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22 Dec 2024, Sun

दुनिया की क्यादत के लिए इल्म का होना ज़रूरी

मोहम्मद अकरम

230316 AKRAM COLUMN 1

आज़मगढ़, यूपी

शिक्षा यानी इल्म… एक खुदादाद नेअमत है। इल्म को अगर खुदा का नूर कहा जाए को गलत नहीं होगा। इल्म एक ऐसी दौलत है जो भटके हुए इंसान को राह दिखाती है। इस्लाम ने शुरुआत से ही इंसानियत को इल्म का दरस दिया और शऊर सिखाया।

अल्लाह के पैगम्बर सल. हिदायत का पैकर बनकर इस दुनिया में तशरीफ लाए। उन्होंने पूरी दुनिया को इल्म के नूर से रोशन किया। यही वजह है कि कुरान-ए-करीम में इरशाद हुआ अहले इल्म और जाहिल कभी बराबर हो ही नहीं सकते। शिक्षा यानी इल्म ही तमाम तरक्की और कामयाबी का ज़रिया है। या यूं कहें कि दुनिया की कयादत के लिए इल्म सबसे ज़्यादा जरूरी है।

मौजूदा दौर में इस्लाम में शिक्षा को लेकर कुछ लोग कई सवाल खड़ा करते हैं। इस्लाम धर्म, कुरान शरीफ या पैगंबर-ए-रसूल हज़रत मोहम्मद साहब की कोई हदीस मुसलमानों को शिक्षा दिए जाने का विरोध करने की हिदायत नहीं देती है। फिर आखिर लोग इस्लाम में लड़कियों को शिक्षा के महरूम क्यों कर रहे हैं।

पैगम्बर मोहम्मद साहब ने कहा कि जिसके पास बेटी हो उसकी तौहीन न करें बल्कि उसे बेटे से कम न समझें। ऐसा समझने वाले को अल्लाह जन्नत से नवाज़ेगा। इस्लाम में औरतों की शिक्षा को इसलिए महत्व दिया गया है क्योंकि तालीम याफ्ता औरतों से ही घर बनता है और समाज का विकास होता है।

ज़ाहिर है घर ही बच्चे की पहला स्कूल होता है। लड़कियों की शिक्षा के बिना समाज में किसी प्रकार का विकास संभव नहीं है। सच तो ये है कि इस्लाम में शिक्षा न सिर्फ मर्दों के लिए बल्कि महिलाओं को शिक्षित किए जाने की पक्षधर है। इस्लाम अमन व सलामती का संदेश देता है। शिक्षा का महत्व इस समय केवल सामाजिक उत्थान के लिए ही नहीं बल्कि खुद इस्लाम धर्म की सुरक्षा के लिए भी बेहद ज़रूरी है।

इस्लाम एक विश्वव्यापी धर्म है और इसकी तालीम न सिर्फ पूरे मुस्लिम जगत बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक जैसी हैं। अगर बात अपने मुल्क की करें तो इस समय देश के अधिकाश मदरसों में भी आधुनिक और उपयोगी शिक्षा देने पर ज़ोर दिया जा रहा है। हर साल भारत की सिविल सेवा परीक्षा लोक सेवा आयोग में भी मदरसों से निकले कई छात्र सफल हो रहे हैं। अभी पिछले साल ही देवबंद मदरसा से निकले एक छात्र ने सिविल सेवा परीक्षा में कामयाबी का परचम लहराकर उन लोगों को संदेश दिया जो मदरसों को आधुनिकता से पीछे का मानते हैं।

इस मामले में कश्मीर के शाह फैसल का उदाहरण देख सकते हैं। कुछ साल पहले ही शाह फैसल ने यूपीएससी परीक्षा में देश में पहले नंबर पर आकर भारतीय मुसलमानों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। अगर शाह फैसल की परिवारिक स्थिति देखे तो आपको सहज़ यकीन नहीं होगा। फैसल के पिता की आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। फैसल की मां एक स्कूल में टीचर हैं उन्होंने ने ही अपने बेटे को सिविल सेवा की तैयारी के लिए प्रेरित किया। मां की मेहनत, उनकी सोच रंग लाई और उनका बेटा भारत जैसे विशाल देश में यूपीएसी परीक्षा में पहले नंबर पर आया।

बंगाल, बिहार जैसे राज्यों में मदरसे से निकले छात्र कई ऊंची पोस्ट पर काम कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में भी मदरसों से निकले कई नाम रोशन हैं। यहां तो मदरसों का जाल बिछा हुआ है। मदरसा मैनेजमेंट अपने आप को बदल रहा है। वह दीनी तालीम के साथ दुनियाबी और रोजगार परख तालीम की तरफ कदम बढ़ा रहा है। कई मदरसों में पॉलीटेक्निक खुल गई है जो छात्रों को रोजगार परख शिक्षा दे रहे हैं। स्किल डेवेलप करने में भी अब मदरसे आगे आ रहे हैं। सालाना प्रोग्राम, बच्चों के टूर, मेहमान और कामयाब लोगों के लेक्चर समेत की तरह के कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। कहते हैं जहां चाह वहीं राह… शायद चाह जग चुकी है अह राह कितनी भी मुश्किल हो मिल ही जाएगी।

(लेखक अल-हम्द सोसाइटी के अध्यक्ष और मदरसा रफी-उल-उलूम, माहुल आज़मगढ़ के सदर हैं)