक्ति। उन्होंने ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ या ‘द्रविड़ आन्दोलन’ शुरू किया। जस्टिस पार्टी बनाई, जो बाद में जाकर ‘द्रविड़ कड़गम’ हो गई। उन्हें एशिया का सुकरात भी कहा जाता था। विचारों से उन्हें क्रांतिकारी और तर्कवादी माना जाता था। वह एक धार्मिक हिंदू परिवार में पैदा हुए, लेकिन ब्राह्मणवाद के घनघोर विरोधी रहे। उन्होंने न केवल ब्राह्मण ग्रंथों की होली जलाई बल्कि रावण कोअपना नायक भी माना।
हिंदू धर्म की बेतुकी बातों का उड़ाते थे मजाक
इरोड वेंकट रामास्वामी नायकर का जन्म 17 सितम्बर 1879 में तमिलनाडु में ईरोड में हुआ। पितावेंकतप्पा नायडु धनी व्यापारी थे। घर पर भजन तथा उपदेशों का सिलसिला चलता रहता था। हालांकि वो बचपन से ही उपदशों में कही बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते थे। हिंदू महाकाव्यों तथा पुराणों की परस्पर विरोधी तथा बेतुकी बातों का माखौल उड़ाते थे। वो बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह के खिलाफ होने के साथ स्त्रियों तथा दलितों के शोषण के पूरी तरह खिलाफ थे। उन्होंने हिंदू वर्ण व्यवस्था का बहिष्कार भी किया। उन्होंने हिंदू धर्मग्रंथों को जलाया भी।
काशी ने नास्तिक बना दिया
15 साल की उम्र में पिता से अनबन होने के कारण उन्होंने घर छोड़ दिया। वह काशी चले गए। वहां उन्होंने धर्म के नाम पर जो कुछ होता देखा, उसने उन्हें नास्तिक बना दिया। वो वापस लौटे। जल्दी ही अपने शहर की नगरपालिका के प्रमुख बन गए। केरल में कांग्रेस के उस वाईकॉम आंदोलन की अगुवाई करने लगे, जो मंदिरों की ओर जाने वाली सड़कों पर दलितों के चलने पर पाबंदी का विरोध करता था।
कांग्रेस में शामिल हुए और छोड़ा
चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के पहल पर वह 1919 में कांग्रेस के सदस्य बने थे। असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। गिरफ्तार हुए। 1922 में वो मद्रास प्रेसीडेंसी कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बने। जब उन्होंने सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण का प्रस्ताव रखा और इसे कांग्रेस में मंजूरी नहीं मिली तो 1925 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी। उन्हें महसूस हुआ कि ये पार्टी मन से दलितों के साथ नहीं है।
दलितों के समर्थन में आंदोलन
कांग्रेस छोड़ने के बाद वो दलितों के समर्थन में आंदोलन चलाने लगे। पेरियार ने 1944 में अपनी जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर द्रविड़ कड़गम कर दिया। इसी से डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) पार्टी का उदय हुआ। उन्होंने खुद को सत्ता की राजनीति से अलग रखा। जिंदगी भर दलितों और स्त्रियों की दशा सुधारने में लगे रहे।
हिंदी का विरोध
1937 में जब सी. राजगोपालाचारी मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्यमंत्री बने तब उन्होंने स्कूलों में हिंदी भाषा की पढ़ाई अनिवार्य कर दी। तब पेरियार हिंदी विरोधी आंदोलन के अगुवा बनकर उभरे। उग्र आंदोलनों को हवा दी। 1938 में वो गिरफ्तार हुए। उसी साल पेरियार ने हिंदी के विरोध में ‘तमिलनाडु तमिलों के लिए’ का नारा दिया। उनका मानना था कि हिंदी लागू होने के बाद तमिल संस्कृति नष्ट हो जाएगी। तमिल समुदाय उत्तर भारतीयों के अधीन हो जाएगा।
दूसरा विवाह
