तनवीर आलम
मुंबई, महाराष्ट्र
पिछले दो सप्ताह से जिस प्रकार बामसेफ के छुटभैयों और पसमांदा समाज को बेचकर सत्ता की दलाली करने वालों ने सर सैयद को टारगेट किया उसकी एक कड़ी मुझे मिल ही गयी। पसमांदा के नाम पर इन सरकारी दलालों से सवाल है क्या ‘सर सैयद’ ने किसी पसमांदा का हक़ मारा या पसमांदा सियासत पर अपनी दुकान चमकाई? अगर नहीं तो सर सैयद को क्यों टारगेट करते हो। तुममे नैतिक बल है तो पूछो अली अनवर अंसारी से और डॉ. एजाज़ अली से। ये राज्यसभा पसमांदा कोटे से गए और क्या किया पसमांदा समाज के लिए?
पसमांदा का हक़ तब तक नही मिलेगा जब तक समाज के निचले स्तर का आदमी संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई के लिए खुद को तैयार नही करेगा। इस देश में अब किसी अशराफ के बाप की ताक़त नही की वो किसी पसमांदा के हक़ को मार ले। पसमांदा के हक़ को मारा जाएगा तो पसमांदा के बीच ही दलाल पैदा करके। नज़र उठाइये आपके आसपास ही ये दलाल भटकते मिल जाएंगे। ठीक उसी प्रकार जैसे दलितों के नाम पर मायावती, रामविलास पासवान, उदितराज और अठावले जैसे पैदा किये गए। बनाना है तो ढूंढिए गुलाम सरकार को, बनाना है तो ढूंढिए अब्दुल कय्यूम अंसारी को।
सिर्फ सर सैयद को गाली देकर पसमांदा समाज का कल्याण नही होगा। पसमांदा के लिए 2-4 यूनिवर्सिटी खोलो, बच्चों को आईएएस बनाओं। उससे पहले तब तक शुक्र मनाओ की उसी सर सैयद की वजह से कुछ 2-4 लोग पढ़ लिख गए।
अब तुम्हारी नफरत की दुकान को भी ‘संघी’ खाते में रखकर आगे की रणनीति बनेगी। हर उस सियासत का विरोध होगा जिसकी बुनियाद नफरत पर रखी जायेगी।
तनवीर आलम
अध्यक्ष, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय पूर्व छात्र संगठन, मुम्बई, महाराष्ट्र।
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