Breaking
23 Dec 2024, Mon

Exclusive: धनंजय सिंह के बीएसपी में जाने की फिर अटकलें!

जौनपुर, यूपी

ज़िले के पूर्व सांसद धनंजय सिंह के बीएसपी में एक बार शामिल होने की अटकलें लगी जा रही है। बीएसपी के निष्कासित धनंजय सिहं की पार्टी में वापसी को लेकर बीएसपी का कोई भी नेता बोलने को तैयार नहीं है। सूत्रों पर यकीन करें तो एक बार धनंजय की वापसी की जमीन तैयार की जा रही है और जल्द ही वापसी हो सकती है। दरअसल जिले में एक खास वर्ग और मुस्लिमों के एक हिस्से पर धनंजय सिंह की अच्छी पकड़ है और यहां से जीत के लिए यहीं पार्टी की ज़रूरत है।

सूत्रों के मुताबिक लखनऊ में बीएसपी के एक नेता के माध्यम से भी बातचीत चल रही है। यहीं नहीं आज़मगढ़ में पिछले दिनों एक शादी समारोह पूर्व सांसद धनंजय सिंह शामिल हुए थे। इसी शादी में बीएसपी के कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी के बेटे अफज़ल सिद्दीकी भी आए थे। सूत्रों के मुताबिक दोनों के बीच देर तक बातचीत हुई। की स्थानीय नेता भी धनंजय सिंह को पार्टी में वापस लेने का दबाव बना रहे हैं।

धनंजय सिंह मजबूरी या ज़रूरी
जौनपुर के राजनीतिक गणित को देखे तो सभी सीटों पर सपा, बीएसपी और बीजेपी में कांटे की टक्कर रहती है। सदर सीट पर 2012 के चुनाव के रिजल्ट को छोड़ दे तो लगभग सभी सीटों पर जीत का अंतर बहुत कम वोट से होता है। मुस्लिम वोट ज़िले पर पर खासा असर रखते हैं। जौनपुर में बीएसपी के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो पूरे ज़िले पर असर रखता हो। धनंजय सिंह को युवाओं की एक वर्ग पसंद करता है। वहीं दूसरी तरफ शादी-ब्याह से लेकर तमाम प्रोग्राम में उनकी शिरकत से भी लोग जुड़े हुए हैं। बीएसपी के स्थानीय नेताओं के साथ उनके अच्छे संबंध है।

पीएनएस से बातचीत
पीएनएस से बातचीत में धनंजय सिंह ज़िले के नोताओं और कार्यकर्ताओं की जमकर तारीफ करते हैं। वो बड़े नेताओं से नाराज़ दिखते हैं। धनंजय सिंह का कहना है कि ज़िले का हर कार्यकर्ता नकों सम्मान देता है। वो हमेशा पार्टी के सच्चे सिपाही की तरह रहे। पीएनएस के सावल पर की आगे रास्ता क्या है धनंजय सिंह कहते हैं कि राजनीति तो करनी ही है अगर बीएसपी ने मौका नहीं दिया तो समर्थकों के साथ बैठकर आगे का रास्ता तय करेंगे।

बीएसपी में आने-जाने का सिलसिला
ऐसा लगता है कि धनंजय सिंह का बीएसपी में आने-जाने का सिलसिला चल पड़ा है। 2009 में वो बीएसपी से सांसद चुने गए। दिल्ली आवास पर नौकर की हत्या के मामले में उन्हें पार्टी ने बाहर कर दिया। 2014 में वो लोक सभा का चुनाव निर्दलीय लड़े और हार गए। अभी 4 सिंतबर को इलाहाबाद में मायावती की रैली हुई। इस रैली में उन्हें पार्टी में शामिल करने का घोषणा की गई। इसके बाद 13 सितंबर को ज़िले के कोऑर्डिनेटर ने एलान कर दिया कि उन्हें पार्टी से बाहर किया जा रहा है।