आसमोहम्मद कैफ, वरिष्ठ पत्रकार
नई दिल्ली
भारत की हार के बाद जब हताशा में डूबी हुई टीम इंडिया वापस पवेलियन लौट रही थी तो पाक समर्थक हूटिंग करने लगे। भारतीय कप्तान विराट कोहली सबसे आगे थे और धवन उनके पीछे। पाक समर्थक बोले “बाप कौन है बाप” विराट ने पलटकर देखा नहीं। पीछे इस पूरे टूर्नामेंट में बाहर बैठाए गये तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी थे। यह उन्हें भी कहा गया शमी रुक गए और तमतमा कर पाक समर्थक की बढ़े। उन्होंने कहा “बताऊँ कौन है बाप” शमी के ठीक पीछे महेंद्र सिंह धोनी थे। वो मोहम्मद शमी को समझाकर अपने साथ ले गए।
बाद में यह वीडियो वायरल हो गया और दुनिया भर में मोहम्मद शमी को भारतीयों ने तारीफ़ की। भारत की और से दूसरी तारीफ सानिया मिर्ज़ा के हिस्से में आयी जो पाक विजेता टीम के साथ खेल रहे शोएब मलिक की बीवी है। उन्होंने भारत की हार के बाद ट्वीट किया कि ठीक है आप जीत गए मगर हमने आपको हॉकी में हराकर हिसाब बराबर कर दिया। पाक कप्तान सरफ़राज़ खान के मामा ने इटावा में भारत के पक्ष अपील कर चर्चा पायी ही थी।
हार के बाद सोशल मीडिया पर इस तरह का माहौल बनने लगा जैसे पाकिस्तान की जीत पर भारत के मुसलमान बहुत खुश हो और जश्न मनाया गया हो। अखबारी और टीवी मीडिया ने भी ऐसा ही प्रचार किया। सोशल मीडिया पर मुसलमानों को गद्दार कहा जाने लगा। सच्चाई समझने के लिए अलग अलग तरह के मुसलमानों से बात की गई और इसका कारण जानना चाहा।
क्या कहते हैं पूर्व क्रिकेटर
मंडल स्तर क्रिकेट खेल चुके फिरोज अली के मुताबिक “खेल में हार-जीत होती रहती है, पाकिस्तान एक मैच जीत गया है अक्सर हम ही ने उसे धूल चटाई है। विश्व कप में वो हमसे कभी नही जीत पाये है। अगर वो हमसे 10 मैच खेलते हैं तो हम उन्हें 9 में हरा देंगे। यही पिछला रिकॉर्ड भी कहता है। यह पाकिस्तान की क्रिकेट टीम की जीत है। भारत के मुसलमान क्यों जश्न मनाएंगे। क्या पाकिस्तान में रहने वाले हिन्दू समाज के लोगो ने भारत की हार पर मातम मनाया होगा… नहीं ना। उन्होंने अपने देश की जीत पर खुशी मनायी होगी। इसी तरह मुसलमानों को भी दुःख हुआ। यह देश प्रेम का मामला है।
क्या सोचते हैं युवा खिलाड़ी
उत्तर प्रदेश अंडर- 14 के प्रतिभाशाली खिलाडी आवेश खान के मुताबिक वो अपनी टीम में खेल रहे लड़कों की जाति भी नहीं जानते… बस टीम जानते है। मेरा ख्वाब पाकिस्तान के खिलाफ खेलना है और इसके लिए वह मैं पूरी जान लगा दूंगा जितनी मैंने कभी ना लगायी हो। हमारे यह पूछने पर कि वो ऐसा एक खिलाड़ी के तौर पर करना चाहेंगे या एक मुसलमान के तौर पर… तो 14 साल के आवेश खान कहते है एक खिलाड़ी, मुसलमान और इंडियन तीनो के तौर पर। वो हमें ही पूछ लेते है अच्छा आप बतायें भारत के मुसलमान खिलाडी पाक के खिलाफ ज्यादा अच्छा नही खेलते हैं कि नहीं। जैसे इरफ़ान पठान, अज़हर, कैफ, वसीम जफ़र या कोई भी।
अखबारों की खबरों की हकीकत
कुछ अखबारों में यह लिखा की भारत की हार पर पटाखे चलाये गये और ऐसा मुस्लिम बहुल इलाकों में हुआ। हमने पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के खालापार के निवासी और एक सामाजिक संस्था पैग़ाम-ए-इंसानियत के सदर हाजी आसिफ राही से पूछा तो उन्होंने बताया कि “इस दिन अज़ीम बरकतों वाली शब-ए-कद्र की रात थी। जब तमाम मुसलमान बारगाहे इलाही में सज़दा करके अपने गुनाहों की माफ़ी मांगता है। इस दिन तो वो अपने मुल्क की जीत में भी पटाखे छोड़ने में असमर्थ महसूस करेगा। पाकिस्तान तो वैसे भी हमारा दुश्मन देश है और कश्मीर में खुराफात करता रहता है। यहाँ कहीं कोई पटाखा नही छोड़ा गया।
