लड़कों के मुकाबले कहीं ज्यादा लड़कियां शिक्षा के लिए अपने राज्य से बाहर का रुख कर रही हैं। ये चलन उन राज्यों में ज्यादा है जिनकी गिनती आमतौर पर पिछड़े राज्यों में होती है। टाइम्स ऑफ इंडिया लिखता है कि ये जानकारी 2011 की जनगणना से निकलकर आई है।
अगर 2001 और 2011 की जनगणना की तुलना करें तो इन वर्षों के पहले के नौ साल में जहां एक ओर शिक्षा के लिए अन्य राज्यों में जाने वाले लड़कों की संख्या में 13 फीसदी की दर से वृद्धि हुई। वहीं लड़कियों के मामले में ये वृद्धि चार गुना, यानी 52 फीसदी थी।
1992 से 2001 के दौरान पढ़ाई के लिए राज्य से बाहर गई लड़कियों की कुल संख्या लड़कों के एक तिहाई थी। वहीं 2011 में ये संख्या लड़कों के मुकाबले आधी थी।
इस तरह से करीब 54 लाख लड़कियां पढ़ाई के मकसद से राज्य से बाहर गईं। बिहार, राजस्थान, उड़ीसा और यूपी जैसे पिछड़े कहे जाने वाले राज्यों में ये संख्या तुलनात्मक रूप से अधिक थी।
हालांकि अगर रोजगार के लिए बाहर जाने वाली महिलाओं की बात करें तो ये पढ़ाई के लिए बाहर जाने वाली लड़कियों के मुकाबले काफी कम हैं। लेकिन बढ़त यहां भी तेजी से हुई है। इस मकसद से बाहर जाने वाली महिलाओं की संख्या में 31 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि ऐसे पुरुषों में वृद्धि दर 10 फीसदी ही है।
हालांकि 2011 की जनगणना के मुताबिक कुल संख्या में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 12 फीसदी है। जबकि 2001 की जनगणना में इनकी संख्या 10 फीसदी ही थी।
अगर राज्यों की तुलना करें तो बिहार का नंबर सबसे पहले आता है। यहां से पढ़ने जाने वाली लड़कियों की संख्या पहले के मुकाबले 95.5 फीसदी की तेजी से बढ़ी। इस मामले में उड़ीसा दूसरे नंबर पर है। पूरे देश में राज्य से बाहर पढ़ने जाने वाली लड़कियों की संख्या में 51.8 फीसदी की दर से वृद्धि हुई है।
अगर संख्या की बात करें तो दिल्ली में ये एक तिहाई की वृद्धि के साथ 9,000 से बढ़कर लगभग 23 हजार पहुंच गई है। बड़े राज्यों में इनकी संख्या 2001 की जनगणना के मुकाबले लगभग दो गुनी गति से बढ़ी है।
राजस्थान में ये वृद्धि दर 82 फीसदी रही, जबकि उत्तर प्रदेश में 78 फीसदी रही। केरल एकमात्र ऐसा राज्य है जहां दोनों ही जनगणना में लड़कों के मुकाबले ज्यादा लड़कियां पढ़ने के उद्देश्य से राज्य से बाहर गईं।