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17 Oct 2024, Thu

पाॅपुलर फ्रंट आफ इंडिया की राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद की बेठक में यह कहा गया कि केंद्र सरकार जिस अलोकतांत्रिक और दमनकारी तरीके पर काम कर रही है, उसका मकसद आर्थिक गिरावट सहित देश के अन्य गंभीर मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाना है।

लगभग सभी आर्थिक संकेतक यह बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था ऐसी गिरावट का शिकार है कि इससे पहले कभी ऐसा देखने को नहीं मिला। यह स्पष्ट है कि यह स्थिति नोटबंदी और जीएसटी जैसे पिछली मोदी सरकार के बेवकूफी भरे फैसलों का सीधा परिणाम है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि आने वाले महीनों में हालात और भी खराब होने वाले हैं, जिसमें लाखों लोग बेरोज़गार हो जाएंगे और कंपनियां बंद या छोटी हो जाएंगी। स्थिति को समझने और उसे ईमानदारी के साथ हल करने के बजाय, केंद्र सरकार ज़ोर ज़बरदस्ती से काम ले रही है, जैसा पहले कभी नहीं हुआ।

विवादास्पद कानूनों में संशोधन कर उन्हें अधिक कठोर बनाया गया, यहां तक कि उनके खिलाफ उठाए गए सवालों पर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया। संसदीय जांच के बिना ही सांप्रदायिक बिलों को जल्दबाजी में पारित कर दिया गया ताकि ध्रुवीकृत आबादी को खुश किया जा सके। विपक्ष के उच्च स्तरीय नेताओं को निशाना बनाने और विरोध की आवाज़ों को दबाने के लिए सत्ता का दुरूपयोग किया जा रहा है।

बैठक ने सरकार से कश्मीर में जारी अमानवीय घेराबंदी को तत्काल प्रभाव से खत्म करने की मांग की। खबरों से पता चलता है कि लोगों के जीवन पर इसका विनाशकारी प्रभाव पड़ रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार संचार और परिवहन पर बंदिश के कारण लोगों को दवाओं सहित अन्य बुनियादी ज़रूरी सामानों की कमी का सामना करना पड़ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के अनुसार सेना वहां जनता को गिरफ्तार और प्रताड़ित कर रही है, जबकि भारतीय मीडिया को राज्य के वास्तविक हालात बयान करने की इजाज़त नहीं है। यह केवल कश्मीर ही नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए बेहद परेशान करने वाली स्थिति है। पूरे देश को सूचना के अधिकार से वंचित कर दिया गया है और उन्हें केवल सरकारी आंकड़ों और बयानों पर ही यकीन करने पर मजबूर किया जा रहा है।

एक तरफ सरकार यह दावा कर रही है कि हालात सामान्य हैं, लेकिन इसके बावजूद राष्ट्रीय पार्टियों के शीर्ष नेताओं को भी लोगों से मिले बिना श्रीनगर से ही वापस भेज दिया जाता है। पाॅपुलर फ्रंट की राष्ट्रीय कार्यकारिणी परिषद ने यह मांग की है कि इस अमानवीय तरीके को तत्काल रूप से रोका जाए और कश्मीरी जनता और कश्मीर के नाम पर पूरे देश को जिन लोकतांत्रिक एवं नागरिक अधिकारों से वंचित किया गया है उन्हें फिर से बहाल किया जाए।

जहां देश तानाशाही की उपरोक्त निशानियों को देख रहा है, वहां विपक्ष ने निराशाजनक हद तक अपने नाकारेपन का सबूत दिया है। सरकार को बेनकाब करने और संवैधानिक सिद्धांतों को बरकरार रखने में विपक्ष पूरी तरह से नाकाम रहा है। बेठक ने कहा कि मौजूदा हालात एक ऐसा नया जन-आंदोलन चाहते हैं जो न तो सरकार के दमनकारी रवैये से घबराने वाला हो और न ही उसे किसी भी तरह के राजनीतिक फायदे का लालच हो, बल्कि वह वास्तव में देश के सेक्युलर व लोकतांत्रिक मूल्यों और जनता के प्रति प्रतिबद्ध हो।

चेयरमैन ई. अबूबकर ने बैठक की अध्यक्षता की, जिसमें महासचिव एम. मुहम्मद अली जिन्ना, उपचेयरमैन ओ.एम.ए. सलाम, सचिव अनीस अहमद व अब्दुल वाहिद सेठ और कार्यकारी सदस्य ई.एम. अब्दुर्रहमान, प्रो॰ पी. कोया, के.एम. शरीफ, एड॰ ए. मुहम्मद यूसुफ, ए.एस. इस्माईल, मुहम्मद रोशन, मुहम्मद इस्माईल, नसरूद्दीन एलामरम, करमना अशरफ मोलवी व अन्य उपस्थित रहे।

By #AARECH