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21 Nov 2024, Thu

इंटरनेशनल स्ट्रीट चिल्ड्रन डे: लखनऊ की संगीता और आँचल की अनोखी कहानी

NGO CHETNA FOUNDATION PROGRAM IN DELHI 1 130422

दिल्ली

ऐसा लगता है कि कई शोषित सड़क पर रहने और काम करने वाले बच्चों के लिए एक नए कार्य का शुभारंभ हो चुका है। यह भारत के ऐसे गुमनाम बच्चे हैं जिनका भविष्य अंधकार में है।  यह बच्चे अपनी आवाज बुलंद करने  के काम में लगे हुए हैं। बच्चों के इस हौसले को देखते हुए सामाजिक संस्था चेतना ने इंटरनेशनल स्ट्रीट चिल्ड्रन डे पर इण्डिया इस्लामिक कल्चरर सेंटर में  पांचवे स्ट्रीट टॉक का आयोजन किया। इसमें लखनऊ, गुरुग्राम, नॉएडा और दिल्ली से आये 10  बच्चों ने अपने जीवन की कहानी को अपनी जुबानी सुनाया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भूतपूर्व मेजर जनरल प्रवीन कुमार थे जिन्होंने कि बच्चो का काफी हौसला आफजाई की। इसके साथ ही साथ बच्चों की हिम्मत को देख कर उन्होंने कहा कि ये बच्चे बहुत ही हिम्मत वाले है जो अपनी बात इतने बड़े मंच पर रख रहे है। ये बच्चे हमारे देश का भविष्य है। बच्चों आप अपने जीवन में तरक्की करो और देश का नाम रोशन करो।

इसके साथ ही साथ दिल्ली बाल आयोग सदस्य निधि ने बच्चो की कहानी सुनकर कहा कि बच्चो आप अकेले नहीं हो हम सब लोग आपके साथ है। किन्तु आपको ही एक वादा करना होगा की आप लोगो को भी समाज को कुछ देना है जिस तरह से आप लोग अपने जीवन में आगे बड़े हो आप दूसरे बच्चो की आगे बढ़ने में मदद कारागर।

इसके कार्यक्रम के वक्ता बच्चो ने अपने वक्तत्व के दौरान बाल मजदूरी, बाल विवाह, बाल योन शोषण, दहेज़ प्रथा, मारपीट, भेदभाव, गरीबी, बेरोजगारी जैसे आदि मुद्दों का भी विरोध किया। लखनऊ से आई आँचल (परवर्तित नाम) अपने वक्तत्व दौरान कहा की वह बड़ी मुश्किल से स्कूल जा पाई। किन्तु समाज के ठेकेदारों को ये कब पसंद आपने वाला था कि एक लड़की स्कूल जाए। उसके माता पिता को भड़काया। किन्तु आँचल ने हार नहीं मानी और वह अपनी मंजिल के रस्ते पर चलती रही आज वह दसवीं कक्षा की छात्रा हैं।

इसी तरह से नॉएडा से आये हुए किशन (परवर्तित नाम) ने बताया कि उसने अपने जीवन में किस तरह से कठिनायों का सामना करते हुए अपने जीवन में आगे बड़ा है आज वह 10 कक्षा का छात्र होने के साथ साथ सड़क एवं कामकाजी बच्चो के अख़बार बालक नामा का एडिटर भी है।

चेतना संस्था के निदेशक संजय गुप्ता जी ने कहा कि समारोह का मुख्य उद्देश सड़क एक कामकाजी बच्चों के लिए समर्थन और जागरूकता फैलाना है जिससे कि उन्हें एक पहचान मिले और लोग इस बात को समझें कि यह बच्चे कितनी विषम परिस्थितियों में रहते हुए भी  अपने सपनों को पूरा कर रहे हैं यह बच्चे भी किसी से कम नहीं है।