गुरदीप सिंह सप्पल की फेसबुक वाल से
मोहम्मद बिन तुग़लक़ (1325-1351)
यूँ तो मोहम्मद बिन तुग़लक़ ने 26 साल राज किया था, लेकिन 1327 से 1332 के बीच के पाँच साल बहुत अहम हैं।
- मुहम्मद बिन तुग़लक़ शायद पहले राजा थे, जो पूरे राज्य की आय और ख़र्च का पूरा हिसाब लगाना चाहते थे।
- इसलिए उसने आदेश निकाल कर सभी गवर्नरों को आय-व्यय का ब्यौरा एक स्टैंडर्ड प्रारूप में भरना अनिवार्य कर दिया।
- उसका उद्देश्य पूरे राज्य में एक जैसा यानि समान राजस्व प्रणाली लाना था। साथ ही इससे हर गाँव का आकलन भी हो जाता।
- आय-व्यय के इस नए सिस्टम के लिए अलग ऑफ़िस और अफ़सरों /क्लर्कों की नियुक्ति भी की।
- आय-व्यय का इस आकलन के आधार पर दोआब इलाक़ा, जो गंगा-जमुना के बीच का उपजाऊ इलाक़ा है, उसका उत्पादन काफ़ी बेहतर पाया गया। इसलिए दोआब इलाक़े में राजस्व कर दस प्रतिशत तक बढ़ा दिया।
- लेकिन पूरी जानकारी के अभाव में और ग़लत आकलन के आधार पर की गयी इस कर वृद्धि से बहुत असंतोष उपजा, क्यूँकि ये इलाक़ा अलाउद्दीन ख़िलजी के वक़्त से ही क़रीब 50 पर्सेंट कर दे रहा था, जो कि बहुत ज़्यादा था।
- इससे नीति से काफ़ी किसान असंतोष उपजा और अकाल तक की नौबत आ गयी। लेकिन तुग़लक़ के अधिकारियों ने कर वसूलना जारी रखा।
- बाद में जब असल स्थिति मालूम पड़ी, तो फ़ैसला बदला गया। तब मुहम्मद तुग़लक़ ने किसानों को क़र्ज़ मुहैय्या कराने और दूसरे कई मदद के कार्यक्रम शुरू किये। लेकिन समान राजस्व और अधिक टैक्स की योजना विफल हो गयी।
- मुहम्मद बिन तुग़लक़ के समय मंगोल आक्रमणकारियों का काफ़ी ख़तरा था। साथ ही उसका विज़न खुरासाण (ईरान), कराजाल (नेपाल) और चीन फ़तह करने का था।
- इसके लिए एक बड़ी फ़ौज का ख़र्च उठाने के लिए पैसों की काफ़ी ज़रूरत थी। साथ ही राजधानी बदलने में भी काफ़ी ख़र्च आया था।
- इसलिए 1331 में मुहम्मद तुग़लक़ ने सोने और चाँदी के सिक्कों की जगह पीतल और काँसे के सिक्के चलाने का फ़ैसला किया, जिनका मूल्य सोने और चाँदी के सिक्कों के बराबर था।
- इससे पहले चीन के कुबलाई खान और फ़ारस के ग़ज़ान खान टोकन करेन्सी चलाने में सफल हो चुके थे।
- ये स्कीम आज के काग़ज़ के नोटों जैसी ही थी।
- लेकिन इस स्कीम से सोने और चाँदी के सिक्कों रातों रात पत्थर हो गये और उनका मूल्य ख़त्म सा हो गया।
- दूसरी तरफ़ ठीक से नए सिक्के डिज़ाइन न करने और उनमें शाही मोहर न होने के कारण घर घर में पीतल और काँसे के सिक्के गढ़े जाने लगे। इन फ़र्ज़ी सिक्कों के कारण पूरी अर्थव्यवस्था ही चौपट हो गयी।
- 1332 के अंत तक ये नए सिक्के वापिस लिए गए और पुराने सिक्कों की व्यवस्था वापिस लायी गयी।
