सूरत, गुजरात
”पापा हमारे यहां तक्षशिला बिल्डिंग में आग लगी है, सबसे पहले हमारी लकड़ी की सीढ़ियां ही जलकर खाक हो गई हैं। पापा, सभी लड़के खिड़की से कूदकर नीचे जाने की कोशिश कर रहे हैं। मैं भी खिड़की से कूदने जा रही हूं। अपनी जान बचाने की कोशिश करूंगी पापा…।” यह भी 16 वर्षीय मृतक कृष्णा और उसके पापा के बीच हुई आखिरी बातचीत…।
डबडबाई आंखों से पिता ने कहा-”मैं अपनी बेटी को तलाश रहा हूं।”
प्यारी-सी बेटी के इस फोन के बाद तक्षशिला बिल्डिंग के पीछे ही स्थित राधाकृष्ण सोसायटी में रहने वाले कृष्णा के पिता सुरेश भाई और परिवार वाले घटनास्थल पर पहुंचे। तब पता चला कि आग से बचने वाले और चौथी मंजिल से कूदने वाले स्टूडेंट्स को हॉस्पिटल ले जाया गया है। यह बात बदहवाश कृष्णा के पिता समझ नहीं पाए। उन्हें यह समझ में ही नहीं आया कि हॉस्पिटल जाकर वहां किससे-क्या पूछना है। इसलिए उन्होंने अपनी बेटी को फिर फोन लगाया। पर इस बार दूसरी ओर उनकी बेटी की आवाज नहीं आई। कुछ ही देर में उनके जीवन में अंधेरा छा गया। पिता के फोन को किसी दूसरे ने उठाया और बताया कि आपकी प्यारी बेटी अब इस दुनिया में नहीं है। वहां जाकर वे अपनी बेटी को ही तलाशते रहे।
फ्रेंडशिप बेल्ट से हुई पहचान
फोन पर किसी दूसरे ने बताया कि यहां सभी बच्चों के शव रखे हुए हैं। एक शव के पास मोबाइल की आवाज आई, शायद वही शव आपकी बेटी का है। दूसरी ओर बच्चों के शरीर पर जो कपड़े दिख रहे थे, उसी से उनके माता-पिता ने उन्हें पहचाना। किसी के हाथ पर फेंडशिप बेल्ट था, तो कोई धागे से पहचाना गया। सारे माता-पिता अपने बच्चो को तलाश रहे थे। यह दृश्य इतना कंपकपा देने वाला था कि सुरेश भाई एक कोने पर खड़े होकर रोने लगे थे। कई शव ऐसे थे, जिनकी कोई पहचान ही नहीं हो पा रहीे थी। आखिर में कोयले जैसे शरीर को लोगों ने अपने बच्चों के शव मानकर अपना लिया।
कुछ दर्द से भरी तस्वीरे
पूरे भारत देश में बहुत से ऐसे स्कूल और कोचिंग क्लासेज़ आज भी ऐसी हालात में हैं जिनको अगर सरकार के नियम के अंतर्गत नापा जाये तो इनमें बहुत से स्कूल, कॉलेज और कोचिंग क्लास बंद हो जाएंगे। फिर भी शासकों की सरकारों, नेताओं की शाह पर सरकारी तंत्र आँखें बंद करके बैठा है। पर अब जागने की जरूरत है।
300 मीटर की मूर्ति बनाई पर 30 मीटर की सीढ़ी नहीं
जलती इमारतों और लाचार फायर ब्रिगेड को देखकर हैरानी होती है। दरअसल गुजरात मे ही 30 हज़ार करोड़ रुपये खर्च करके 300 मीटर ऊंची सरदार पटेल की मूर्ति बनाई गई। पर उसी गुजरात औद्योगिक शहर सूरत में फायर ब्रिगेड के पास 30 मीटर ऊंची सीढ़ी नही है।
लोग मोबाइल से फ़िल्म बनाते रहे
आग लगने के बाद जब बच्चे चौथी मंजिल से खुद रहे थे तो सैकड़ों लोग मोबाइल से फ़िल्म बताने रहे। किसी ने बच्चों को बचाने लिए कोई तरकीब नही सोची और कोशिश भी नही की। नई पीढ़ी को देखकर लगता है कि हमारे पास आग लगाने वाली पीढ़ी तो है मगर आग बुझाने वाली सीढ़ी नहीं।