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22 Nov 2024, Fri

भीमा-कोरेगांव का इतिहास: दलितों ने बहादुरी से पेशवा सेना को कैसे हराया था

MAHAR DALIT MOVEMENT IN MAHARASHTRA 1 030118

पुणे, महाराष्ट्र

पुणे के भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200वीं सालगिरह को लेकर सोमवार को समारोह में हिंसा का तांडव फैलाया गया। दरअसल ये एक सोची-समझी साजिश दिखाई दे रही है। दलित यहां कोई पहली बार कार्यक्रम नहीं कर रहे थे बल्कि यहां हर साल कार्यक्रम होता था। इस साल 200वीं सालगिरह पर बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस पूरी हिंसा के पीछे में एक बीजेपी नेता का नाम सामने आ रहा है। ये समारोह क्यों आयोजित होता है इसके बारे में जानिए…

दरअसल 1 जनवरी 1818 को भीमा-कोरेगांव में अंग्रेजों की सेना ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के 28,000 सैनिकों को हराया था। ब्रिटिश सेना में अधिकतर महार जाति यानी दलित जवान थे। दलित समुदाय इस युद्ध को ब्रह्माणवादी सत्ता के खिलाफ जंग मानता है। कहा जाता है कि यहां भी दलितों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था।

5 नवंबर 1817 को खडकी और यरवदा की हार के बाद पेशवा बाजीराव द्वितीय ने फुलगांव में डेरा डाला था। उनके साथ प्रताप सिंह छत्रपति और उनकी 28,000 की सेना थी। जिसमें अरब सहित कई जातियों के लोग थे। दिसंबर 1817 में सूचना मिली कि ब्रिटिश सेना शिरुर से पुणे पर हमला करने के लिए निकल चुकी है। इसलिए प्रताप सिंह ने उसे रोकने का फैसला किया।

800 सैनिकों की ब्रिटिश फौज भीमा नदी के किनारे कोरेगांव पहुंची। इनमें लगभग 500 महार जाति के सैनिक थे। 1 जनवरी 1818 की सुबह पेशवा और ब्रिटिश सैनिकों के बीच युद्ध हुआ।  इस जंग में महार यानी दलित समुदाय ने बहुत बहादुरी दिखाई। महार सैनिकों ने पेशवा सैनिकों की भारी संख्या के बाद भी लड़े। जिसमें ब्रिटिश सेना को पेशवाओं पर जीत हासिल हुई। इस युद्ध की याद में अंग्रेजों ने 1851 में भीमा-कोरेगांव में एक स्मारक का निर्माण कराया। हर साल 1 जनवरी को इस दिन की याद में दलित समुदाय के लोग एकत्र होते थे। ये सिलसिला तब से जारी है। इस साल भी दलित समुदाय के लोग यहां इकठ्ठा हुए थे।