राफेल मामले पर उच्चतम न्यायालय से बुधवार को केंद्र सरकार को झटका लगा है। अदालत राफेल सौदे से संबंधित कुछ नए दस्तावेजों को आधार बनाये जाने पर केंद्र की प्रारंभिक आपत्ति को ठुकरा दिया तथा राफेल मामले पर नए दस्तावेजों के आधार पर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करने के लिए तैयार हो गई है। न्यायालय ने केंद्र सरकार की उन प्राथमिक आपत्तियों को खारिज कर दिया है जिसमें उसने उन दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा किया था जो अदालत में याचिका पर सुनवाई करने के लिए पेश किए गए हैं।
न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने मामले की सुनवाई की। जिसमें मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसके कौल और केएम जोसेफ शामिल थे। अदालत ने एक मत से कहा कि जो दस्तावेज सार्वजनिक हो गए हैं उसके आधार पर हम याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हैं। अदालत का कहना है कि जो कागज अदालत में रखे गए हैं वह मान्य है। सरकार ने इन दस्तावेजों पर अपना विशेषाधिकार जताते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता ने इन्हें अवैध तरीके से हासिल किया है।
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अदालत ने कहा कि जहां तक राफेल फैसले पर समीक्षा याचिका की सुनवाई का सवाल है, इसपर बाद में विस्तृत सुनवाई की जाएगी। इसकी सुनवाई के लिए वह नई तारीख तय करेगा। राफेल मामले में अदालत को यह तय करना था कि इससे संबंधित रक्षा के जो दस्तावेज लीक हुए हैं, उस आधार पर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई की जा सकती है या नहीं। इससे पहले 14 दिसंबर को दिए अपने फैसले में अदालत ने सरकार को क्लीनचिट देते हुए फ्रांस से 36 विमान खरीदे जाने की प्रक्रिया की जांच अदालत की निगरानी में करने का आदेश देने से मना कर दिया था।
अदालत में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने वाले याचिकाकर्ता अरुण शौरी ने कहा, ‘हमारा तर्क यह था कि चूंकि दस्तावेज देश की सुरक्षा से संबंधित हैं इसलिए आपको उनकी जांच करनी चाहिए। आपने हमसे इसके सबूत मांगे थे, जिसे हमने आपको दे दिया। इसलिए अदालत ने हमारी याचिका को स्वीकार कर लिया और सरकार की दलीलों को खारिज कर दिया।’
पिछले साल मामले पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने कहा था कि प्रक्रिया में विशेष कमी नहीं रही है और केंद्र के 36 विमान खरीदने के फैसले पर सवाल उठाना सही नहीं है। न्यायालय ने कहा था कि विमान की क्षमता में कोई कमी नहीं है।
अपने आदेश में उच्चतम न्यायालय ने कहा था, ‘हम पूरी तरह से संतुष्ट है कि राफेल सौदे की प्रक्रिया में कोई कमी नहीं रही। देश को सामरिक रूप से सक्षम रहना आवश्यक है। अदालत के लिए अपीलकर्ता प्राधिकारी के रूप में बैठना और सभी पहलुओं की जांच करना संभव नहीं है। हमें ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है जिससे साबित होता हो कि इस सौदे में किसी के व्यापारिक हित साधे गए हों।’