- पीतल और ताम्बे के सिक्के सरकार में जमा करवाए गए। इन वापिस किए सिक्कों के ढेर कई साल तक क़िले के दरवाज़े पर लगे रहे। उन्हें समेटा नहीं जा सका।
- 1327 में मंगोलों से राजधानी को बचाने और दक्षिण भारत को बेहतर कंट्रोल करने के लिए मुहम्मद निम्न तुग़लक़ ने राजधानी को दिल्ली से देवगिरी (महाराष्ट्र) ले जाने का फ़ैसला किया और नयी राजधानी को दौलताबाद का नाम दिया।
- हालाँकि ये फ़ैसला तर्कसंगत ही था, लेकिन तुग़लक़ ने दिल्ली की पूरी आबादी को ही 1500 किमी चलने का फ़रमान जारी कर दिया।
- यात्रा के दौरान लोगों की सुविधा के लिए कई इंतज़ाम किए गए। पूरे रास्ते पर छायादार पेड़ लगाए गए, हर दो मील पर रुकने की व्यवस्था की गयी, खाने और पानी का इंतज़ाम भी किया गया, दौलताबाद में नए मोहल्ले और घर भी बसाए गए।
- लेकिन इस काम का स्केल इतना बड़ा था कि बहुत से लोग रास्ते में ही मर गए। साथ ही उनका व्यापार भी नयी जगह पर वैसा नहीं पनप सका।
- उस वक़्त के इतिहासकार ‘बरानी’ लिखते हैं कि उन दिनों दिल्ली लगभग 160-170 साल से तरक़्क़ी पर थी और बग़दाद और Cairo के बराबर ही उन्नत थी। लेकिन बिना राय मशविरा के और नफ़ा-नुक़सान के आकलन के बिना लिए गए इस फ़ैसले ने दिल्ली को बर्बाद कर दिया।
- वहीं दौलताबाद पहुँच कर मुहम्मद तुग़लक़ को बंगाल में विद्रोह की ख़बर मिली। इतनी दूर से उस विद्रोह से निपटने में दिक़्क़त थी।
- तब 1332 में राजधानी वापिस दिल्ली ले जाने का फ़ैसला कर लिया और एक बार फिर सभी लोग दिल्ली ले जाए गए। लेकिन इस प्रयोग के चले दिल्ली की 160-170 की तरक़्क़ी के सफ़र पर ग्रहण लग गया।
- तुग़लक़ ने खेती के विकास के लिए विशेष विभाग बनाया, जिसका नाम दीवान-ए-कोहि था।
- उसने 60 वर्ग मील की ज़मीन में ओपन लैब बनायी। उसमें किसानों को लगा कर कृषि के औज़ारों, बीज, crop rotation पर रिसर्च शुरू करवाती और उस ज़माने में सत्तर लाख की रक़म भी ख़र्च की।
- लेकिन ये प्रोजेक्ट भी फ़ेल हो गया क्योंकि अधिकारियों ने बिना तैयारी के इसे शुरू कर दिया था। यहाँ तक कि ज़मीन जो चुनी, वो भी उपजाऊ नहीं थी।
- मुहम्मद बिन तुग़लक़ के idea सभी तार्किक और वक़्त से आगे थे। लेकिन पूरी तैयारी न करने, योजना ठीक से लागू न करने और लोगों की तकलीफ़ों पर ठीक से ध्यान दे कर समाधान देने में देरी के कारण उनकी सभी योजनाएँ फ़ेल हो गयी और अपने शासन का अंत आते आते तुग़लक़ साम्राज्य भी सिमट कर रह गया ।
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(गुरदीप सिंह सप्पल राज्य सभा टीवी के सीईओ रह चुके हैं। वह मीडिया में कई सालों से सक्रिय हैं)