बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती यूपी विधानसभा चुनाव-2022 में अपनी पार्टी की हार की लगातार समीक्षा कर रही हैं। मंगलवार को उन्होंने आरोप लगाया कि सपा और भाजपा के बीच अंदरुनी मिलीभगत है।
एक ट्वीट में मायावती ने लिखा- ‘यूपी में सपा और भाजपा की अन्दरूनी मिलीभगत जग-जाहिर रही है। इन्होंने विधान सभा आमचुनाव में भी हिन्दू-मुस्लिम कराकर यहां भय और आतंक का माहौल बनाया, जिससे खासकर मुस्लिम समाज गुमराह हुआ और सपा को एकतरफा वोट देने की भारी भूल की। जिसको सुधार कर ही भाजपा को यहां हराना संभव है।’ दरअसल, बसपा सुप्रीमो को लगता है कि यूपी विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की हार हिन्दू-मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के चलते हुए है। इसके पहले पार्टी की हार पर बोलते हुए उन्होंने कहा था कि मुस्लिम समाज का पूरा वोट बीजेपी को हराने के लिए समाजवादी पार्टी की तरफ शिफ्ट कर गया। बसपा को इसी की सजा मिली।
सबसे बुरे दौर में चल रही है बीएसपी
उत्तर प्रदेश में बीएसपी अपने सबसे बुरे दौर में चल रही है। 38 साल की राजनीति में इस बार यूपी चुनाव नतीजे पार्टी के लिए सबसे अधिक अप्रत्याशित रहे। मायावती जिस वोट बैंक के दम पर अपनी शर्तों पर राजनीति करती रहीं, वह भी अब खिसकता नजर आ रहा है। आज बसपा सुप्रीमो ने माना कि मुस्लिम समाज के सपा की तरफ एकतरफा वोटिंग की वजह से दलितों में भी उनके समाज के वोटरों को छोड़ बहुत से लोगों ने भाजपा को एकतरफा वोटिंग कर दी। इस बारे में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बसपा का दलित वोट बैंक भाजपा में अपने को सुरक्षित पाते हुए अब उनके साथ जाता नजर आ रहा है। बुरी स्थिति में भी 22 फीसदी वोट पाने वाली बसपा 2022 के चुनाव में मात्र 12.08 प्रतिशत ही वोट पा सकी। पार्टी ने इस चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत हासिल की है।
14 अप्रैल 1984 को कांशीराम ने जब बहुजन समाज पार्टी का गठन किया तो इसके पीछे उनकी सोच दलितों और पिछड़ों को जोड़ने की थी। लेकिन पिछले 15 वर्षों बसपा का ग्राफ ऐसा गिरा कि वोटिंग प्रतिशत 12.07 प्रतिशत ही रह गया। इस बार तो साफ दिखा कि बीएसपी के दलित वोट बैंक में भी सेंध लग गई।