लखनऊ, यूपी
देश में एक विशेष विचारधारा को थोपने की कोशिश की जा रही है। इसके लिए हिंसा का सहारा लिया जा रहा है। सत्ता में बैठे लोग इसे गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, जबकि ये काफी गंभीर मसला है। ये बाते ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत के प्रदेश अध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद सुलेमान ने कहीं।
लखनऊ के गन्ना संस्थान में ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत ने ‘अधिकार सम्मेलन’ का आयोजन किया था। इस आयोजन में प्रदेश के कई संगठनो, राजनीतिक दलों और सामाजिक लोगों को बुलाया गया था। सम्मेलन में दलित, पिछडे और मुस्लिमों से जुड़े एक दर्जन से ज़्यादा संगठनों ने भाग लिया।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत के प्रदेश अध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि देश में फासीवादी ताकतें हावी हो चुकी है। राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर एक विचारधारा के लोग बैठाए जा रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि दलित, पिछड़े और मुसलमान इसके खिलाफ एकजुट होकर इसका विरोध करें।
नावेद हामिद, राष्ट्रीय अध्यक्ष, मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत
मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत के राष्ट्रीय अध्यक्ष नावेद हामिद ने कहा कि आरएसएस मुसलमानों को देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहा है, जिसका देश की आजादी में कोई रोल ही नहीं था। आरएसएस उस समय अंग्रेजों के लिए जासूसी कर रहा था। आरएसएस के ऑर्गनाइजर अखबार में 14 अगस्त 1947 के संस्करण में लिखा गया था कि तिरंगा झंडा मनहूस है और इसने अपने मुख्यालय पर कभी भी तिरंगा नहीं फहराया। उन्होंने कहा कि बाद में अदालत की फटकार के बाद उसने झंडे को फहराया। दूसरी तरफ मुसलमानों के ऊपर आरोप लगाए जा रहे हैं, जबकि उनके मदरसों और संस्थानों में हमेशा से तिरंगा फहराया जाता रहा है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष नावेद हामिद ने कहा कि आरएसएस सुभाष चंद्र बोस को याद कर रहा है जबकि उनकी आजाद हिंद फौज में 40 फीसदी मुसलमान थे। जब आजाद हिंद में भर्ती हो रही थी तो आरएसएस के लोग अंग्रेजों की मदद कर रहे थे। नावेद हामिद में खिलाफत आंदोलन का ज़िक्र करते हुए कहा कि खिलाफत आंदोलन द्वारा अली बंधुओं ने जो देश को आज़ाद कराने के लिए आंदोलन छेड़ा था, उसे गांधी जी ने भी भरपूर समर्थन किया थाय़ खिलाफत आंदोलन देश के गांव-गांव तक पहुंचा था।
नावेद हामिद ने कहा कि देश के विभाजन के समय मुसलमानों के पास पाकिस्तान जाने का विकल्प था लेकिन उन्होंने भारत में रहना पसंद किया, यह उनकी देशभक्ति का सबसे बड़ा प्रमाण है।
मोहम्मद खालिद, महासचिव, मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत
मुस्लिम मजलिस के महासचिव मोहम्मद खालिद ने कहा कि 1964 में नदवातुल उलेमा में बैठ कर एक मंच बनाने की कोशिश की गई थी। सभी मुस्लिम संगठनों को अपने क्षेत्र में काम करते हुए एकजुट करने की कोशिश की गई थी। इसी के बाद मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत अस्तित्व में आया। देश के सभी वंचित वर्गों को देश के संसाधनों पर अधिकार हो और इसका लाभ मिले, इसके लिए आज का यह प्रांतीय कार्यक्रम आयोजित किया गया है। यह आंदोलन सभी वंचित वर्गों की समस्याओं को हल होने तक जारी रहेगा।
तारिक़ सिद्दीकी, सचिव, मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत
