चंचल बीएचयू
वाराणसी, यूपी
अंदरूनी नही, खुली हुई बात है कि काशी टूटती रही।
लफंगे सोहर गाते रहे। हुकूमत आधा सच बोल रही है- लोगों ने अपनी मर्जी से घर का अधिग्रहण होने दिया है। उनकी रजामंदी से उनके घर तोड़े जा रहे हैं। सही है… लेकिन दूसरा हिस्सा तो बयान करो कि मकान की नावैयत क्या रही और कितने पैसे में रजामंदी बन सकी ?
इतिहास देखो-
ज्यादातर मकान अवैध कब्जा किये हुए हैं। असल मकान मालिक को नाममात्र का किराया मिल रहा था या वो भी नही। इसमे उन दोनों को फायदा दिखा और असली-नकली ने मिल कर अकूत मुद्रा का बंटवारा कर लिया। धनबल पर किसी समाज की संस्कृति तबाह करना उतना ही बड़ा अपराध है जितना बड़ा तलवार के दम पर तबाह करना। काशी तोड़ने के सवाल पर मोदी सरकार चंगेज से भी आगे निकल गयी।
दूसरा वे लोग रहे जो अपने खुद के मकान में रह रहे थे। उनकी दुखती रग पर सरकार ने चांदी का सिक्का रख कर कहा ये लो अकूत दाम और पूरा कर लो अपने अरमान। नया वातानुकूलित मकान, फर्राटेदार गाड़ी, वगैरह वगैरह। अब नंगे बदन गमछे में चलने का रिवायत खत्म करो शहर से बाहर जाओ और अपने मन का क्योटो गढ़ लो। जमीर को मारो गोली, अमीर की सोहबत में ऐश करो। आदमी चांद पर जा रहा है। रजामंदी का यह दूसरा कारण है। यह ‘कोठे’ की तर्ज है। पैसा से खरीदो।
काशी की तबाही का नतीजा कल मिलेगा जब दुनिया यह देखने आएगी की जमीर के गर्दन पर अमीर कैसे चढ़ता है।
(चंचल बीएचयू खाटी के समाजवादी है। वह बीएचयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। राजनीतिक, सामाजिक मालों में बेबाकी से लिखते हैं। जौनपुर में रहकर वह समता घर चला रहे हैं।)