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22 Dec 2024, Sun

सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी से कहा है कि वे आरएसएस को महात्मा गांधी का हत्यारा बताने के अपने बयान पर माफी मांगें या फिर मानहानि केस का सामना करने के लिए तैयार रहें। कोर्ट ने कहा नाथूराम गोडसे ने गांधी जी को मारा और आरएसएस के लोगों ने महात्मा गांधी को मारा, इन दोनों बातों में फर्क है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई 27 जुलाई को करेगा।

इस खबर के इतर एतिहासिक संदर्भों को देखें तो देश के पहले गृह मंत्री वल्लभभाई पटेल के संकलित कृतित्व में शामिल पत्रों के मुताबिक गांधी की हत्या के बाद आरएसस ने मिठाई बांटी थी। पटेल ने यह भी लिखा था कि आरएसएस की गतिविधियां राज्य और सरकार के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा हैं। पटेल की 140 वीं जयंती के मौके पर पटेल के संकलित कृतित्व का प्रकाशन हो चुका है। जिसका संपादन पीएन चोपड़ा और प्रभा चोपड़ा ने किया है। इसमें दिल्ली की इतिहासकार नीरजा सिंह ने भी सरदार पटेल पर काम किया है।

सरदार की चिट्ठियों से आरएसएस और मुसलमानों के प्रति सरदार का नजरिया सामने लाया गया है। सरदार की सोच थी कि आरएसएस सांप्रदायिकता का जहर फैला रही है, वहीं मुसलमानों का एक धड़ा भी भारत के प्रति वफादार नहीं है। गांधी जी की हत्या के महीने भर बाद सरदार पटेल ने प्रधानमंत्री पंडित दजवाहरलाल नेहरू को 27 फरवरी 1948 को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें कहा गया था कि आरएसएस का इसमें सीधा हाथ नहीं था, इस हत्या में हिंदू महासभा के उग्रपंथी गुट का हाथ था जिसने सावरकर की अगुआई में यह षडयंत्र रचा था।

गांधी जी की हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया दया था। सितंबर 1948 में आरएसएस के प्रमुख एमएस गोलवलकर ने सरदार को चिट्ठी लिखकर आरएसएस से प्रतिबंध हटाने की मांग की थी। इस पर सरदार ने 11 सितंबर 1948 को जवाब में कहा था कि ‘आरएसएस ने हिंदू समाज के लिए काम किया है, लेकिन आरएसएस बदले की आग से खेल रही है और मुसलमानों पर हमले कर रही है। उनके सारे भाषण सांप्रदायिकता के जहर से भरे होते हैं। इस जहर का नतीजा देश को गांधी जी के बलिदान के रूप में चुकाना पड़ा।

SARDAR PATEL LETTERS TELL THIS TRUTH OF RSS 2 140819

वहीं आरएसएस के लोगों ने गांधी की हत्या के बाद खुशियां मनाई और मिठाइयां बांटी। ऐसे में सरकार को आरएसएस के खिलाफ कार्रवाई करना जरूरी हो गया‘। बाद में आरएसएस के खिलाफ प्रतिबंध हटा दिया गया था। ये सारे पत्र वल्लभभाई पटेल के संकलित कृतित्व में शामिल हैं।

इसी तरह से नागपुर के दिलीप देवधर जिन्होंने आरएसएस पर कई किताबें लिखीं हैं, के मुताबिक (19, नवंबर 2015 इंडियन एक्सप्रेस, श्यामलाल यादव की रिपोर्ट –आरएसएस, द हिंदू महसाभा वाय गोडसे इस द प्राब्लम बिटवीन देम) आरएसएस ने कभी भी हिंदू महासभा की उग्रवादी हिंदू गतिविधियों की आलोचना नहीं की है, भले ही वह खुद को गोडसे से अलग बताती हो।

दरअसल, 1937 तक महाराष्ट्र के लोग तीन प्रमुख संगठनों से जुड़े थे। एक कांग्रेस दूसरा हिंदू महासभा और तीसरा आएसएस। 1937 के बाद कांग्रेस और आरएसएस के बीच विभाजन स्पष्ट दिखाई देने लगा। इसी दौरान आरएसएस भी संगठन के रूप में उभर रहा था। हिंदू महासभा आरएसएस की आलोचना करती थी, लेकिन आरएसएस के संस्थापक डॉ . हेड़गेवार हिंदू एकता के मद्देनजर कभी हिंदू महासभा की आलोचना नहीं करते थे।