वर्ष 1933 में उनकी पत्नी नागाम्मै का निधन हो गया। इसके 15 साल बाद उन्होंने दूसरी शादी की। तब उनकी उम्र 69 वर्ष थी जबकि उनकी दूसरी पत्नी की उम्र थी 30 वर्ष। इस शादी को लेकर विवाद भी हुआ। उनकी पार्टी के लोगों ने उनसे ऐसा नहीं करने को कहा। उनकी दूसरी पत्नी मनियामई दरअसल पेरियार की निजी सचिव थीं। पेरियार का तर्क था कि जिस तरह से मनियामई उनकी देखभाल करती हैं, उससे उन्हें लगता है कि उन्हें उनसे शादी कर लेनी चाहिए। इस शादी के बाद उनकी पार्टी में नाराजगी भी फैली।
टाइम लाइन
1879: 17 सितम्बर को ई वी रामास्वामी का जन्म
1898: 19 वर्ष की आयु में नागाम्मै से विवाह
1904: पेरियार ने काशी की यात्रा और नास्तिक बने
1919: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल
1922: मद्रास प्रेसीडेंसी कांग्रेस समिति के अध्यक्ष चुने गए
1925: कांग्रेस में अपने पद से इस्तीफा दिया
1924: पेरियार ने वायकाम सत्याग्रह का आयोजन
1925: ‘सेल्फ रेस्पेक्ट’ आंदोलन शुरू किया
1929: यूरोप, रूस और मलेशिया समेत कई देशों की यात्रा
1929: अपना उपनाम ‘नायकर’ को छोड़ा
1938: ‘तमिल नाडु तमिलों के लिए’ का नारा दिया
1939: जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष बने
1944: जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर ‘द्रविड़ कड़गम’ किया
1948: अपने से 40 साल छोटी लड़की से दूसरा विवाह किया
1949: पेरियार और अन्नादुराई के बीच मतभेद से द्रविड़ कड़गम में विभाजन
1973: 24 दिसम्बर को निधन
ब्राह्मणवाद विरोधी पेरियार की विवादित बातें
ई वी रामास्वामी यानि पेरियार ने ताजिंदगी हिंदू धर्म और ब्राह्मणवाद का जमकर विरोध किया। उन्होंने तर्कवाद, आत्म सम्मान और महिला अधिकार जैसे मुद्दों पर जोर दिया। जाति प्रथा का घोर विरोध किया। यूनेस्को ने अपने उद्धरण में उन्हें ‘नए युग का पैगम्बर, दक्षिण पूर्व एशिया का सुकरात, समाज सुधार आन्दोलन का पिता, अज्ञानता, अंधविश्वास और बेकार के रीति-रिवाज़ का दुश्मन’ कहा। पढ़िए उनकी वो पंद्रह बातें, जिनसे विवाद हुआ।
- मैंने सब कुछ किया। मैंने गणेश आदि सभी ब्राह्मण देवी-देवताओं की मूर्तियां तोड़ डालीं। राम आदि की तस्वीरें भी जला दीं। मेरे इन कामों के बाद भी मेरी सभाओं में मेरे भाषण सुनने के लिए यदि हजारों की गिनती में लोग इकट्ठा होते हैं तो साफ है कि ‘स्वाभिमान तथा बुद्धि का अनुभव होना जनता में, जागृति का सन्देश है।’
- दुनिया के सभी संगठित धर्मो से मुझे सख्त नफरत है।
- शास्त्र, पुराण और उनमें दर्ज देवी-देवताओं में मेरी कोई आस्था नहीं है, क्योंकि वो सारे के सारे दोषी हैं। मैं जनता से उन्हें जलाने तथा नष्ट करने की अपील करता हूं।
- ‘द्रविड़ कड़गम आंदोलन’ का क्या मतलब है? इसका केवल एक ही निशाना है कि, इस आर्य ब्राह्मणवादी और वर्ण व्यवस्था का अंत कर देना, जिसके कारण समाज ऊंच और नीच जातियों में बांटा गया है। द्रविड़ कड़गम आंदोलन उन सभी शास्त्रों, पुराणों और देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखता, जो वर्ण तथा जाति व्यवस्था को जैसे का तैसा बनाए रखे हैं।
- ब्राह्मण हमें अंधविश्वास में निष्ठा रखने के लिए तैयार करता है। वो खुद आरामदायक जीवन जी रहा है। तुम्हे अछूत कहकर निंदा करता है। मैं आपको सावधान करता हूं कि उनका विश्वास मत करो।
- ब्राह्मणों ने हमें शास्त्रों ओर पुराणों की सहायता से गुलाम बनाया है। अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए मंदिर, ईश्वर और देवी-देवताओं की रचना की।
- सभी मनुष्य समान रूप से पैदा हुए हैं तो फिर अकेले ब्राह्मण उच्च व अन्य को नीच कैसे ठहराया जा सकता है?
