लखनऊ, यूपी
रिहाई मंच ने जामिआ मिल्लिया की लाइब्रेरी में पढ़ रहे छात्रों पर लाठियां बरसाने वाली दोषी पुलिस और आरएएफ के जवानों के खिलाफ तत्काल कड़ी कार्रवाई की मांग की है। मंच ने आरोप लगाया कि योगी सरकार की शह पर सामंती तत्वों ने कानपुर में दलित बस्ती की महिलाओं, बच्चों समेत करीब दो दर्जन लोगों को बुरी तरह से हिंसा का शिकार बनाया। रिहाई मंच का एक दल मंगलवार को पीड़ितों से मुलाकात करेगा।
रिहाई मंच नेता रविश आलम ने कहा कि जामिआ की लाइब्रेरी में घुस कर वहां पढ़ रहे छात्रों की एकतरफा पिटाई का दृश्य विचलित करने वाला है। यह दिल्ली पुलिस की बर्बरता का खुला सबूत है। उन्होंने कहा कि पुलिस बलों में साम्प्रदायिकता का ज़हर फैलने के कारण ही इस तरह की घटना संभव हो पाई। इसी की बानगी हमने दिल्ली चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा लगवाए जा रहे गोली मारो के नारे या प्रवेश वर्मा के घरों में घुसकर प्रदर्शनकारियों द्वारा बलात्कार जैसी विभाजनकारी बातों और प्रदर्शनकारियों को आतंकवादी कहने में देख सकते हैं।
केंद्र सरकार ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न करके यह साबित किया है कि पार्टी को इस तरह के साम्प्रदायिक और विभाजनकारी तत्वों को शरण देने में कोई परहेज़ नहीं है। इसी की एक और बानगी हम गार्गी कालेज में देख सकते हैं कि नशे में धुत सीएए के समर्थक प्रदर्शनकारियों ने छात्राओं के साथ अशलीलता की सारी हदें पार कर दी और जामिआ मामले में बहुत सख्त दिखने वाली दिल्ली पुलिस और आरएएफ के जवान मूक दर्शक बने रहे।
रिहाई मंच नेता शाहरुख अहमद ने कहा कि कानपुर में दलित बस्ती पर सुनियोजित हमला राजनीतिक संरक्षण और उत्तर प्रदेश पुलिस की मिली भगत के बिना संभव नहीं हो सकता था। उन्होंने कहा कि पूरी बस्ती को घेर कर दो दर्जन लोगों को गंभीर चोट पहुंचाना और बस्ती को आग लगा देना कोई मामूली अपराधिक घटना नहीं है, जिसे कुछ सिर फिरे लोग बिना किसी संरक्षण के अंजाम दे सकें।
उत्तर प्रदेश में दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न की घटनाएं सामान्य बात होती जा रही हैं। योगी सरकार कानून व्यवस्था के नाम पर फर्जी एनकाउंटरों में दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के युवकों को गोली का निशाना बनवाती है लेकिन हर रोज़ बढ़ रही अपराधिक घटनाओं को अंजाम देने वाले खुले आम प्रदेश में घूम रहे हैं।