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21 Nov 2024, Thu

लपेटे में जनता: 7 साल में सरकारी खजाने का घाटा सबसे ज्यादा

FISCAL DEFICIT WIDEN 7 YEAR HIGH IN INDIA 1 310520

नई दिल्ली

देश में कोरोना संकट काल में वित्त वर्ष 2019-20 के आर्थिक आंकड़ों ने मोदी सरकार की चुनौतियां बढ़ा दी हैं। इस साल की जीडीपी ग्रोथ रेट की बात करें तो ये 11 साल के निचले स्‍तर पर है। वहीं, राजकोषीय घाटे का आंकड़ा भी 7 साल के उच्‍चतम स्‍तर पर है। मतलब ये कि वित्त वर्ष 2019-20 में सरकारी खजाने का घाटा सात साल में सबसे ज्‍यादा रहा। सबसे बड़ी बात ये है कि सरकार जितना सोच रही थी, उससे कहीं ज्‍यादा घाटा हुआ है।

क्या है आंकड़े
देश का राजकोषीय घाटा 2019-20 में बढ़कर जीडीपी का 4.6 प्रतिशत रहा जो सात साल का उच्च स्तर है। इससे पहले 2012-13 में राजकोषीय घाटा 4.9 प्रतिशत था। सरकार ने 3.8 प्रतिशत घाटे का अनुमान लगाया था। ये आंकड़े सरकार के अनुमान से कहीं ज्‍यादा है। इससे एक साल पहले वित्त वर्ष 2018-19 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.4 प्रतिशत रहा।

मोदी सरकार का तर्क
मोदी सरकार ने उस समय कहा था कि इसे 3.3 प्रतिशत के स्तर पर रखा जा सकता था लेकिन किसानों के लिये आय सहायता कार्यक्रम (किसान सम्मान निधि) से यह बढ़ा है। सरकार ने एक फरवरी 2019 को 2019-20 का अंतरिम बजट पेश करते हुए किसान सम्मान निधि (किसानों को नकद सहायता) के तहत 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया। आंकड़ों के अनुसार राजस्व घाटा भी बढ़कर 2019-20 में जीडीपी का 3.27 प्रतिशत रहा जो सरकार के 2.4 प्रतिशत के अनुमान से अधिक है।

घाटा बढ़ने का क्या होगा असर
बढ़ते राजकोषीय घाटे का असर वही है, जो आपकी कमाई के मुकाबले खर्च बढ़ने पर होता है। खर्च बढ़ने की स्थिति में हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज लेते हैं। इसी तरह सरकारें भी कर्ज लेती हैं। कहने का मतलब ये हुआ कि राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए सरकार कर्ज लेने को मजबूर होती है और फिर ब्याज समेत चुकाती है। इस घाटे को पूरा करने के लिए सरकार की ओर से तरह-तरह के उपाय किए जाते हैं। मसलन, पेट्रोल-डीजल पर अतिरिक्‍त टैक्‍स लगाने का फैसला भी राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए लिया जाता है। यानी इसकी आंच आपकी जेब तक पहुंचती है।

क्‍या है वजह?
मुख्य रूप से राजस्व संग्रह कम होने से राजकोषीय घाटा बढ़ा है। ये आंकड़े बताते हैं कि टैक्‍स कलेक्‍शन कम रहने के कारण सरकार की उधारी बढ़ी है। आंकड़ों के मुताबिक सरकार का कुल खर्च 26.86 लाख करोड़ रुपये रहा जो पूर्व के 26.98 लाख करोड़ रुपये के अनुमान से कुछ कम है। पिछले वित्त वर्ष में खाद्य सब्सिडी 1,08,688.35 करोड़ रुपये रही, यह सरकार के अनुमान के बराबर है। हालांकि पेट्रोलियम समेत कुल सब्सिडी कम होकर 2,23,212.87 करोड़ रुपये रही जो सरकार के अनुमान में 2,27,255.06 करोड़ रुपये थी।