मुजफ्फरनगर दंगे के बाद से खालापार में वैसे भी पुलिस अलर्ट रहती है और बराबर के गहराबाग़ में मिल्ट्री भी। मगर यहाँ मस्जिदों से तराबीह (रमजान में पढ़ी जाने वाली ख़ास नमाज़) की आवाज़ रही थी मगर पटाखों की नही। खालापार से सटे मोहल्ले अबुपुरा के अनिल कुमार के मुताबिक “उन्होंने खालापार से पटाखों की कोई आवाज़ नही सुनी।”
अखबार ने गढ़ी फर्ज़ी कहानी
अलीगढ में एक अखबार में साम्प्रदयिक सोच के एक पत्रकार ने लिखा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के आसपास के इलाके में मुसलमानों ने ख़ुशियां मनायी। पड़ताल में यह बात पूरी तरह झूठी पायी गयी।
पटाखे चलाने की दूसरे शहरों की सच्चाई
मेरठ के तनावपूर्ण इलाके कहे जाने वाले इस्लामाबाद में जश्न मनाए जाने की खबर हिन्दू आबादी में उड़ी और सोशल मीडिया पर प्रचार हुआ। यहाँ के स्थानीय निवासी जफ़र अहमद के अनुसार “यह एकदम झूठी अफवाह थी। मोदी के प्रधानमंत्री और योगी के मुख्यमंत्री रहते हुए कोई ऐसा करने के हिम्मत कर सकता है। कुछ लोग नफरत फैलाने का काम पूरी ताकत से कर रहे है।
सहारनपुर के छिपियान में भी लोग टीवी से चिपके रहे थे और हार से हताश होकर घर चले गए। यहां पुलिस ने गश्त भी किया मगर सब कुछ शान्त था। किसी ने कहा कि यहाँ के एक दूसरे मोहल्ले डोलीखाल में कुरेशी समाज पटाखे फोड़ रहा है। खुद एसएसपी बबलू कुमार उधर से निकले मगर उन्हें कुछ नही मिला। यहाँ के फरमान कुरैशी के मुताबिक अब क्रिकेट में लोगो की रूचि कम है। मैच के जीत-हार से क्या होता है। पाकिस्तान हमेशा हारता ही आया है।
मुरादाबाद का कांठ भी मुस्लिम बहुल इलाका है। यहाँ भी अफवाह फैली कि पटाखे छूट रहे हैं। यहाँ के नदीम मंसूरी के अनुसार ऐसा कुछ नही हुआ अलबत्ता पुलिस ज़रूर आयी। बिजनौर के काजीपाड़ा में भी यह अफवाह फैली मगर वो भी झूठ निकली।
पटाखे फूटने का अफवाह क्यों फैलाई
मगर सवाल यह था कि जब कहीं पटाखे नही फूटे और पुलिस हलकान रही तो वजह क्या थी। देहरादुन के फैसल खान के मुताबिक साम्प्रदयिक ताकतें नफरत फैलाने के बहाने तलाश रही है। क्रिकेट भी ऐसा ही है। यह पुराना फार्मूला है कि मुसलमान पाकिस्तान की जीत पर पटाखे फोड़ता है। उसके पास रोटी के लिए तो पैसे है नही। ईद के खर्च की चिंता उसे खाये जा रही है और पटाखे कैसे छोड़ देगा। सब मुसलमान को बदनाम करने की साज़िश है। इस दिन बहुत शादियां हो रही थी। अब मुसलमान तो रमज़ान में शादी भी नहीं करता। जीत जाते तो कहते मुसलमानों ने मातम मनाया।
क्रिकेट सांप्रदायिक हो गया
फैसल ख़ान कहते हैं कि क्या कहा जाए.. अब खेल भी हिन्दू-मुस्लिम हो गया है। भारत और पाकिस्तान का मैच हमेशा से “हाईटेम्पर” रहा है। जिससे सबसे ज़्यादा तकलीफ मुसलमान को होती है। वरिष्ठ नागरिक और नवभारत टाइम्स के संपादक रहे मेहरूदीन खाँ कहते हैं कि “इसका एक ही उपाय है क्रिकेट बंद कर दो। इसने युवाओ को बर्बाद कर दिया है। या फिर पाकिस्तान से तो खेलो ही मत।