तो क्या असम के मुख्यमंत्री ने नागरिकता संशोधन कानून से बग़ावत कर दी है? सोनेवाल ने कहा है कि इस क़ानून के चलते कोई भी विदेशी असम की धरती पर नहीं आ सकता। असम पुत्र होने के नाते कभी किसी विदेशी को यहां बसने नहीं दूंगा। सोनेवाल कभी ऐसा नहीं होने देगा। सोनेवाल का यह ट्वीट केंद्र सरकार और गोदी मीडिया के बोगस प्रोपेगैंडा को ध्वस्त करता है कि लोग इस क़ानून को नहीं समझे।
जब बीजेपी का ही मुख्यमंत्री इस विभाजनकारी क़ानून को नहीं समझ पा रहा है तो फिर कौन समझना बाक़ी है। आख़िर सोनेवाल किस विदेशी के नहीं बसने की बात कर रहे हैं? क्या वे हिन्दू शरणार्थियों के बारे में भी कह रहे हैं? बिल्कुल, वर्ना वे तीन देशों से आने वाले हिन्दू बौद्ध जैन पारसी, ईसाई और सिख को असम में बसाने की बात करते।
असम आंदोलन विदेशी को धर्म के आधार पर नहीं बांटता है। इसलिए वहां इस क़ानून का विरोध हो रहा है। सोनेवाल ने भी अपने ट्वीट में यही कहा है कि किसी विदेशी को बसने नहीं देंगे। सोचिए इस क़ानून का विरोध मोदी सरकार में मंत्री रह चुके और बीजेपी के मुख्यमंत्री सोनेवाल ही कर रहे हैं। क्या अब प्रधानमंत्री सोनेवाल को भी अर्बन नक्सल करेंगे?
इस क़ानून से अगर असम को बाहर रखना पड़ेगा तो फिर यह क़ानून है ही क्यों? और आने से पहले असम की बात क्यों नहीं सुनी गई?
तो क्या सोनेवाल का विद्रोह यह बता रहा है कि केंद्र सरकार इस क़ानून को लेकर पूर्वोत्तर या असम के बारे में फ़ैसला पलटने जा रही है? जिसका श्रेय सोनेवाल को देनी की तैयारी की गई है? मुझे लगता है कि बीजेपी के नेताओं को नागरिकता क़ानून के समर्थन में एक रैली लेकर अपने मुख्यमंत्री सोनेवाल के घर जाना चाहिए?