लखनऊ, यूपी
पूर्वांचल में पिछले कई सालों से सियासत में अपना प्रभाव बनाने वाली कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हो गया। इस विलय का एलान यूपी सरकार के कद्दावर मंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रदेश प्रभारी शिवपाल सिंह यादव ने किया। इस मौके पर कौमी एकता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अफ़ज़ाल अंसारी, विधायक सिबगतुल्लाह अंसारी समेत पार्टी के कई पदाधिकारी मौजूद थे।
कौमी एकता दल के दूसरे विधायक मुख्तार अंसारी सपा में शामिल नहीं हुए हैं। फिलहाल वह जेल में हैं। मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल का प्रभाव गाज़ीपुर, वाराणसी, मऊ, चंदौली समेत पूर्वांचल के कई ज़िलों में हैं। सपा फिलहाल पूर्वांचल में कमज़ोर है ऐसे में कौमी एकता दल का विलय उसके लिए फायदेमंद हो सकता है।
शिवपाल ने दिलाई सदस्यता
सपा के लखनऊ कार्यालय में कैबिनेट मंत्री और यूपी के प्रभारी शिवपाल सिंह यादव ने कौमी एकता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अफज़ाल अंसारी को पार्टी की सदस्यता दिलाई। इसमें गाजीपुर के विधायक सिब्गतुल्लाह अंसारी ने भी सपा की सदस्यता ली। इसके साथ ही पार्टी के हज़ारों समर्थकों ने सदस्यता हासिल की।
पार्टी को मिलेगी मजबूती
शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि अफज़ाल अंसारी के पार्टी में आने से मज़बूती मिलेगी। उन्होंने कहा कि पूर्वांचल में कौमी एकता दल का प्रभाव है और अफज़ाल अंसारी जमीनी नेता हैं। उन्होंने आगे कहा कि ये इनकी घर वापसी है। शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि पार्टी में मुख्तार अंसारी शामिल नहीं हुए हैं।
अफ़ज़ाल अंसारी ने कहा
प्रेस कांफ्रेंस में अफज़ाल अंसारी ने कहा कि वह साल 1994 में सपा का झंडा लेकर काम कर चुके हैं। कुछ परिस्थिति थी, जिसके वजह से कौमी एकता दल का गठन हुआ और अब कुछ ऐसी ही परिस्थितियां है कि विलय हो रहा है। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने देश को गुमराह किया है। केंद्र की सत्ता हथियाने के बाद 2 साल से कुछ नहीं किया। केंद्र सरकार अपनी नाकामी को छिपाने के लिए सांप्रदायिक रणनीति का प्रचार कर माहौल बिगाड़ रही है। युवा सीएम के नेतृत्व में जो टीम काम कर रही है। वह प्रदेश को आगे ले जा रही है। उन्होंने कई पार्टिया चाहती थी कि कौमी एकता दल लड़े और पूर्वांचल में वोट कटे। लेकिन, उनका यह अभियान विफल रहा है।
सीएम अखिलेश नाराज़
साल 2012 के चुनावों से पहले जब आपराधिक बैकग्राउंड वाले डीपी यादव समाजवादी पार्टी में शामिल हुए थे तो अखिलेश यादव ने विरोध किया था। उसके बाद उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया था। यहीं वजह है कि अखिलेश ने कौमी एकता दल के विलय का विरोध किया है। दरअसल भले ही मुख्तार अंसारी पार्टी में शामिल न हुए हों लेकिन कहीं न कहीं उनके असर को पार्टी चुनाव में भुनाएगी। दूसरी तरफ विपक्ष इस बात को लेकर हमलावर होगा। मंगलवार को उन्होंने जौनपुर में बयान दिया कि कार्यकर्ता मेहनत करें तो किसी के विलय की जरूरत नहीं होगी।
कौन हैं मुख्तार अंसारी
मुख्तार अंसारी का जन्म यूपी के गाज़ीपुर जिले में ही हुआ था। उसके दादा मुख्तार अहमद अंसारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। जबकि उनके पिता एक कम्यूनिस्ट नेता थे। मुख्तार अंसारी के आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने की खबर मिलने के बाद बसपा ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। बसपा से निकाले जाने के बाद दोनों अंसारी भाईयों ने 2010 में नई पार्टी कौमी एकता दल (QED) का गठन किया।
चुनाव और जीत
2005 में मऊ में भड़की हिंसा के बाद अंसारी पर कई आरोप लगे, जिन्हें खारिज कर दिया गया। हालांकि इसी दौरान अंसारी ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। वे तभी से जेल में बंद हैं। मुख्तार अंसारी ने दो बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और दो बार निर्दलीय। उन्होंने जेल से ही तीन चुनाव लड़े हैं। पिछला चुनाव उन्होंने 2012 में कौमी एकता दल से लड़ा और विधायक बने। वह लगातार चौथी बार विधायक हैं।