स्पेशल रिपोर्ट, इकबाल अहमद
भिवंडी, महाराष्ट्र
शहर में पावर लूम की दस दिनों की हड़ताल खत्म हो गई। इस हड़ताल का कोई नतीजा नहीं निकला। पावर लूम मालिकों को बन्दी में करोड़ो का नुकसान हुआ। हज़ारों मज़दूर पलायन को मजबूर हुए। सरकार की तरफ से न तो कोई बातचीत हुई और न ही कोई आश्वासन मिला। आखिर ऐसा क्यों हुआ।
आंदोलन और धरना-प्रदर्शन सरकार तक अपनी बात पहुंचाने का माध्यम है। आज़ादी से पहले अंग्रेज़ों के खिलाफ बहुत से आंदोलन हुए। महात्मा गांधी ने शांति के साथ आंदोलन करके पूरी दुनिया को एक नई दिशा दी। आज़ादी के बाद संविधान में जनता को आंदोलन करने का अधिकार मिला। पर अब आंदोलनों का असर न तो अफसरों पर होता है और न ही सरकारें सुनती हैं। सत्ता हासिल करने बाद सरकार जनता की समस्याओं से लापरवाह हैं, सिर्फ बड़े कारोबारी घरानों के इशारे पर चलती हैं, तो इस तरह से आम जनता को तकलीफ उठानी पड़ती है।
भिवंडी के 5 लाख पावर लूम दस दिनों तक बन्द रहे और सरकार सोती रही। न तो कोई अफसर और न ही कोई मंत्री देखने नहीं आया, कि समस्या क्या है और कारोबार क्यों बंद है। स्थानीय सांसद और विधायक सत्तारुढ़ दल से हैं। जब इस बाबत एक पावर लूम मालिक से हमने बात की तो उसका गुस्सा फुट पड़ा। पावर लूम मालिक ने कहा कि हमने गाँधीवादी तरीके से शांति के साथ बंदी की। पर लगाता है कि सरकार सिर्फ हंगामा करने वालों की सुनती है। पावर लूम मालिक ने कहा कि हम भी तोड़फोड़ और हंगामा करते, शहर को रोक देते तो शायद सरकार हमारी सुनती जैसा गुजरात में हो रहा है।
लूम बंदी की समय सीमा समाप्त होने के बाद भी शहर में सन्नाटा पसरा हुआ है। 80 फीसदी कारखाने आज भी बन्द हैं, क्योंकि पावर लूम मज़दूर बड़ी तादाद में अपने प्रदेश वापस चले गए हैं। मज़दूरों की वापसी कब होगी ये कहना मुश्किल है। इस लूम बंदी में कुछ बड़े लूम मालिक अपने जमा किये हुए कपड़े बेचकर फयदा उठा कर खुश हैं, वही 80 फीसदी लूम मालिक खून के आसूं रो रहे हैं। उनके पास कोई रास्ता नहीं है।
पावर लूम बन्द कराने के लिए बनी संघर्ष समिति में फुट पड़ चुकी हैं। कोई कुछ बताने को तैयार नही कि स हड़ताल का नतीजा क्या निकला। सब एक दूसरे पर इलज़ाम लगा रहे हैं। भिवंडी का पावर लूम मालिक ठगा सा महसूस कर रहा है। सच तो ये है कि भिवंडी शहर में पावर लूम की मंदी से कोई एक वर्ग या समुदाय परेशान है, ऐसा नहीं है। इसका असर सभी पर हो रहा है। इस कारोबार से सभी धर्म और विभिन्न प्रदेश के लोग जुड़े है। हड़ताल खत्म होने के बाद भी इस उद्योग के भविष्य को लेकर कई चिंताएं है जिनका जवाब हर कोई तलाश रहा है।