काबुल, अफ़गानिस्तान
20 साल तक हुकूमत रहने के बाद अफगानिस्तान में दुनिया के कई देशों ने भारी निवोश किया। एक दशक पहले जब भारत और अफगानिस्तान ने मिलकर उस समझौते पर दस्तखत किए थे, जिसमें अफगानिस्तान को विकास के पथ पर खड़ा करने के लिए भारत की ओर से हर मदद की जाएगी। तब इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं था कि एक दशक बाद ही भारत के तकरीबन 23 हजार करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट इसी समझौते में फस जाएंगे।
भारत ने अफगानिस्तान को खड़ा करने के लिए बांध से लेकर स्कूल, बिजली घर से लेकर सड़कें, काबुल की संसद से लेकर पावर इंफ्रा प्रोजेक्ट्स और हेल्थ सेक्टर समेत न जाने कितनी योजनाओं में अरबों रुपया लगा दिया था। सवाल यह है कि अफगानिस्तान में भारत के इतने भारी निवेश का अब क्या होगा। यही अब सबसे बड़ी चिंता की बात भी बनी हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि अब अफगानिस्तान में तालिबानियों की सत्ता है। ऐसे में उस मुल्क की सत्ता ही तय करेगी कि उन्हें किस तरीके का रिश्ता अन्य मुल्कों के साथ रखना है और विकास के लिए क्या रूपरेखा तैयार करनी है।
अफगानिस्तान में जिस तरीके से तख्तापलट कर तालिबानियों ने कब्जा कर दिया। उससे भारत के माथे पर चिंता की लकीरें दुनिया के अन्य मुल्कों से ज्यादा ही है। विदेशी मामलों के जानकार बताते हैं कि भारत की अफगानिस्तान से घनिष्ठता पाकिस्तान को सबसे ज्यादा अखरती भी थी। क्योंकि उसके पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान में भारत का हद से ज्यादा दखल भी था। जो पाकिस्तान को भारत के दबाव में रहने के लिए मजबूर करता था। रणनीतिक समझौते के तहत भारत में ना सिर्फ अफगानिस्तान को खड़ा करने के लिए अब तक तकरीबन 23 हज़ार करोड़ रुपये का निवेश किया। बल्कि अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था चलाने के लिए बहुत मदद भी की। अब तालिबान की सत्ता बनने के साथ यह सारे प्रोजेक्ट और अर्थव्यवस्था में निवेश बीच अधर में फंस गया है।
दरअसल इससे भी बड़ा सवाल यह है कि तालिबान आतंकी संगठन के तौर पर घोषित है। ऐसे में आतंकी संगठन का सत्ता में आना और फिर उसके साथ समझौता कर ठप हुईं योजनाओं को चलाना निश्चित तौर पर बहुत जटिल प्रक्रिया न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के उन सभी देशों के लिए है तालिबान को आतंकी संगठन की श्रेणी में रखते हैं।
विदेशी मामलों के जानकार बताते हैं कि जब तक अफगानिस्तान में सत्ता संवैधानिक तरीकों से चुनाव के माध्यम से नहीं चुनकर आएगी तब तक दुनिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले लिए मुल्कों के लिए बड़ी चुनौतियां आनी तय हैं। भारत के लिए पूरे अफगानिस्तान में तालिबानियों का कब्जा होना न सिर्फ व्यापारिक दृष्टिकोण से बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण से भी बेहद चिंताजनक है। संवैधानिक तरीके से बनी सरकार के साथ कोई भी व्यवसायिक डील या उस देश को स्थापित करने वाले समझौते करना किसी भी मुल्क के लिए दिक्कत भरा नहीं होता है।
ऐसे में अब भारत के पास अपने 23 हज़ार करोड़ों रुपये के फंसे हुए प्रोजेक्ट पर कोई भी बात आगे बढ़ाने के लिए सबसे पहले इस बात का इंतजार करना होगा कि अफगानिस्तान में चुनी हुई सरकार बने। अगर ऐसा संभव नहीं होता है तो भारत ने अभी तक जितना भी निवेश किया है उसका कोई भी रिटर्न फिलहाल मिलता हुआ नजर नहीं आ रहा है। यह रिटर्न जरूरी नहीं कि वित्तीय व्यवस्था के तहत ही हो। यह रिटर्न रणनीतिक मामलों में कई और तरीकों से भी मिलता है। अब जब सत्ता तालिबान के पास है तो एक तरीके से गेंद उनके पाले में ही है कि वह अपनी सत्ता को किस तरीके से लोकतांत्रिक व्यवस्था में बदलते हैं और पूरी दुनिया उनको किस तरीके से अपनाती है।
अफगानिस्तान में भारतीय निवेश
अफगानिस्तान के हेरात राज्य में सलमा बांध का निर्माण कराया जा रहा है। 42 मेगावाट की क्षमता वाला यह हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट है। अफगानिस्तान में ही बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन की ओर से 200 किलोमीटर से ज्यादा लंबा जरंज देलारम राजमार्ग का निर्माण भी कराया जा रहा है। विदेशी मामलों के जानकार बताते हैं यह प्रोजेक्ट ईरान बॉर्डर के करीब से गुजरता है। भारत इस प्रोजेक्ट को 147 मिलियन डॉलर से तैयार करवा रहा है। भारत ने तकरीबन 92 मिलियन डॉलर की लागत से अफगानिस्तान की संसद का निर्माण कराया था। यूपीए सरकार में भारत सरकार और आधार कार्ड डेवलपमेंट नेटवर्क के तहत एक समझौता हुआ, जिसमें अफगानिस्तान के अस्तित्व को बरकरार रखने वाले स्तोर पैलेस का जीर्णोद्धार कराया। इसके अलावा भारत ने अफगानिस्तान में पुल ए खुमरी में 220 केवीए का पावर इंफ्रा प्रोजेक्ट शुरू किया गया।
अफगानिस्तान में बेहतर टेलीकम्युनिकेशन व्यवस्था के लिए भारत ने निवेश किया। हेल्थ एंड स्ट्रक्चर के लिए भी भारत बीते कई दशकों से अफगानिस्तान में मदद करता आ रहा है। भारत ने अफगानिस्तान के बदरखाशान, कंधार, खोस्त, कुनार और नूरिस्तान जैसे बहुत से शहरों में अस्पतालों का निर्माण कराया। ट्रांसपोर्टेशन के लिए तकरीबन 600 से ज्यादा छोटी बड़ी बसें और 300 से ज्यादा सैन्य वाहन समेत सैकड़ों एम्बुलेंस भी अफगानिस्तान को मुहैया कराए। अफगानिस्तान को मजबूत करने के लिए भारत की ओर से ऐसे बहुत सारे प्रोजेक्ट न सिर्फ चल रहे हैं बल्कि आने वाले सालों में पाइप लाइन में भी थे।