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22 Nov 2024, Fri

सोनभद्र, यूपी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट (SC-ST ACT) को लेकर एक ऐसा आदेश दिया है, जिस पर विवाद शुरू हो गया है। हाईकोर्ट ने कहा है कि एससी-एसटी एक्ट तभी लागू होता है, जब अपराध सार्वजनिक स्थान पर हुआ हो। बंद कमरे में हुई घटना में एससी-एसटी एक्ट की धारा प्रभावी नहीं होती, क्योंकि बंद कमरे में हुई बात कोई बाहरी नहीं सुन पाता। कोर्ट ने कहा कि बंद कमरे में हुई घटना से समाज में पीड़ित की छवि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

सोनभद्र के केपी ठाकुर की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति आरके गौतम ने दिया। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता सुनील कुमार त्रिपाठी का कहना था कि केपी ठाकुर खनन विभाग के अधिकारी हैं। खनन विभाग के कर्मचारी विनोद कुमार तनया इस मामले का शिकायतकर्ता हैं। तनया के ख़िलाफ़ विभागीय जांच लंबित थी। इस सिलसिले में केपी ठाकुर ने शिकायतकर्ता को अपने कार्यालय में साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए बुलाया था। शिकायतकर्ता विनोद अपने साथ सहकर्मी एमपी तिवारी को लेकर गया था। केपी ठाकुर ने तिवारी को चेंबर के बाहर रुकने को कहा।

अधिवक्ता का कहना था कि शिकायतकर्ता जांच में व्यवधान पैदा करने का आदी है और इसी नीयत से उसने मारपीट, जान से मारने की धमकी तथा एससी-एसटी एक्ट की धाराओं में मुकद़मा दर्ज करा दिया। जिस समय घटना हुई उस समय केपी ठाकुर का चैंबर अंदर से बंद था और उसके अंदर कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था, जो इस घटना का साक्षी रहा हो।

शिकायतकर्ता का दावा है कि बंद चैंबर में केपी ठाकुर ने उनके साथ बदतमीज़ी की और जान से मारने की धमकी भी दी। एफ़आईआर में दर्ज विवरण के मुताबिक़ चैंबर में उस वक़्त दो ही लोग थे।

वकील ने सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि यदि घटना पब्लिक व्यू में नहीं है तो एससी/एसटी एक्ट की धारा नहीं बनती है। कोर्ट ने इस दलील को स्वीकार करते हुए केस से एससी/एसटी एक्ट की धारा रद्द कर दी। हालांकि, कोर्ट ने मारपीट, जान से मारने की धमकी और अन्य धाराओं में के तहत मुक़दमे की कार्रवाई जारी रखने की छूट दी है।

By #AARECH