भारतीय विदेश मंत्रालय की कूटनीति एक नए मुहाने पर खड़ी है। इस समय विदेश मंत्रालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रहे प्रोपेगैंडा से निपटने में पसीना आ रहा है। न्यूयार्क टाइम्स से लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया बिरादरी भारत में मुस्लिम विरोधी अभियान को चला रही है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370, वहां मानवाधिकार की स्थिति, अयोध्या में राम मंदिर मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय का फैसला, तीन तलाक कानून, समान नागरिक संहिता की चर्चा समेत मुद्दों को मीडिया मुस्लिम विरोधी वातावरण से जोड़ ले रही है। सूत्र बताते हैं कि मौजूदा समय में वित्त मंत्रालय का एक विंग दुनिया भर के देशों को इसकी सफाई करने में जुटा हुआ है।
दर्जनों देशों को अयोध्या फैसले की जानकारी
अयोध्या मामले पर फैसला आने के बाद भी विदेश मंत्रालय को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों (अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, जर्मनी और चीन) को सफाई देनी पड़ी। ओआईसी देशों समेत अन्य दर्जनों देशों को फैसले के बारे में बताना पड़ा। विदेश मंत्रालय ने इन देशों को बताया कि मुकदमे में हर पक्ष को अपनी बात रखने का अवसर दिया गया और भारतीय न्यायालय ने तथ्यों के आधार पर न्यायसंगत फैसला दिया है।
हालांकि विदेशी मीडिया ने जानना चाहा कि भारत में बाबरी मस्जिद ढहाने को भारतीय अदालत ने भी गलत माना, लेकिन इस बारे में अभी तक इसके दोषियों को सजा दिलाने के लिए क्या कार्रवाई हुई? बताते हैं अधिकतर सवालों में 1992 की घटना ही अभी भी बड़ा मुद्दा है।
काशी -मथुरा का नहीं उठेगा मामला?
राम मंदिर पर उच्चतम न्यायालय का फैसला आने के बाद लोग काशी-मथुरा समेत अन्य स्थानों पर मौजूद मस्जिद के अस्तित्व को लेकर पूछताछ कर रहे हैं। राजनयिक सूत्र बताते हैं कि इस तरह के सवालों का जवाब 1951 में बने एक कानून का हवाला देकर जवाब दिया जा रहा है।
अयोध्या में राम मंदिर विवाद का मामला विशेष था, लेकिन इसके बाद भारत सरकार ने कानून बनाकर स्पष्ट किया है कि अन्य मामले नहीं लिए जाएंगे। विदेशी मीडिया सरकार के इस जवाब से संतुष्ट नहीं हो रही है। उसके जवाबी सवाल और भी खतरनाक हैं। विदेशी कश्मीर का हवाला देते हुए तर्क देते हैं कि भारत सरकार काशी-मथुरा आदि के लिए कानून में बदलाव भी कर सकती है।
मानवाधिकार का मुद्दा गले की फांस
मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि चार (पाकिस्तान, मलयेशिया, तुर्की और चीन) देशों को छोड़कर बाकी सभी मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाना भारत का आंतरिक मामला है। मगर जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार का मामला गले की फांस बना हुआ है। अमेरिकी कांग्रेस के जो सदस्य भारत का मुश्किल समय में साथ देते थे, अब वह भी मानवाधिकार को लेकर सवाल उठाने लगे हैं।
राजनयिक सूत्र बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जम्मू-कश्मीर में आम आदमी को दी जाने वाली सहूलियत और मानवाधिकार की स्थिति के बारे में बार-बार पूछा जाता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय जानना चाहता है कि तीन महीने से अधिक समय मिलने के बाद भी अभी राज्य में जनजीवन सामान्य क्यों नहीं हो पा रहा है। इस बारे में भारत सरकार कोई समय सीमा क्यों नहीं बताती?
हर मुद्दे को मुस्लिम विरोधी माना जा रहा
भारत में कश्मीर में कुछ भी हो या अयोध्या पर उच्चतम न्यायालय का फैसला आए या समान नागरिक संहिता (कॉमन सिविल कोड) की चर्चा हो, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी इसे एंटी मुस्लिम वातावरण से जोड़ ले रही है। कई देशों और अंतरराष्ट्रीय मीडिया का मानना है कि भारत में मुस्लिम हाशिए पर रखे जा रहे हैं, उनके साथ भेदभाव हो रहा है। राजनयिक सूत्रों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के सवालों की भरमार हो जाती है और बिना तथ्यों के अंतरराष्ट्रीय समुदाय कोरे जवाब से संतुष्ट नहीं होता।