- आप अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई क्यों इन मंदिरों में लुटाते हो। क्या कभी ब्राह्मणों ने इन मंदिरों, तालाबों या अन्य परोपकारी संस्थाओं के लिए एक रुपया भी दान दिया?
- हमारे देश को आजादी तभी मिली समझनी चाहिए, जब ग्रामीण लोग, देवता,अधर्म, जाति और अंधविश्वास से छुटकारा पा जाएंगे।
- आज विदेशी लोग दूसरे ग्रहों पर संदेश और अंतरिक्ष यान भेज रहे हैं। हम ब्राह्मणों द्वारा श्राद्धों में परलोक में बसे अपने पूर्वजों को चावल और खीर भेज रहे हैं। क्या ये बुद्धिमानी है?
- ईश्वर की सत्ता स्वीकारने में किसी बुद्धिमत्ता की आवश्यकता नहीं पड़ती, लेकिन नास्तिकता के लिए बड़े साहस और दृढ विश्वास की जरुरत पड़ती है। ये स्थिति उन्हीं के लिए संभव है जिनके पास तर्क तथा बुद्धि की शक्ति हो।
- ब्राह्मणों के पैरों पर क्यों गिरना? क्या ये मंदिर हैं? क्या ये त्यौहार हैं? नही , ये सब कुछ भी नही हैं। हमें बुद्धिमान व्यक्ति कि तरह व्यवहार करना चाहिए यही प्रार्थना का सार है।
- ब्राह्मण देवी-देवताओं को देखो, एक देवता तो हाथ में भाला/ त्रिशूल उठाकर खड़ा है। दूसरा धनुष बाण। अन्य दूसरे देवी-देवता कोई गुर्ज, खंजर और ढाल के साथ सुशोभित हैं, यह सब क्यों है? एक देवता तो हमेशा अपनी ऊँगली के ऊपर चारों तरफ चक्कर चलाता रहता है, यह किसको मारने के लिए है?
- हम आजकल के समय में रह रहे हैं। क्या ये वर्तमान समय इन देवी- देवताओं के लिए सही नहीं है? क्या वे अपने आप को आधुनिक हथियारों से लैस करने और धनुषवान के स्थान पर , मशीन या बंदूक धारण क्यों नहीं करते? रथ को छोड़कर क्या श्रीकृष्ण टैंक पर सवार नहीं हो सकते? मैं पूछता हूँ कि जनता इस परमाणु युग में इन देवी-देवताओं के ऊपर विश्वास करते हुए क्यों नहीं शर्माती?
- उन देवताओ को नष्ट कर दो जो तुम्हें शुद्र कहे, उन पुराणों और इतिहास को ध्वस्त कर दो, जो देवता को शक्ति प्रदान करते हैं। उस देवता की पूजा करो जो वास्तव में दयालु भला और बौद्धगम्य है।