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17 Oct 2024, Thu

सबसे खतरनाक हैं राजनीतिक दलों की जर्सी पहने पत्रकार

RANA YASHWANT ON JOURNALISM ETHICS 1 060917

राणा यशवंत की फेसबुक वाल से

नई दिल्ली

मौजूदा दौर में सबसे खतरनाक वे पत्रकार हैं, जिन्होंने राजनीतिक दलों की जर्सी पहन रखी है। पेशेवर दबाव और मजबूरियां होती हैं, होती रहेंगी- लेकिन पत्रकार होने की मौलिकता और पहली शर्त की हत्या कर पत्रकार बने रहने का दुस्साहस एक हत्यारे के जज बनने जैसा है। एजेंडा लेकर खबरें तय करना और उनको तानना-पसारना, राजनीतिक सांचे से बाहर राजनीतिक व्यवस्था को स्थापित करने की साजिश का हिस्सा है।

एक धड़ा है जिसको मौजूदा व्यवस्था में कुछ भी अच्छा नज़र नहीं आता और पिछली व्यवस्था में कुछ भी बुरा नहीं दिख रहा था। इस तबके को ममता के मोहन भागवत के खिलाफ फैसले और कुन्नूर की ह्त्याएं ठीक लगती है। उधर दूसरा धड़ा है जो ठीक इसके उलट नज़रिया रखता है। उसके पास अखलाक़ और जुनैद जैसों की हत्या के लिये वाजिब दलीलें हैं। डाक्टर विनायक सेन, गदर, बरबर राव और कोबाड गांधी जैसों को लटकाने के हक में टेबल भर दस्तावेज हैं। लकीर के दोनों तरफ के कथित पत्रकार अपनी-अपनी पसंद की दलीय व्यवस्था के लिए सही को गलत ठहराने और गलत को सही साबित करने में सारा हुनर, सारी ताकत झोंक देते हैं। नतीजा ये होता है कि खबर की असलियत को लेकर भ्रम की स्थिति हमेशा बनी रहती है। एक धुंध जिसमें सच को छिपने की जगह मिल जाती है। आम आदमी गुनहगार को देख ही नहीं पाता। यह साजिशन नहीं है, लेकिन खुद में एक साजिश ज़रुर है।

गौरी लंकेश की हत्या के बाद देश भर में एक उबाल देखा जा रहा है। यह उबाल इसलिये नहीं कि किसी दक्षिणपंथी गुट पर संदेह है और मजबूत मौका है हत्या का इल्जाम केंद्र सरकार के सिर मढने का। इसलिए भी नहीं कि कर्नाटक की मौजूदा सरकार के निकम्मेपन को फिर से साबित करने का बड़ा हथियार हाथ लग गया है। बल्कि इसलिए कि लोकतंत्र में एक स्वतंत्र और साहसी आवाज़ की हत्या सबसे खतरनाक बात है। वो रामचंद्र छत्रपति की हत्या हो तो या फिर राजदेव रंजन की, इंद्रदेव यादव की हत्या हो या फिर जगेंद्र सिंह की – ये लोकतंत्र और पत्रकारिता के लिये जरुरी आवाजें थी।

पिछले कुछ सालों से यह देखने में आ रहा है कि एक खास तरह के राजनीतिक तेवर वाले दलों/संगठनों के लिये कुछ पत्रकार वकील बनने लगे हैं, और कुछ इस फिराक में विरोध मार्च का झंडा पकड़ने को बेचैन हैं कि उनकी वाली पार्टी को थोड़ी सांस आएगी। लकीर के दोनों तरफ खड़ी जमातें मीडिया के लिये, पत्रकारिता के लिए, निष्पक्ष-निर्भीक माहौल के लिये और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।

(राणा यशवंत टीवी के जाने माने पत्रकार हैं और इंडिया न्यूज़ से जुड़े हुए हैं)