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22 Dec 2024, Sun

तनवीर आलम की फैसबुक वाल से

मुंबई, महाराष्ट्र
तारिक़ मंसूर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुलपति या सरकार के एजेंट
पूर्व कुलपति ज़मीरुद्दीन शाह के कार्यकाल ख़त्म होने के बाद मैंने अपने आप से तय किया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रशासनिक कार्यों में तब तक हस्तक्षेप नहीं करूँगा जब तक छात्रों के भविष्य से जुड़ा कोई संगीन मामला सामने न आ जाये। मैंने अपना प्रण निभाया भी। लेकिन जिस प्रकार से एएमयू कुलपति द्वारा मौजूदा सरकार और उसकी संस्थाओं की चाटुकारिता की जा रही है, उन्हें स्थान दिया जा रहा है। ये हमारे लिए एक सामूहिक चिंता का विषय है।

मैं आप लोगों के समक्ष एक घटना रखने जा रहा हूँ, जो हमारी ‘तहज़ीब’ के ऊपर काला दिन साबित होने वाला है। हम सबको पता है कि दुबई अलीग बिरादरी के अंदर ज़बरदस्त बिखराव है। उसका फायदा कुछ लोग अपनी राजनितिक और सामाजिक आकांक्षाओं की तृप्ति के लिए कर रहे हैं। सैय्यद मोहम्मद क़ुतुबुर्र रहमान, पूर्व अध्यक्ष, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय एल्यूमिनी फोरम- यूनाइटेड अरब अमीरात का नाम इनमें सबसे ऊपर है। इस व्यक्ति ने उलूल-जुलूल कार्यक्रम और हरकतें कर अपने पैसे के बलबुते पूरी अलीग बिरादरी को हमेशा शर्मिंदा करने का काम किया है।

इस साल भी इन्होंने सर सैय्यद के नाम पर कुछ कार्यक्रम रखा जिसमे ‘द वायर’ की सीनियर पत्रकार और अलीग आरफ़ा खानम शेरवानी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राज बब्बर और दूसरे मेहमानों के साथ एएमयू कुलपति तारिक़ मंसूर को अतिथि के रूप में बुलाया था। मिली जानकारी और आरफ़ा खानम के फेसबुक पोस्ट से पता चला है कि आरफ़ा खानम और राज बब्बर जैसे बीजेपी विरोधियों के साथ तारिक़ मंसूर को मंच साझा करने में दिक़्क़त थी।

ऑर्गेनाईज़र्स को एएमयू के कुलपति ने कहा कि मैं बीजेपी सरकार का कुलपति हूँ, इसलिए इन बीजेपी विरोधियों के साथ कैसे मंच साझा कर सकता हूँ? आप इनका दावतनामा वापस लीजिये तब मैं आऊंगा। प्रोग्राम कराने वाले बेशर्म और बेहया हमारे भाईयों ने बीजेपी के कुलपति को अधिक महत्त्व दिया। भारत के इतिहास में पहली बार शायद किसी का दावतनामा वापस लिया गया। अब मैं आप लोगों के सामने कुछ सवाल आदत के अनुसार रखूँगा:-

  1. 1. अगर एएमयू कुलपति दलाल बन जाए तो क्या अलीग बिरादरी उसका बॉयकॉट नहीं कर सकती?
  2. 2. हम कुलपति को ही बुलाएं ऐसा क्यों?
  3. 3. AMU Alumni Forum के नाम पर ऐसे संगठनों को सामाजिक मानता क्यों दें?
  4. 4. और आखिर में हमारे छात्र नेता, छात्रों और कौरव छात्रों की ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि कुलपति और इन संगठनों का ज़बरदस्त संवैधानिक विरोध करें ताकि ये जो दावतनामा वापस लेने का चलन शुरू हुआ ये एक महामारी का रूप न ले ले।

अगर हम ऐसा नहीं कर सके तो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का भविष्य बहुत निराशजनक है। आप अपने रवायात और तहज़ीब का तराना पढ़ते रहिये, लुटेरे लूट ले जायेंगे अदबी और तहज़ीबी विरासत। मुझे उम्मीद है हम सब मिलकर एएमयू कुलपति का ज़बरदस्त विरोध करेंगे और किसी को एजेंट बनकर अपने चमन को नहीं लूटने देंगे।

ज़िंदाबाद

(तनवीर आलम, अध्यक्ष, AMU Alumni Association of Maharashtra. Mob- +91-9004955775)