1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी हिंदू महासभा से जुड़े थे। इसके बाद उन्होंने भारतीय जनसंघ बना लिया (जो भाजपा का प्रारंभिक संस्करण था)। तब के दिनों में यह बहुत सामान्य और बड़ी स्वाभाविक बात होती थी कि कोई व्यक्ति भारतीय जनसंघ में हैं और आसएसएस में स्वयंसेवक भी है और उसकी जड़ें हिंदू महासभा में भी हैं। तो भले ही गोडसे को लेकर आरएसएस और हिंदू महासभा अलग-अलग बातें कहें लेकिन इन दोनों संगठनों में बड़ा ही नजदीकी जुड़ाव था। -कोई व्यक्ति आरएसएस से जुड़ा था या नहीं यह बताना या साबित करना इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि आरएसएस के संगठन का इसकी सदस्यता का कोई रिकॉर्ड नहीं होता।

बहरहाल, गुरु पूर्णिमा पर भी आरएसएस के स्वयंसेवक भगवा ध्वज को ही गुरु दक्षिणा देते हैं। इस दौरान नाम आदि का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है। फिर आरएसएस चंदा देने वालों या स्वयंसेवकों को टैक्स में छूट की कोई रसीद भी नहीं देता। इस तरह से यह बताना कि व्यक्ति हिंदू महासभा का है और आरएसएस का नहीं है या हिंदू महासभा और आरएसएस दोनों का है इसलिए मुश्किल है क्योंकि आरएसएस की सदस्यता का कोई सबूत उनके संगठऩ के प्रावधान में ही नहीं है। लेकिन दोनों संगठनों के साथ अन्य हिंदूवादी संगठऩों का का हिंदू एकता और हिंदुत्व के विरोधी विचार का दमन का उद्देश्य साफ है।

हिंदुत्व के विरोधी विचार की हत्या ही गांधी की हत्या थी। जिसने की वह गोडसे था। और गोडसे हिंदू महसभा का था। हिंदू महासभा से आरएसएस बना था। गोडसे के आरएसएस के साथ जुड़ाव का एक तथ्य यह भी है कि 30 जनवरी 1948 को उसने स्वीकार किया था कि वह आरएसएस को छोड़ चुका है और उसका संगठन से कोई जुड़ाव नहीं है।

बहुत दिनों तक गोडसे के इस बयान को सही माना जाता रहा, लेकिन 28 जनवरी 1994 को फ्रंटलाइन में दिए गए इंटरव्यू में नाथूराम के छोटे भाई गोपाल गोडसे ने कहा है ( जो खुद भी गांधी जी की हत्या में एक आरोपी था) कि सभी भाई नाथूराम, दत्तात्रेय, खुद मैं गोपाल गोडसे और गोविंद आरएसएस में थे।

आप यह भी कह सकते हैं कि हम परिवार के बजाए आरएसएस में  पले-बढ़े। वह हमारे लिए परिवार जैसा था। नाथूराम को बौद्धिक कार्यवाह बनाया गया था। गोपाल गोडसे ने यह बात आरएसएस छोड़ने के बाद बयान में कही थी साथ ही यह भी कहा था कि गांधी की हत्या के बाद गोलवलकर और आरएसएस बहुत दिक्कत में आ गए हैं, लेकिन वह (नाथूराम) आरएसएस नहीं छोड़ रहा है।

गोपाल ने आगे और स्पष्ट करते हुए कहा है कि आप यह कह सकते हैं कि आरएसएस ने गोडसे से गांधी को गोली मारने के लिए नहीं कहा था लेकिन आप यह नहीं कह सकते कि गोडसे आरएसएस से नहीं था। हिंदू महासभा ने कभी यह नहीं कहा कि गोडसे हमारा नहीं था। 1944 में गोडसे ने आरएसएस का बौद्धिक कार्यवाह रहते हुए हिंदू महासभा में काम करना शुरू किया।

By #AARECH