सचिव तारिक सिद्दीकी ने ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण में सभी जातियों को जनसंख्या के अनुपात में विभाजित विषय पर अपना संबोधन दिया। उन्होंने कहा कि देश एक मोर के समान है, लेकिन उसके पैर में एक दाग है जिस पर नज़र पड़ते ही उसका सारा सौंदर्य फीका पड़ जाता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण देश के अंदर जाति व्यवस्था है, इसे दूर करने के लिए बलिदान देना होगा। जब तक देश के सारे वर्ग मजबूत नहीं हो जाते तब तक रिजर्वेशन प्रणाली जारी रहना चाहिए।
27 फीसदी आरक्षण में से 4 या 5 फीसदी हिस्सा मुसलमानों को भी मिलना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। मुसलमानों की तरफ से कई बार मांग की गई लेकिन उसे पूरा नहीं किया गया। कई राज्यों में विशेष तरीके से मुसलमानों को आरक्षण दिया गया है, मगर यूपी में नहीं दिया गया है। राज्य में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी मुसलमानों की शुभचिंतक बताती है। सपा सरकार को इस मसले पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और मुसलमानों को उनके हक़ देना चाहए।
मौलाना शहाबुद्दीन मदनी, उपाध्यक्ष, मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत
मौलाना शहाबुद्दीन मदनी ने अपने कहा कि आरक्षण काफी गर्म विषय रहा है। इसे देश में पिछड़े और अतिपिछड़े वर्गों के लिए लागू किया गया था मगर आज इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं, क्योंकि यह आरक्षण काफी दिनों से दिया जा रहा है, लेकिन क्या इन आरक्षण पाने वाले के हालात सुधर हुए हैं। क्या ये लोग समाज में सम्मानजनक हो गए तो इसका जवाब नहीं है। आबादी के अनुपात से हिंदू और मुसलमानों दोनों को आरक्षण मिलना चाहिए। मौलाना ने कहा कि हमारी मांग अधिकार मिलने तक जारी रहेगी।
वीरेंद्र कुमार मौर्या, अध्यक्ष, अखिल भारतीय पिछड़ा वर्ग महासंघ
वीरेंद्र कुमार मौर्या ने कहा कि देश की आज़ादी के समय अगर यहां की जमीन देशवासियों में आबादी के अनुपात में बांटी गई होती तो आज किसी को आरक्षण की जरूरत नहीं होती। आज इंदिरा आवास के लिए देश के प्रधानमंत्री से लेकर गांव के प्रधान तक बेघरों पर एहसान जताता है। स्वतंत्रता के बाद राजनीतिक नेताओं ने आम लोगों को उनके अनुपात से भागीदारी नहीं दी वरना आज यह हालात न होते।
वीरेंद्र कुमार मौर्या ने कहा कि ब्राह्मणवाद और मनुवादी वर्ग आज भी चाहता है कि दलित और पिछड़े उनके गुलाम बनकर रहें। इसके लिए आरएसएस के कारिंदे राम राज्य की बात कर रहे हैं। उनके जो मन में आ रहा है, बक रहे हैं। दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों का वोट हासिल करने के लिए उनमें भेदभाव पैदा किया जा रही है। बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था कि हिंदू धर्म में पैदा ज़रूर हुआ हूँ मगर मैं हिंदू धर्म में मरूंगा नहीं।
वीरेंद्र कुमार मौर्या ने कहा कि हिन्दू कोई धर्म नहीं है बल्कि एक विचारधारा है। उन्होंने कहा कि बाबा रामदेव आज सिर काटने की बात कर रहे हैं, मीडिया और कोर्ट इसका नोटिस नहीं ले रहा है। अगर यही बात किसी और वर्ग के व्यक्ति ने कही होती तो वह जेल के अंदर होता। यह देश किसी के बाप का नहीं है, बल्कि हमारा है। दलित, मुस्लिम और पिछड़े मिलकर इसका नक्शा बदल देंगे। सभी लोगों को जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण का अधिकार मिलना ही चाहिए।
अनीस अंसारी, उपाध्यक्ष, मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत
