फैसल रहमानी
गया, बिहार
शहर के प्रसिद्ध ख़ानकाह चिश्तिया मुनामिया में हर साल की तरह इस साल भी पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के यौम-ए-पैदाइश के मौक़े पर विशेष कार्यक्रम का आयोजन होगा। सोमवार को आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में पैग़ंबर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के मूं-ए-मुबारक (दाढ़ी के बाल) और विभिन्न पवित्र तबर्रुकात की ज़ियारत होगी। यह जानकारी ख़ानकाह के सज्जादानशीं हज़रत सैयद शाह मोहम्मद सबाहउद्दीन चिश्ती मुनामी ने दी।
हज़रत सैयद शाह मोहम्मद सबाहउद्दीन चिश्ती मुनामी ने बताया कि इस्लाम क़ुरआन और हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के बताए हुए रास्ते पर ही चलने का नाम होता है। उन्होंने कहा की एक हदीस में आता है कि वतन की मोहब्बत ईमान का हिस्सा है। अतः हर इंसान को अपने वतन से मोहब्बत करनी चाहिए। पैग़ंबर-ए-इस्लाम की ज़िंदगी और उनके बताई गई बातें आज भी प्रासंगिक हैं।
सज्जादानशीं ने बताया की मक्का में मोहम्मद साहब की पैदाइश हुई और मदीना में उनका इंतकाल हुआ। इस वक़्त मदीना में वहां के क़बीलों में हमेशा युद्ध होते रहते थे। मोहम्मद साहब के मदीना जाने के बाद उन्होंने हर क़बीले के लोगों से मुलाक़ात कर उन्हें शांति कायम करने के लिए राज़ी कर लिया। रसूलल्लाह ने उन्हें समझाया कि वतन में पहले अमन और सुकून बात होनी चाहिए।
सबाहउद्दीन मुनामी ने कहा कि मोहम्मद साहब ने पूरी दुनिया में शांति का पैगाम दिया। उन्होंने मक्का और मदीना को हरमैन-शरीफ़ैन यानी वहां युद्ध को हराम घोषित कर दिया। उन्हेंने बताया कि फ़तह-ए-मक्का के दौरान एक बूंद भी खून नहीं बहा।
सबाहउद्दीन मुनामी ने बताया कि मोहम्मद साहब के पहले मक्का में लड़कियों को पैदा होते के साथ मार दिया जाता था लेकिन उन्होंने ही औरतों के हक़ को सबसे पहले अहमियत दी। रसूलल्लाह ने ही सबसे पहले ‘बेटी बचाओ आंदोलन’ की शुरूआत किया। औरतों को जिंदा रहने का हक़ दिया। उन्हें विरासत में हिस्सा दिया गया। उन्होंने बताया कि पैग़ंबर-ए-इस्लाम ने मर्दों की तरह औरतों को भी कई हक़ दिए। इस्लाम ने ही सबसे पहले दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर के समय में मंत्रालय में जगह दी। औरतों को वोटिंग का अधिकार सबसे पहले इस्लाम में ही दिया गया, जब तीसरे ख़लीफ़ा हज़रत उस्मान ग़नी ने औरतों को वोट देने का हक़ दिया।
सज्जादानशीं ने बताया की पैग़ंबर साहब की एडवाइज़री बोर्ड में भी कई औरतें थीं और उनकी बातों को अहमियत भी दी जाती थी। मोहम्मद साहब की पत्नी हज़रत आयशा 8000 सहाबियों को शिक्षा देती थीं। सबाहउद्दीन मुनामी ने बताया इस्लाम में ही सबसे पहले यह अपील की गई की लड़कियों और औरतों की इज़्ज़त की जाए। उन्हें और उनकी बातों को अहमियत दी जाए। उन्होंने अपील किया कि इस्लाम में चूंकि औरतों की और महिलाओं की बहुत अहमियत है, अतः इंसानियत के नाते कोख में लड़कियों की हत्या न की जाए। उन्होंने कहा कि विश्व में शांति रहे इसके लिए इस्लाम के रास्ते पर चलते हुए वतन से मोहब्बत करना बहुत ही ज़रूरी है।
इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस के माध्यम से उन्होंने बताया कि 12 रबी-उल-अव्वल को मनाए जाने वाले ईद मिलादुन्नबी के जुलूस में लोग दरूद पढ़ते रहें। ऐसा कोई भी काम ना करें जिससे दूसरों को तकलीफ़ पहुंचे। उन्होंने विशेषकर बाइक स्टंट करने वालों को इससे परहेज करने के लिए कहा।
कार्यक्रम की जानकारी देते हुए शाह मुनामी ने बताया जुलूस कर्बला से 9:00 बजे निकलेगा जो ख़ानकाह 12:00 बजे तक पहुंच जाएगा। उन्होंने बताया कि ख़ानकाह में हर साल रबी-उल-अव्वल की पहली रात से बारहवीं रात तक लगातार हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की सीरत का बयान होता है। सोमवार को 12 रबी-उल-अव्वल के दिन फज्र की नमाज़ के पहले मिलाद शरीफ वह सलातु वस्सलाम का आयोजन होगा। 8:00 बजे दिन में जलसा-ए-मिलादुन्नबी का एहतेमाम होगा। 2:00 बजे क़ुल व मजलिस-ए-समां का आयोजन किया जाएगा। मर्दों के लिए मूं-ए-मुबारक और पवित्र तबर्रुकात की ज़ियारत का समय सुबह 10:00 बजे होगा जबकि महिलाओं के लिए यह समय 2:00 बजे दिन का रहेगा।
इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में ख़ानकाह के सज्जादानशीं हज़रत सैयद शाह मोहम्मद सबाहउद्दीन चिश्ती मुनामी के साथ सैयद अता फ़ैसल, सैयद जावेद असग़र उपस्थित थे।