नई दिल्ली
लखनऊ के मशहूर टुंडे कबाब को लेकर विवाद में फैसला आ गया है। हाईकोर्ट ने माना कि पुराने लखनऊ में 1905 से बेचे जा रहा कबाब ही असली टुंडे कबाब हैं। कोर्ट में ये भी साबित हुआ कि इन्हें हाजी मुराद अली टुंडे ने बनाना शुरू किया। दरअसल टुंडे कबाब का नाम लेकर दिल्ली समेत कई शहरों में कबाब बेचे जा रहे थे। इसको लेकर टुंडे कबाबी के वारिसों ने मुकदमा किया था।
नवाबों के शहर लखनऊ की पहचान बन चुके टुंडे कबाब को नई दिल्ली में फ्रेंचाइजी के ज़रिए होटलों में इसी नाम से बेचा जा रहा था। इसके खिलाफ टुंडे कबाबी के वारिस मोहम्मद उस्मान ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने उस्मान के हक में निर्णय दिया। मोहम्मद उस्मान द्वारा यह याचिका 2014 में दिल्ली के एक फूड चेन के खिलाफ दायर की गई थी। उसके मालिक मोहम्मद मुस्लिम की ओर से फ्रेंचाइजी कारोबार के तहत होटलों को लखनऊ टुंडे कबाब नाम उपयोग करने दिया जा रहा था।
याचिका में उस्मान का कहना था कि 110 साल से अधिक समय से लखनऊ में टुंडे कबाब की दुकान चल रही है। यहां उनका खास डिश गलावटी कबाब बेचा जाता है। हाल के समय में कबाब बेचने के लिए टुंडे कबाब नाम का उपयोग जगह-जगह किया जा रहा है, इसकी वजह से असली टुंडे की पहचान और नाम को नुकसान हो रहा है। उस्मान ने हाईकोर्ट में बताया कि हाजी मुराद अली का एक हाथ नहीं था। उन्होंने 1905 में पुराने लखनऊ के गोल दरवाजा गली में कबाब की दुकान शुरू की। उन्हें इस विशिष्ट कबाब के लिए लखनऊ के नवाब द्वारा संरक्षण दिया गया।
वहीं दिल्ली में टुंडे कबाब का नाम इस्तेमाल करने वाले मोहम्मद मुस्लिम का दावा था कि हाजी मुराद अली उनके परनाना थे। इसी वजह से वे यह नाम उपयोग कर रहे हैं। हाजी मुराद के कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपने अपने भाई की बेटी को गोद लिया था। इस बेटी का विवाह मोहम्मद हनीफ से हुआ जो मोहम्मद मुस्लिम के पिता थे।
सभी पक्षों और साक्ष्यों के आधार पर हाईकोर्ट ने कहा कि मोहम्मद मुस्लिम के पक्ष को साबित करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं हैं। उनका टुंडे कबाब या टुंडे कबाबी नाम पर क्या अधिकार है, यह वे साबित नहीं कर पाए हैं। वे जो ट्रेड मार्क उपयोग कर रहे हैं, वह मोहम्मद उस्मान द्वारा उपयोग किए जा रहे ट्रेड मार्क से मिलता जुलता है। ऐसे में इसे कानून का उल्लंघन करार दिया जाता है। उनके पास इसे उपयोग करने का अधिकार नहीं है। मोहम्मद उस्मान की याचिका स्वीकारी जाती है।