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18 Oct 2024, Fri

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

राजस्थान की दो लोकसभा और एक विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव के परिणाम उसी समय आ रहे थे जब संसद में बजट पेश किया जा रहा था। बजट का झुनझुना हमेशा इतनी ज़ोरों से बजता है कि कोई और आवाज़ देश में सुनाई ही नहीं देती। इस बार वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपना आखिरी बजट भी बड़े धमाकेदार भाषण के साथ पेश किया लेकिन उसी वक्त जब बजट का झुनझुना बज रहा था, राजस्थान के हथौड़े की आवाज़ सत्तारुढ़ नेताओं के कान में गूंज रही थी।

क्या थी वह आवाज़! वह थी… राजस्थान की तीनों सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों की भयंकर पराजय! ये वे सीटें थीं… अलवर, अजमेर, मांडलगढ़, जिन पर पहले भाजपा के उम्मीदवार जीते थे। इन्हें भाजपा को दुबारा जीतना ही चाहिए था, क्योंकि ये सीटें इन दोनों सांसदों और एक विधायक की असामयिक मृत्यु हो जाने से खाली हुई थीं। जाहिर है कि ऐसे चुनावों में मतदाताओं का वोट भावना-प्रधान हो जाता है लेकिन क्या वजह है कि लोगों ने भाजपा को ठुकरा दिया?

यह ठीक है कि पश्चिम बंगाल के दो उप-चुनावों में भाजपा के वोट बढ़े हैं लेकिन वहां भी वह हार गई और वहां वह एक सीट भी जीत लेती तो राजस्थान में उपड़े छालों पर कुछ मरहम लगता। राजस्थान में भाजपा हार गई, इसके बावजूद कि उसने फिल्म पद्मावती पर प्रतिबंध लगा दिया था ताकि राजपूतों के थोक वोट उसे मिल सकें लेकिन यह पैंतरा भी किसी काम नहीं आया। इन चुनाव-क्षेत्रों के किसानों पर पिछले डेढ़-दो साल में जो मार पड़ी है, नोटबंदी और जीएसटी की, उसने वसुंधरा राजे सरकार को दरी पर बिठा दिया है। बंडिया बदल-बदलकर बंडल मारने से देश नहीं चलता। अब देश के लोगों को असलियत समझ में आने लगी है।

इस साल होने वाले आठ राज्यों के चुनावों में भाजपा को कितना बड़ा खतरा है, इसके संकेत अब गुजरात के बाद राजस्थान से उठ रहे हैं। इन चुनाव परिणामों ने कांग्रेस के मनोबल में चार चांद लगा दिए हैं। इस जीत का श्रेय आप चाहे अशोक गहलौत को दें, सचिन पायलट का दें या राहुल गांधी को दें, इसने भाजपा के कान खड़े कर दिए हैं।

(वेद प्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं)