मधु मंसूरी झारखंड के रहने रहने वाले लोकगायक हैं। उन्हें इस साल पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। रविवार को मंसूरी ने रांची में नए नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों का समर्थन किया। यहां उन्होंने कहा, ‘मैं आंदोलनकारियों के साथ हूं।’ रांची में नए कानून और प्रस्तावित एनआरसी के विरोध में एक बड़ी सभा में 71 वर्षीय मंसूरी ने अपना मशहूर गाना गाया, “गांव छोड़ब नाहीं, जंगल छोड़ब नाहीं, माई-माटी छोड़ब नाहीं, लड़ाई छोड़ब नाहीं।”
उन्होंने सभा को बताया कि वह संघर्ष में उनके साथ हैं। आंदोलनकारियों के साथ हैं। दरअसल 26 जनवरी से एक दिन पहले 25 जनवरी को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित करने के लिए उनके नाम को चुना गया। पुरस्कार की घोषणा के बाद यह उनका पहला प्रदर्शन था।
मंसूरी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “मैं उनके संघर्षों का समर्थन करता हूं लेकिन सीएए और एनआरसी पर ज्यादा बयान नहीं देना चाहता हूं। मैं यहां पुरस्कार का जश्न मनाने और सांस्कृतिक कार्यक्रम का हिस्सा बनने के लिए आया हूं।”
सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘एक शाम संविधान के नाम’ को सीएए विरोध प्रदर्शनों के समर्थन में “संवैधानिक मूल्यों को मनाने” के लिए आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम की शुरुआत बच्चों द्वारा पेंटिंग सेशन से हुई। कार्यक्रम में गायकों और कवियों ने भी हिस्सा लिया और अपना समर्थन जताया।
बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा पारित नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे हैं। दिल्ली के शाहीन बाग से लेकर लखनऊ के घंटाघर और पटना के सब्जीबाग तक में लोग सड़कों पर उतरकर अपना विरोध जता रहे हैं। कहीं रचनात्मक बैनर तैयार कर विरोध जताया जा रहा है तो कहीं भारत का नक्शा बनाकर। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जब तक यह फैसला वापस नहीं हो जाता है, उनका प्रदर्शन जारी रहेगा। हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने साफ लहजों में कह दिया है कि सीएए कानून वापस नहीं होने वाला है। लेकिन प्रदर्शनकारियों की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हुई है।