गुरदीप सिंह सप्पल की फेसबुक वाल से
नई दिल्ली
दयाल सिंह कालेज का नाम वन्दे मातरम् कालेज करेंगे। क्यों भई? ठीक है कि तुम अभी अभी नींद से जागे हो। ठीक है कि तुम्हारा देशप्रेम नया नया हिल्लोरें मार रहा है, ठीक वैसे ही जैसे कहते हैं कि नया नया मुल्ला ज़ोर ज़ोर से बाँग देता है।
तुम्हें राष्ट्रगीत से अपनी वफ़ादारी साबित करनी है, तो करो। ये क्यों भूल जाते हो कि वन्दे मातरम् को राष्ट्रगीत तुमने नहीं, उस वक़्त की संविधान सभा ने बनाया था। उस सभा में तुम्हारे कितने लोग थे, एक या दो? तुम्हारा तो कोई योगदान था नहीं वन्दे मातरम् को राष्ट्रगीत बनाने में। आज अचानक उठ कर सबको पाठ पढ़ाने चल दिए हो।
वन्दे मातरम् राष्ट्रगीत है। हमारा राष्ट्रगीत है। वो तुम्हारे फ़र्ज़ी महिमामंडन का मोहताज नहीं है। अगर उसके प्रति प्रेम दर्शाना ही तुम्हारी राजनीति है तो वो भी करो, लेकिन सलीक़े से तो करो। कोई नया कॉलेज या यूनिवर्सिटी ही खोल लो और दे दो उसे वन्दे मातरम् नाम। हमें भी बहुत अच्छा लगेगा।
और अगर पुराने नाम ही बदलने में तुम्हारी देश भक्ति का पैमाना सिद्ध होता है, तो फिर सिर्फ़ एक ही नाम क्यों बदल कर संतुष्ट हो गए? फिर तो हर शहर में, हर क़स्बे में कम से कम एक एक कॉलेज का नाम तो बदल दो। और कॉलेज ही क्यों, एक हॉस्पिटल, एक सरकारी बिल्डिंग, एक बस अड्डा, एक मंडी, एक बाज़ार, एक कालोनी, एक मोहल्ला, इन सब का भी नाम वन्दे मातरम् रखो, लगे तो सही कि तुम्हारा प्रेम कुछ ज़ोरदार है। उसकी कशिश राष्ट्र गीत के क़द से मेल तो खाती है। सिर्फ़ एक कॉलेज का नाम बदल कर बलाटाली ठीक नहीं है। ये तो symbolism हुआ, असली प्रेम इसमें नहीं झलकता।
राष्ट्रगीत सम्मानित है, उसे यूँ symbolism में मत गिराओ।
और हाँ, इस पोस्ट पर घटिया भाषा में comment करने से पहले याद रखना कि इसी वन्दे मातरम् में हमारी धरती को ‘सुमधुर भाषिणीम्’ कहा गया है – मधुर भाषा वाली । घटिया भाषा का इस्तेमाल करके ख़ुद को वन्देमातरम् का विरोधी मत घोषित करना।
(गुरदीप सिंह सप्पल राज्य सभा टीवी के सीईओ रह चुके हैं। वह मीडिया में कई सालों से सक्रिय हैं)