पूर्व आईएएस अनीस अंसारी ने कहा कि भारत का संविधान दुनिया का सबसे अच्छा संविधान है। संविधान में देश के सभी वर्गों को बराबर का अधिकार दिया गया है। ये देश का दुर्भाग्य है कि एक काले कानून के तहत यह तय कर दिया गया है कि आरक्षण का लाभ केवल अनुसूचित जाति के हिंदुओं को मिलेगा, काफी संघर्ष के बाद इसमें सिखों और बोद्धों को शामिल कर लिया गया। मुसलमानों और ईसाईयों को इसमें आजतक शामिल नहीं किया गया है, जिसकी वजह से मुसलमान एक बड़े लाभ से वंचित हैं । मुसलमानों और ईसाइयों को इससे वंचित रखना खुलेआम संविधान का उल्लंघन है।
अनीस अंसारी ने कहा कि पिछले 10 साल के भीतर देश में 13 लाख किसानों ने आत्महत्या कर ली है। धूप, ठंड और बारिश में कड़ी मेहनत सह कर देशवासियों को अनाज देने वाले किसानों को नुकसान सहना पड़ रहा है। उन्हें सरकारों द्वारा कोई सहायता नहीं दी जा रही है, जबकि इसके विपरीत उद्योगों और उद्योगपतियों को सरकार भरपूर सहायता प्रदान करती हैं।
तेज सिंह, अध्यक्ष, अंबेडकर समाज
तेज सिंह ने कहा कि आजादी के 68 साल बाद भी अधिकार सम्मेलन का आयोजन होना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह सब हमारे नेताओं की वजह से हो रहा है। आज दलित हिंदू आतंकवाद का शिकार है। 5 हज़ार साल से हम इससे जूझ रहे हैं। दलित अगर हिंदू है तो उनके मौलिक अधिकार क्यों नहीं बहाल किए जा रहे हैं। अगर दलित हिंदू हैं तो क्यों नहीं ब्राह्मण उनसे रोटी और बेटी का रिश्ता कर रहा है। इस देश में दो जातियां हैं एक हरामखोर और एक हलाल खोर। हराम खोर सत्ता का मज़ा लूट रहे हैं जबकि हलाल ख़ोर सब कुछ खो चुके है। उन्होंने कहा कि दलितों के लिए मीठा जहर कांग्रेस थी और कड़वा जहर बीजेपी है।
प्रोफेसर रमेश दीक्षित
प्रो रमेश दीक्षित ने कहा कि अगर हम ऐसा समाज चाहते हैं जहां सबको समान अधिकार प्राप्त हों। इसके लिए एकजुट होकर और सबको साथ लेकर संघर्ष करना होगा। 2014 में अगर बीजेपी सत्ता में आई है तो यह दलितों और पिछड़ों के वोट से आई है। अब तक जितनी भी सरकारें सत्ता में आई हैं उनका स्वतंत्रता संग्राम में कोई न कोई किरदार था। मगर इस समय जो पार्टी सत्ता में है उसका स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका नहीं है। संघ परिवार का नज़रिया दुनिया की सारे संगठनों से खतरनाक है।
रामलखन पासी
रामलखन पासी ने कहा कि सबसे अच्छा माली वह माना जाता है, जिसके बगीचे का कोई फूल कुम्हलाने न पाए। मगर आज देश में ऐसी सरकार सत्ता में है जो देश के हित में नहीं सोच रही है। आज मुसलमानों से देशभक्ति का सर्टिफिकेट मांगा जा रहा है, मनु स्मृति बात की जा रही है, जिसमें लिखा है कि अगर दलित वेद पढ़े तो उसके कान में शीशा पिघला कर डाल दिया जाए। दूसरी तरफ राज्य में ऐसी सरकार है जिस के परिवार के दो दर्जन लोग विभिन्न पदों पर काबिज है। आरएसएस के भाग्वत आरक्षण समीक्षा की बात कर रहे हैं तो वेदों का भी समीक्षा होनी चाहए।
अन्य स्पीकर
महिला आरक्षण के मुद्दे पर सामाजिक कार्यकर्ता नाहीद अकील, महिला आयोग की सदस्य शबीना शफीक ने प्रकाश डाला। उन्होंने अपनी बात में कहा कि महिलाओं को हर क्षेत्र और पदों पर 50 फीसदी आरक्षण मिलना चाहिए। प्रोग्राम में बलवंत सिंह चारवाक, वी एल मातंग, अरशद आज़मी समेत कई लोगों ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस के राष्ट्रीय अध्यक्ष नव्द हामिद ने की और संचालन मौलाना शहाबुद्दीन मदनी ने किया।
इस अवसर पर मक़बूल हुसैन, पूर्व विधायक श्याम शुक्ला, मतीन अंसारी, अनवर इब्राहिम वारसी, गंगाराम चौधरी, खान मोहम्मद आतिफ, वी सी कुरील, मोहम्मद हनीफ, एहसान उल हक, ज़िया हसन उस्मानी, अब्दुल कुद्दुस हाशमी समेत भारी संख्या में लोग मौजूद थे।