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23 Dec 2024, Mon
तनवीर आलम

तनवीर आलम

लगभग एक महीने और 40 दिन बाद भी सीतामढ़ी में मारे गए ज़ैनुल अंसारी के हत्यारों की गिरफ्तारी न होना अपने आप में समाजसेवियों से लेकर प्रशासन और विशेषकर राजनीतिक दलों के नेताओं के सारे दावों को झूठा साबित कर देता है। वैसे भी सीतामढ़ी दंगे पर हफ्तों हफ्ते तक राजनीतिक कार्यकर्ताओं, दलों के पदाधिकारियों और स्वघोषित क़ौम के नेताओं का कोई अता पता नही था। यहां तक कि उर्दू अखबारों ने खबर तक नहीं लगाई। खैर, मुसलमानों की सबसे हितैषी कही जाने वाली पार्टी के मुखिया और नेता प्रतिपक्ष का पहला ट्वीट, मैं फिर दोहरा रहा हूँ ट्वीट 25 दिन बाद याद 14 नवंबर को आता है। जो नेता अपने पिता के धुर विरोधी पूर्व भाजपा नेता और पूर्व प्रधानंत्री के प्राकृतिक मौत की खबर पर ट्वीट करने में मिनट नही लगाता और लिखता है कि ‘वो हमलोगों के पिता समान थे’ वही नेता एक 80 साल के वृद्ध की हत्या पर 25 दिन लगाता है। और उनकी पार्टी के तथाकथित बुद्धिजीवी सांसद जो लेक्चरर/प्रोफेसर हैं उन्हें भी समझ नही आता कि इस मुद्दे पर बोलना चाहिए।

27 नवंबर को बिहार विधानसभा में विपक्ष ने सीतामढ़ी के दंगे पर सवाल किये, अच्छा किया। लेफ्ट के तीनों नेताओं ने भी सवाल उठाए। तेजस्वी यादव का सवाल उठाना उतना महत्व नही रखता जितना सीतामढ़ी के कुछ लोगों द्वारा तेजस्वी के सवाल उठाने को मसीहाई अंदाज़ में पेश करना। उसपर बात करना महत्वपूर्ण है।

तेजस्वी यादव, 25 दिन बाद ट्वीट करते हैं, उनके सांसद 32 दिन बाद ट्वीट करते हैं, सदन में आवाज़ 38 दिन बाद उठाई जाती है। क्या सीतामढ़ी के इस मुद्दे को उनलोगों ने देश की जनता के सामने पहुंचा दिया है जो तेजस्वी यादव के यहां टिकट मांगने जाते हैं? इस विभत्स घटना को देश के सामने लाने वाला बुद्धिजीवी वर्ग है। ये वो कुछ चेहरे हैं जिन्हें खामोशी और गुमनामी से इंसाफ की लड़ाई लड़ना पसंद है। कोई मुझे बताए केस का स्टेटस क्या है? क्या जिनके FIR होने थे वो गए है? गिरफ्तारियां हो गईं? मुआवज़ा मिल गया? नहीं, तो फ़ाइल इधर से उधर लेकर ‘कुरियर बॉय’ का काम क्यों कर रहे हो दोस्तों। डेढ़ महीने बाद FIR तक नही होना ही सारी क़ाबलियत की फजीहत करा देता है, फिर पीठ क्यों थपथपाना। जो लोग वहां उपस्थित हैं वो ये FIR से लेकर क़ानूनी कार्रवाही को बारीकी से संपादन दो कर करा सकते हैं।

लाश पर खड़ी की गई राजनीति फिर लाश का तलाश करेगी। इसलिए हत्या, दंगे और प्राकृतिक आपदाओं में बिना चेहरा चमकाए कार्य करने की प्रवृति को विकसित करना होगा। तेजस्वी ने सीतामढ़ी दंगे के मामले में अबतक कोई ऐसा कार्य नही किया जिससे उसका गुणगान किया जाए, उसको मसीहा बनाया जाए। बल्कि जबतक इंसाफ नही मिलता तबतक तेजस्वी पर नेता प्रतिपक्ष की हैसियत से सवाल उठते रहेगा। इसलिए प्रशासनिक दबाव के साथ साथ इसकी क़ानूनी बारीकियों पर अधिक कार्य करने की आवश्यकता है। दंगों में बयानबाज़ी या फ़ोटो सेशन से इंसाफ नही दिलाया जा सकता। उसके लिए बिना अपने नाम का ज़िंदाबाद कराए खामोशी से उन क़ानूनी बारीकियों को समझकर काम करना होता है जिससे इंसाफ मिल सके।

आशा है पीड़ितों को इंसाफ दिलाने की मुहिम निःस्वार्थ आगे बढ़ती रहेगी।

तनवीर आलम
(प्रेसिडेंट, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एलुमनाई एसोसिएशन ऑफ महाराष्ट्र, मुम्बई
मोब- +91-9004955776)