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15 Mar 2025, Sat

तलहा रशादी की फेसबुक वाल से

आज़मगढ़
बिजनौर रेप की खबर जैसे सामने आई… आपने इसे हिन्दू बनाम मुस्लिम बना दिया। सोशल मीडिया और न्यूज़ पोर्टल्स के क़ौमी ठेकेदार समाज की भावना को भड़काने के लिए रोज़ेदार मुस्लिम महिला लिखने लगे क्योंकि धर्म के नाम पर भीड़ आती है। हालांकि इस घिनौनी हरकत के खिलाफ सबसे पहले आवाज़ उठाने वाला युवक #उमेश हिन्दू था और पहला बयान देने वाला गार्ड भी हिन्दू था। इस मामले में आरोपी सिपाही को पीटने वालों में भी दोनों धर्म के लोग थे।

आपको जज़्बात पसन्द हैं और मज़हब के नाम पर आपके जज़्बात भड़क उठते हैं तो वही किया गया। यहां तक कि बिना सोचे समझे ही पीड़ित लड़की की तस्वीर बहन की इज़्ज़त की दुहाई देते हुए शेयर करने लगे। ये भी न सोचा कि बहन की पहचान आम करने से उनकी और रुसवाई होगी। इसके बाद हुआ ये कि क़ौम बड़ी तादाद में पुलिस स्टेशन से लेकर अस्पताल तक पहुंची, नारे लगायी, गालियां बरसाई… पर मुल्ज़िम सिपाही का कुछ न कर सकी।

आपने बिना सोचे समझे कुछ होने से पहले ही इस मसले को हिन्दू-मुस्लिम बना दिया। फिर क्या था पुलिस से लेकर मीडिया तक हिन्दु बन गए और फिर उस मुजरिम सिपाही को दामाद की तरह सम्मान दिया गया। आप कुछ न कर सके। सिर्फ तस्वीर/वीडियो बनाकर फेसबुक पे डाल फांसी के लिए सर्वे कराते रह गए और माँ-बहन गालियां देते रह गए। अगर आपको इतना गुस्सा था तो आपने क्यों नही वही थाने में उसे सबक़ सिखाया? हिम्मत नही कर सके न क्योंकि सिस्टम से लड़ना पड़ता। आपके इस हिन्दू-मुस्लिम वाले विधवा विलाप ने मौका दिया कि मुजरिम जुर्म करके आपके सामने सीना चौड़ा कर चलता रहा और आप छटपटा के रह गए। अगर पुलिस ने उसे पक्षपात कर हौसला दिया तो पुलिस को उकसाया भी तो आपने।

ये सच है कि मुल्क में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाई जा रही है। हर हादसे को हिन्दु-मुस्लिम के चश्मे से देखेंगे तो कहीं न कहीं आप इस नफरत को ही बढ़ावा दे रहे हैं। पूरा मुल्क आपका दुश्मन नही है, आपके दुश्मनों की तादाद बहुत थोड़ी है और वो कमज़ोर है। पर आप मुल्क के उन तबके को अपना दोस्त नही मानेंगें तो ज़ाहिर है कि आपके दुश्मन उन्हें अपना दोस्त बनाने की कोशिश करेंगें। मुल्क में मौजूद मुस्लिम दुश्मन यही चाहते हैं कि आपके जज़्बात भड़के और फिर आप चाहे अनचाहे इन नफरत का हिस्सा बने। क्या इस नफरत को रोकना आपका फ़र्ज़ नही है। वो जान बूझ कर ऐसा कर रहे हैं कि आप जज़्बात में सड़क पे उतरें और वो सिस्टम के सहारे आपका हौसला तोड़ सकें या आप कुछ ऐसा करें कि वो आपको बदनाम के सके। दोनो शक्ल में जीत उनकी है।

मुंबई का आज़ाद मैदान और बंगाल का मालदा गवाह है इसका। आप क्यों इतने Predictable हैं? आखिर कब तक इस Victimisation mode और एहसास के कमतरी का शिकार बने रहेंगे? हर मामले में क्यों आपको लगता है कि आप मुस्लिम हैं इसलिए आपके साथ ऐसा हुआ?

हो सकता है उस सिपाही ने नफरत के नाते ही उस मुस्लिम लड़की को अपनी हवस का शिकार बनाया हो। पर ये भी हो सकता है कि वहां कोई हिन्दू लड़की होती तो उसके साथ भी ये दरिंदा यही करता। या इनके उलट कहानी कुछ और भी हो सकती है। बिहार की मासूम बिटिया नैंसी के साथ सामूहिक रेप कर एसिड से जला दिया गया। सीतापुर में महिला दरोगा से खुलेआम बलात्कार हुआ। बुन्देलखण्ड में एक 6 साल की बच्ची को दो लोगों ने अपनी हवस का शिकार बनाकर क़त्ल कर दिया। क्या उनके लिए आवाज़ उठाना हमारा फ़र्ज़ नही? क्या ये इस्लाम हमें नही सिखाता? क्या हमारा खून तभी खौलेगा जब आगे #रोज़ेदार या #मुस्लिम लिखा होगा?

क्या हम बिजनौर रेप को भी एक हिंदुस्तानी बेटी का रेप का मसला नही बना रहने दे सकते थे। कम से कम तब तक जब तक उधर से पक्षपात न होता। पर हमने पहले खुद ही पक्षपात कर दिया और इल्ज़ाम उन पर लगाने लगे। हर वो इंसान जिसके अंदर इंसानियत होगी वो ऐसी हरकत का विरोध करेगा पर आपने मौक़ा ही कहाँ दिया। पहले ही विधवा विलाप करने लगे।

आपको लड़ना है इस नाइंसाफी के खिलाफ तो अपने गुस्से और जज़्बात को सहेजिये और सही दिशा में ज़ाहिर कीजिये। वो अगर सिस्टम के सहारे लड़ सकते हैं तो आप भी सिस्टम का सहारा लीजिये। आज 50 मुस्लिमों ने सिविल सर्विसेज qualify किया है। क्यों नही उन्हें मुसलमान होने के नाते रोक दिया गया? इस नफरत और पक्षपात भरे माहौल में भी ये रिकॉर्डतोड़ आंकड़े है। इन छात्रों ने साबित कर दिया कि अगर सिस्टम बदलना है तो सिस्टम का हिस्सा बनना होगा पर आप कब बदलेंगे? जिस सिस्टम का इस्तेमाल वो कर सकते हैं उसी को आप भी इस्तेमाल कर सकते हैं बस सोच का फर्क है।

जेवर, गोंडा, बिजनोर आदि घटनाओं पर गुस्सा और रोष है न तो रोने के बजाए आगे आइये और राजनैतिक और कानूनी तौर पे लम्बी लड़ाई लड़िये। माइनॉरिटी कमीशन, वीमेंस कमीशन को खत लिखिए, लोकतांत्रिक तरीके से सड़क पे उतारिये, आपको किसी नेता या लीडर की ज़रूरत नही है इसके लिए तभी आपको इंसाफ मिलेगा वरना यूँही रोते रहिये और छाती पीटीए और वो ऐसे ही आपको मुस्कुराकर 56 इंच की छाती दिखाते रहेंगे।

(तलहा रशादी राजनीतिक दल उलेमा कौंसिल के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)